बठिंडा। पंजाब के सीमावर्ती इलाको में नशे का कहर बढता जा रहा है दिन भी दिन ये आपने पैर पसार रहा है हेरोइन और कोकीन चरस अफीम जैसे नशे वहाब आसानी से मिल जाते है लकिन अब बाद रही महगाई से नशे करने वाले लोग इन नाशो से दूर होते जा रहे है अब नशेडी़ लोगो ने एक नया तरह किया नशा डूंडा है और वेह है साप का नशा इसमें नशेडी़ लोग साप से दांग मरवाने का नशा करते है और इसके लिए उन्हें महज ५० रूपये देने होते है और इसका नशा भी २४ घंटे तक रहता है इसके साथ साथ सपेरे भी खुश रहते है क्योंकि उनको आपनी आमदनी का एक और सदन मिल गया है जिससे उन्हें दिन में ३ से ४ लोग दांग मरवाने के मिल जाते है और जिन लोगो के पास ५० रूपये भी नहीं है वेह लोग बूट पालिश का नशा करते है जी हां बात सुनने में अजीब जरूर लगे लकिन ये सच है बूट पालिश का नशा सारे दिन में ८ घंटे तक रहता है ये लोग पालिश की डिब्बी लेकर उसको आपने गले पर ब्रुश से मरवाते है जिसके बाद दीरे दीरे उन्हें नशा होने लगता है अजय और सौरव के मुताबिक वेह ये नशा सस्ता होने के कारन करते है और ये पालिश की डिब्बी उनकी ३ से ४ दिन तक चाह्लती है उलेख्निये है की सर्कार की तरफ से नशा रोकने के लिए मुहीम चाहलाई जा रही है लकिन नशा करने वाले युवक आपना नशा करने का रास्ता दूंद लेते है और सर्कार की तरफ और पोलिसे प्रसाशन उनके सामने बेबस नज़र आते है
Friday, July 16, 2010
मंहगाई में अब नशों के विकल्प की तलाश
पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद चिंताजनक
मुक्तसर, बठिंडा और लुधियाना में धरती के नीचे पानी में नाईट्रेट की मात्रा बेइंतहा
बठिंडा। पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद चिंताजनक है। सूबे के तीन जिलों मुक्तसर, बठिंडा और लुधियाना में धरती के नीचे पानी में नाईट्रेट की मात्रा बेइंतहा बढ़ चुकी है। नाईट्रेट से जहरीले हुए पानी के इस्तेमाल से लोग कैंसर और अन्य घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यह खुलासा बेंगलुरु के एक गैर-सरकारी संगठन 'ग्रीन पीस इंडिया' ने किया है।
पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईट्रेट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती-पुत्र (किसान) सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों में फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईट्रेट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में ले लिया है। उल्लेखनीय है कि पंजाब की धरती का पानी पहले ही यूरेनियमयुक्त है। अब नाइट्रोजन की अधिकता और युरेनियम के प्रभाव के चलते प्रभावित जिलों में लोग कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।
रिपोर्ट में लुधियाना, मुक्तसर व बठिंडा जिलों के खेतों में रासायनिक खादों की सबसे अधिक खपत होने की तस्दीक की गई है। यह परीक्षण करने के लिए लुधियाना और मुक्तसर में 18-18 और बठिंडा में 14 धान व गेहूं के खेतों से भू-जल के नमूने लिए गए। इस सर्वेक्षण में तीनों जिलों के 9 ब्लॉक और 18 गांव कवर किए गए। जांच से बाद जो नतीजा सामने आया, वह काफी भयावह था। मुख्यमंत्री के गृह जिले मुक्तसर के ब्लॉक गिदड़बाहा के गांव दोदा के नमूने में पानी में नाईट्रेट की मात्रा बहुत अधिक, सुरक्षित-निर्धारित मानक पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से कहीं ज्यादा 94.3 पाई गई। बठिंडा जिला के सीमावर्ती गांव पथराला के भू-जल में भी नाईट्रेट की मात्रा 64.3 तक दर्ज की गई। जगरांव, लुधियाना व गिदड़बाहा के पानी के नमूनों में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति देखी गई। जबकि पायल, फूल, रायकोट, मलोट के क्षेत्रों में पानी के नमूनों में नाईट्रेट पाई गई। इन नमूनों की जांच में बठिंडा के गांव रायकेकलां से लिए 7 नमूनों में से तीन में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति 61.1, 59.6 व 53.2 दर्ज की गई। भू-जल के नमूने वाले कुल 18 गांवों में से 8 में नाईट्रेट की उपस्थिति उच्च मात्रा में पाई गई।
ग्रीन पीस इंडिया की कम्युनिकेशन अधिकारी प्रीति हरमन का कहना है कि किसानों द्वारा खेतों में रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से भू-जल दूषित हुआ है। भूजल को पीने के लिए उपयोग करने के कारण नाईट्रेट मनुष्य के शरीर में जा रहा है। किसानों द्वारा अपनी फसलों की अधिक मात्रा में नाईट्रेट की तय दर 223 किलोग्राम प्रति हैक्टेअर से कहीं ज्यादा 322 किलो प्रति हैक्टेयर रासायनिक खादों का उपयोग किया गया। इतनी मात्रा में नाईट्रोजन सीधे तौर पर मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करने में सक्षम है। खेतों में रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर खाद्य उत्पादन को प्रभावित करता है, बल्कि पेयजल को प्रदूषित कर लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। वैसे भी हरित क्रांति के बाद नाईट्रोजन के बढ़ते प्रकोप से मनुष्य अछूता नहीं है क्योंकि नाईट्रेटयुक्त फसलें ही मनुष्य के रोजाना के खानपान का हिस्सा हैं। वहीं रही सही कसर नाईट्रोजन से दूषित भू-जल पूरी कर रहा है। इससे कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियां फैल रही हैं।
प्रीति हरमन का यह भी कहना है कि किसान तो अधिक फसल लेने के लालच में रासायनिक खाद का अधिक उपयोग करते हैं। जबकि सरकार इनके दुष्परिणामों से भली-भांति परिचित होने के बावजूद हर साल खाद पर सैकड़ों करोड़ रुपये की सब्सिडी देकर बराबर की जिम्मेवार बनी हुई है। जिसके चलते रासायनिक खादें आम लोगों के लिए मौत का कारण बन रही हैं। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि रासायनिक खादों पर सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर खर्च करने की बजाए वह किसानों को आर्गेनिक खेती के प्रति उत्साहित करें ताकि खेती के जरिए जीवन के साथ खिलवाड़ को बंद किया जा सके।
खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक व वरिष्ठ पर्यावरणविद उमिंदर दत्त भू-जल में नाईट्रोजन की अत्यधिक मात्रा को बड़ा संकट मानते हैं। उन्होंने कहा कि इन जिलों में दूषित भू-जल के कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों ने अपना जाल बिछाया हुआ है। इस क्षेत्र के गांवों में एक-एक घर में कैंसर से पीड़ित एक से ज्यादा मरीज होना आम बात है। जबकि इससे पहले बड़ी संख्या में लोग कैंसर व अन्य नामुराद बीमारियों के कारण अपनी जिंदगी से हाथ धो चुके हैं। उमिंदर दत्त कहते हैं, 'वक्त रहते लोगों को भू-जल के दूषित प्रभाव से मुक्त करने के लिए सरकार को रासायनिक खादों की जगह ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।' वह चेताते हैं कि अगर सरकार ने पानी में जहर व किसानों को फर्टिलाइजर्स के नुकसान के प्रति सचेत नहीं किया तो मालवा के घर-घर में अपनी जड़ें फैला रही कैंसर की नामुराद बीमारी एक दिन पूरे पंजाब को निगल जाएगी। रिपोर्ट में बठिंडा जिले के गांव जज्जल व ग्याना कैंसर के पिन-प्वाइंट बताए गए हैं। जिसके चलते इन गांवों में बहुत से परिवार कैंसर से तबाह हो चुके हैं।
हालात यह हैं कि राजस्थान के बीकानेर में कैंसर का इलाज कराने वाले मरीजों में ज्यादातर पंजाब के मालवा क्षेत्र के बठिंडा व मुक्तसर जिलों के हैं। यही नहीं, मालवा का कैंसर रेलवे पर भी छा गया है। अबोहर से बीकानेर वाया बठिंडा जाने वाली रेलगाड़ी 399 अप कैंसर ट्रेन के नाम से जानी जाने लगी है। एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में सिर्फ बठिंडा स्टेशन से बीकानेर जाने वाले यात्रियों की संख्या लगभग 200 है। जबकि क्षेत्र के दूसरे शहरों के रेलवे स्टेशनों से बीकानेर जाने वाले मरीजों की गिनती इससे जुदा है। यह भी एक जमीनी सच है कि माली हालत खराब होने के कारण कैंसर से पीड़ित बहुत सारे लोग अपना पूरा इलाज करवाने से भी महरूम हैं। कैंसर की रोकथाम के लिए पंजाब सरकार द्वारा साल भर पहले बठिंडा के सिविल अस्पताल कांप्लैक्स में एक कैंसर अस्पताल का शिलान्यास भी किया गया था, लेकिन बात अभी तक उससे आगे नही बढ़ पाई।
आदेश मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (भुच्चो) के निदेशक प्रिंसिपल (लेफ्टिनेंट) डा जीपीआई सिंह कहते हैं कि भू-जल में नाईट्रेट ज्यादा होने से मनुष्य में कई तरह के कैंसर के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम और गर्भवती महिलाओं में भी कई तरह की बीमारियां पैदा होने का खतरा रहता है। ग्रीन पीस इंडिया के सहयोग से जारी इस अभियान के तहत विदेशी वैज्ञानिक टिराडो ने भू-जल जांच के बारे में सार्वजनिक जानकारी देकर लोगों को सचेत किया। उन्होंने गांव पथराला के किसान गुरसेवक सिंह के खेत में ट्यूबवैल से पानी लेकर विशेष मशीन से मौके पर ही परीक्षण किया। यहां जांच के दौरान भू-जल में नाईट्रेट की मात्रा 58.2 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मानकों के अनुसार पानी में 5 ़2 मिलीग्राम प्रति लीटर तक नाईट्रेट की मौजूदगी स्वास्थ्य के अनुकूल मानी जाती है। उन्होंने बताया कि खेतों में किसानों द्वारा बेहिसाब रासायनिक खाद डालने के कारण नाईट्रेट अब भूमि को पार करके भू-जल में मिल गया है।
उल्लेखनीय है कि जब इसी जगह मार्च में भू-जल परीक्षण किया गया था तो उस समय नाईट्रेट की मात्रा 64.3 के करीब दर्ज की गई थी। टिराडो ने चिंता जताई कि भू-जल में नाईट्रेट की मात्रा अधिक होने से लोगों में कई तरह के कैंसर फैलने के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम के लक्षण और गर्भवती महिलाओं में भी खतरनाक बिमारियों पनपने की आशंका रहती है। इस मौके पर मौजूद उमिंदर दत्त ने बताया कि ग्रीन पीस से पहले पंजाब सरकार के सहयोग से पीजीआई चंडीगढ़ ने भी कैंसर को लेकर एक सर्वेक्षण कराया था। उन्होंने राय जाहिर की कि टुकड़ों में बँटे अध्ययन से कुछ फायदा होने वाला नहीं है, अब जरूरत केन्द्र व पंजाब सरकार द्वारा युद्ध स्तर पर योजना बनाने की है। वह बठिंडा में विशेष केन्द्र स्थापित कर पर्यावरण में पैदा हुए असंतुलन से लोगों की सेहत पर पड़ने वाले असर का पता लगाने पर जोर देते हैं।
उधर, सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही गांव पथराला में साल 2001 से लेकर अब तक 13 लोग कैंसर का शिकार हो चुके हैं। गांव की डिस्पेंसरी में तैनात फार्मासिस्ट सुरेश शाद ने बताया कि कैंसर पीड़ितों में से छह रोगियों की मौत भी हो चुकी है। पीड़ितों में से छह को पेट, तीन को गले और बाकी को बच्चेदानी का कैंसर था। रासायनिक खादों के नुकसान से जागरूक हुए जैतो गांव के किसान गुरमेल सिंह ढिल्लों रासायनिक खाद त्यागकर अपनी चार एकड़ में से दो एकड़ जमीन पर पिछले छह साल से जैविक-खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जैविक खेती से उत्पन्न फसलें मनुष्य की सेहत के लिए हानिकारक भी नहीं हैं और इसकी फसल का बाजार में अच्छा मूल्य भी हासिल होता है।
Thursday, July 15, 2010
चर्चाओं में हैं मानव रूपी श्री हनुमान जी
भक्तों में है दर्शनों की चाह
बठिंडा : स्थानीय अमरपुरा बस्ती में अपने नाना के घर पहुंचे नवीपुरा के मानव रूपी श्री बालाजी को देखने के लिए श्री हनुमान भक्तों में काफी उत्साह पाया जा रहा है। शहर में जैसे जैसे उनके बारे में श्री हनुमान जी के भक्तों को सूचना मिल रही है, वो उनके दर्शनों के लिए वैसे वैसे उनके ननिहाल की तरफ रुख कर रहे हैं, कुछ भक्त तो उनको अपने निवास स्थान पर अमंत्रित कर रहे हैं, ताकि और ज्यादा लोग भी इस कुदरत के करिश्मे का दीदार कर सकें।
पैसा टका लेने से साफ इंकार करने वाले आठ वर्षीय श्री बालाजी का जन्म फतेहगढ़ साहिब से कुछ दूर स्थित गांव नवीपुरा में हुआ। संयोग देखो, गांव का नाम नबीपुरा, नबी का अर्थ ईश्वरीय दूत, हो सकता है कि श्री बाला जी के रूप में शायद ईश्वर ने कोई दूत ही भेजा हो।
श्री बालाजी की शारीरिक वेशभूषा बिल्कुल श्री हनुमान जैसी है, पीछे एक पूंछ, डौले पर भी एक अद्भुत निशान है, जिसको देखकर कोई भी चकित रहे जाए, टांगें व पांव कुदरती रूप से चौकड़ी मारने की अवस्था में हैं।
अमरपुरा निवासी उनके नाना संगीत विशेषज्ञ बाबू इकबाल कुरैशी बताते हैं कि श्री बाला जी डेढ़ साल की आयु में ही ऐसे भविष्यवाणियां करने लग गए थे कि देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता था। मामला इतना बढ़ गया था कि चंड़ीगढ़ में बड़े धर्म गुरूओं की बैठक बुलाई गई, जिसमें श्री बाला जी को बुलाया गया। श्री बाला जी को पैसे से कोई ज्यादा मोह नहीं, आज भी उनके जन्म स्थान पर साधारण सा मंदिर है, वो विशाल मंदिर बनाने की बात पर कहते हैं, साधारण सी बात है, मंदिर का अर्थ होता है मन अंदर।
बठिंडा की युविका बनी यूनि.टॉपर
स्थानीय वीर कालोनी की डा.युविका राजकुमार ने अपने व माता पिता के सपने को साकार करते हुए पंडित बीडी शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस रोहतक, हरियाणा में एमडीएस की परीक्षा में टॉप किया है, जो आजकल फिरोजपुर स्थित जेंट्स डेंटल कॉलेज में सीनियर रेजीडेंट एमडीएस के पद पर अपनी सेवाएं दे रही हैं।
डा.युविका ने बताया कि उनके कॉलेज डीएवी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के 18 विद्यार्थियों के अलावा अन्य दो कॉलेजों से भी दर्जनों विद्यार्थी थे, जिनको पीछे छोड़ते हुए उसने इस उपलब्धि को हासिल किया। इसके अलावा उनको कॉलेज प्रबंधन की ओर से बेस्ट पीजी स्टूडेंट का एवार्ड भी दिया गया है।
ज्ञात रहे कि डा.युविका के पिता डा. राजकुमार बाल रोगों के विशेषज्ञ हैं, जिनके आदर्शों पर चलते हुए डा.युविका ने अपने व अपने माता पिता के सपनों को हकीकत में बदलकर रख दिया। बेटी की इस उपलब्धि को लेकर उत्साहित श्रीमति अनिता राजकुमार कहती हैं कि डा.युविका का हमेशा ध्यान अपने लक्ष्य पर होता था, वो हर समय अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रयास करती थी। यही कारण है कि वो अपने लक्ष्य को पाने में सफल हुई है। वो इसको रिटर्न गिफ्ट मानती हैं, क्योंकि 15 जुलाई यानि आज डा.युविका जन्मदिन है।
गर्मी से एक की मौत
बठिंडा : मालवा के कुछ क्षेत्रों में जहां पानी कहर बरपा रहा है, वहीं दूसरी तरफ कुछ क्षेत्रों में गर्मी इंसानों को निगल रहा है। इस गर्मी के कहर के कारण स्थानीय गोल डिग्गी के समीप स्थित एक टैक्सी स्टेंड पर एक व्यक्ति की मौत होने की सूचना मिली है। सूत्र बताते हैं कि जगजीत सिंह पुत्र साधू सिंह निवासी रोमाना अचानक उक्त टैक्सी स्टेंड पर चक्कर खाकर गिर गया। जिसे सूचना मिलने पर उक्त संस्था के कार्यकर्ता उठाकर स्थानीय सिविल अस्पताल में इलाज के लिए ले गए, लेकिन वहां डॉक्टरों ने मेडिकल चेकअप के बाद मृत घोषित कर दिया। पुलिस कार्यवाई के बाद लाश को परिजनों के हवाले कर दिया गया, ज्ञात रहे कि मृतक पेशे से पेंटर था। इससे पहले भी शहर में गर्मी के कारण कई मौतें हो चुकी हैं।
आटा चक्की पर सोए व्यक्ति की हत्या
अज्ञात लोगों पर मामला दर्ज, जांच शुरू
बठिंडा : संगत मंडी पुलिस थाने के अधीन पड़ते गांव चक्क रूलदू सिंह वाला में गत रात्रि कुछ अज्ञात लोगों ने सड़क पर सो रहे एक व्यक्ति पर हमला बोल उसको मौत के घाट उतार दिया। उधर, संगत पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण कर अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए आगे की कार्यवाई शुरू कर दी है। सूत्र बताते हैं कि मृतक गुरलाल सिंह उर्फ बिल्लू (58) गांव के बीच स्थित अपनी आटा चक्की की रखवाली करने हेतु रोजमर्रा की तरह गली में सोने के लिए गए, लेकिन जब गांव वालों की निगाह चार पाई पर घायल अवस्था में पड़े गुरलाल पर पड़ी तो गांव वासी सकते में आ गया। इस घटना के बारे में संबंधित पुलिस थाने को सूचित किया, जिन्होंने मौके पर पहुंच घटनास्थल की जांच की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए बठिंडा के सिविल अस्पताल में भेज दिया। प्रत्यक्षदर्शी सूत्र बताते हैं कि मृतक के सिर पर लगी चोट बताती है कि उस पर किसी तेजधार हथियार से हमला किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रथम दृष्टि से हत्या का मामला लगता है। उधर, संगत मंडी पुलिस थाने के अधिकारियों का कहना है कि हत्या का मामला दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी है।
..खिड़की, बंद मत करना!
आध्यत्मिक लोग दुनिया को सराय कहते हैं, और विचारक इसको रंगमंच। दोनों ही अपने जगह बिल्कुल सही हैं, क्योंकि दोनों का अपना अपना नजरिया है। कारोबारी लोग इसको रिले ट्रेक भी कहते हैं, और कुछ बाजार भी। अगर खुले दिमाग से सोचा जाए, तो सब के सब सही नजर आएं, और वो हैं भी। एक बगीचे में तीन लोग सैर के लिए गए। जब वो बाहर आ रहे थे तो बगीचे के प्रवेश द्वार पर खड़े कर्मचारी ने एक एक से पूछा, आप ने बगीचे में क्या क्या देखा? सब ने उसको बताया, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि उन तीनों ने जो देखा, वो अलग अलग था, जबकि वो गए तो एक साथ ही थे।
साहित्यकार की निगाह वहां खिले रहे पड़े पौधों पर गई, उद्यमी की निगाह इसको और बेहतर कैसे बनाए जाए पर गई और जबकि तीसरे व्यक्ति की निगाह वहां की निकम्मे प्रबंधन पर गई। जैसे हाथ की उंगली एक जैसी नहीं हो सकती, वैसे ही व्यक्तियों की सोच का एक होना मुश्किल है। एक आम बात जो हम सबके साथ घटित होती है। आप कुछ नया करने की सोच रहे हैं, उदाहरण के तौर पर कारोबार ही। जैसे आप इस बात को किसी के सामने रखोगे, वो पहले ही कह देगा मत करना, बहुत मुश्किल है। सामने वाले की पहली प्रतिक्रिया कुछ ऐसी ही होगी, सचमुच। अगर आप उससे पूछेंगे कि आसान क्या है, वो बता, तो उसके पास जवाब नहीं होगा, जबकि ज्यादातर लोग पूछते ही नहीं पलटकर। जो व्यक्ति कहता है, तुम यह मत करो, जोखिम है, उसको न तो खुद पर भरोसा है और न आप पर। वो असफलता से डरा हुआ है, जबकि असफलता नामक कोई चीज दुनिया में नहीं, जो लोग आज सफल हैं, और सफलता की शिखर की तरफ बढ़ रहे हैं, वो लोगों की परवाह नहीं करते, क्योंकि उनकी निगाह लक्ष्य पर है, न कि सड़क किनारे पड़े पत्थर पर। आप देखा होगा, जब कोई व्यक्ति नया नया साईकिल चलाना सीखता है, तो उसका साइकिल पूरी सड़क छोड़कर एक सड़क किनारे पड़े छोटे से पत्थर से जा टकराता है। पता है क्योंकि उसका ध्यान उस छोटे से पत्थर पर था, न कि दस फुट चौड़ी सड़क पर। वो व्यक्ति साइकिल सीखते समय कई दफा गिरता है, लेकिन साईकिल चलाना बंद नहीं करता, क्योंकि तब उसके जेहन में असफलता नहीं अनुभव घुसा होता है।
तब तक आपको कोई नहीं असफल कर सकता जब तक आप असफलता को अनुभव मानते हैं, जो एडिशन ने बल्ब बनाने के बाद कहा था, जब एडिशन से पूछा गया कि आप दस हजार बार असफल हुए, आपको कैसा लगता है, तो एडिशन का जवाब था, मैं कभी असफल नहीं हुआ, वो तो मेरे अनुभव थे, जिसके द्वारा मुझे पता चला कि इन दस हजार तरीकों से कभी भी बल्ब ईजाद नहीं किया जा सकता। इसलिए अगर सफलता की चोटी को चुंबन देना है, तो मुकाबला खुद से करना सीखो। जो कल किया है, आज उससे बेहतर करना सीखो। अगर दिल कभी हौसला हारने लगे तो बेसबॉल के उस खिलाड़ी की तरफ एक बार देख लेना, जो दस में से छह गेंदों को केवल टच कर पाता है। एक बार एक लड़का बेसबॉल का अभ्यास कर रहा था, उसने गेंद को अपने हाथों से कई दफा उछाला और खुद के बल्ले से ही टच करने की कोशिश की, वो गेंद को टच करने में विफल रहा।
वो हताश होकर बैठा, जब उसने शांत दिमाग से सोचा कि आखिर गेंद किसने उछाली थी? जवाब भीतर से मिला मैंने ही, तो उसके कहा कि अगर अच्छा शॉट नहीं लगा सकता, अच्छी गेंद तो फेंक सकता हूं। ऐसी हजारों उदाहरण हैं, जो हम को बताती हैं कि लकीर का फकीर बनने बेहतर है, अपने सही हुनर को पहचानो। हिन्दी फिल्म जगत के जाने माने फिल्म निर्माता निर्देशक सुभाष घई मुम्बई में हीरो बनने गया था, लेकिन किस्मत ने कहा, तुम हीरो खुद तो नहीं बन सकते, लेकिन हीरो ईजाद कर सकते हो। सुभाष घई ने हिन्दी फिल्म जगत को ऐसे चेहरे दिए, जो कई दशकों तक फिल्म जगत पर राज करते रहे। इसलिए कहता हूँ, दोस्तो सूर्य निकलते हैं, बस सोच घर की खिड़की बंद मत करना।
साहित्यकार की निगाह वहां खिले रहे पड़े पौधों पर गई, उद्यमी की निगाह इसको और बेहतर कैसे बनाए जाए पर गई और जबकि तीसरे व्यक्ति की निगाह वहां की निकम्मे प्रबंधन पर गई। जैसे हाथ की उंगली एक जैसी नहीं हो सकती, वैसे ही व्यक्तियों की सोच का एक होना मुश्किल है। एक आम बात जो हम सबके साथ घटित होती है। आप कुछ नया करने की सोच रहे हैं, उदाहरण के तौर पर कारोबार ही। जैसे आप इस बात को किसी के सामने रखोगे, वो पहले ही कह देगा मत करना, बहुत मुश्किल है। सामने वाले की पहली प्रतिक्रिया कुछ ऐसी ही होगी, सचमुच। अगर आप उससे पूछेंगे कि आसान क्या है, वो बता, तो उसके पास जवाब नहीं होगा, जबकि ज्यादातर लोग पूछते ही नहीं पलटकर। जो व्यक्ति कहता है, तुम यह मत करो, जोखिम है, उसको न तो खुद पर भरोसा है और न आप पर। वो असफलता से डरा हुआ है, जबकि असफलता नामक कोई चीज दुनिया में नहीं, जो लोग आज सफल हैं, और सफलता की शिखर की तरफ बढ़ रहे हैं, वो लोगों की परवाह नहीं करते, क्योंकि उनकी निगाह लक्ष्य पर है, न कि सड़क किनारे पड़े पत्थर पर। आप देखा होगा, जब कोई व्यक्ति नया नया साईकिल चलाना सीखता है, तो उसका साइकिल पूरी सड़क छोड़कर एक सड़क किनारे पड़े छोटे से पत्थर से जा टकराता है। पता है क्योंकि उसका ध्यान उस छोटे से पत्थर पर था, न कि दस फुट चौड़ी सड़क पर। वो व्यक्ति साइकिल सीखते समय कई दफा गिरता है, लेकिन साईकिल चलाना बंद नहीं करता, क्योंकि तब उसके जेहन में असफलता नहीं अनुभव घुसा होता है।
तब तक आपको कोई नहीं असफल कर सकता जब तक आप असफलता को अनुभव मानते हैं, जो एडिशन ने बल्ब बनाने के बाद कहा था, जब एडिशन से पूछा गया कि आप दस हजार बार असफल हुए, आपको कैसा लगता है, तो एडिशन का जवाब था, मैं कभी असफल नहीं हुआ, वो तो मेरे अनुभव थे, जिसके द्वारा मुझे पता चला कि इन दस हजार तरीकों से कभी भी बल्ब ईजाद नहीं किया जा सकता। इसलिए अगर सफलता की चोटी को चुंबन देना है, तो मुकाबला खुद से करना सीखो। जो कल किया है, आज उससे बेहतर करना सीखो। अगर दिल कभी हौसला हारने लगे तो बेसबॉल के उस खिलाड़ी की तरफ एक बार देख लेना, जो दस में से छह गेंदों को केवल टच कर पाता है। एक बार एक लड़का बेसबॉल का अभ्यास कर रहा था, उसने गेंद को अपने हाथों से कई दफा उछाला और खुद के बल्ले से ही टच करने की कोशिश की, वो गेंद को टच करने में विफल रहा।
वो हताश होकर बैठा, जब उसने शांत दिमाग से सोचा कि आखिर गेंद किसने उछाली थी? जवाब भीतर से मिला मैंने ही, तो उसके कहा कि अगर अच्छा शॉट नहीं लगा सकता, अच्छी गेंद तो फेंक सकता हूं। ऐसी हजारों उदाहरण हैं, जो हम को बताती हैं कि लकीर का फकीर बनने बेहतर है, अपने सही हुनर को पहचानो। हिन्दी फिल्म जगत के जाने माने फिल्म निर्माता निर्देशक सुभाष घई मुम्बई में हीरो बनने गया था, लेकिन किस्मत ने कहा, तुम हीरो खुद तो नहीं बन सकते, लेकिन हीरो ईजाद कर सकते हो। सुभाष घई ने हिन्दी फिल्म जगत को ऐसे चेहरे दिए, जो कई दशकों तक फिल्म जगत पर राज करते रहे। इसलिए कहता हूँ, दोस्तो सूर्य निकलते हैं, बस सोच घर की खिड़की बंद मत करना।
चर्चाओं में हैं मानव रूपी श्री हनुमान जी
भक्तों में है दर्शनों की चाह
बठिंडा : स्थानीय अमरपुरा बस्ती में अपने नाना के घर पहुंचे नवीपुरा के मानव रूपी श्री बालाजी को देखने के लिए श्री हनुमान भक्तों में काफी उत्साह पाया जा रहा है। शहर में जैसे जैसे उनके बारे में श्री हनुमान जी के भक्तों को सूचना मिल रही है, वो उनके दर्शनों के लिए वैसे वैसे उनके ननिहाल की तरफ रुख कर रहे हैं, कुछ भक्त तो उनको अपने निवास स्थान पर अमंत्रित कर रहे हैं, ताकि और ज्यादा लोग भी इस कुदरत के करिश्मे का दीदार कर सकें।
पैसा टका लेने से साफ इंकार करने वाले आठ वर्षीय श्री बालाजी का जन्म फतेहगढ़ साहिब से कुछ दूर स्थित गांव नवीपुरा में हुआ। संयोग देखो, गांव का नाम नबीपुरा, नबी का अर्थ ईश्वरीय दूत, हो सकता है कि श्री बाला जी के रूप में शायद ईश्वर ने कोई दूत ही भेजा हो।
श्री बालाजी की शारीरिक वेशभूषा बिल्कुल श्री हनुमान जैसी है, पीछे एक पूंछ, डौले पर भी एक अद्भुत निशान है, जिसको देखकर कोई भी चकित रहे जाए, टांगें व पांव कुदरती रूप से चौकड़ी मारने की अवस्था में हैं।
अमरपुरा निवासी उनके नाना संगीत विशेषज्ञ बाबू इकबाल कुरैशी बताते हैं कि श्री बाला जी डेढ़ साल की आयु में ही ऐसे भविष्यवाणियां करने लग गए थे कि देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता था। मामला इतना बढ़ गया था कि चंड़ीगढ़ में बड़े धर्म गुरूओं की बैठक बुलाई गई, जिसमें श्री बाला जी को बुलाया गया। श्री बाला जी को पैसे से कोई ज्यादा मोह नहीं, आज भी उनके जन्म स्थान पर साधारण सा मंदिर है, वो विशाल मंदिर बनाने की बात पर कहते हैं, साधारण सी बात है, मंदिर का अर्थ होता है मन अंदर।
बठिंडा की युविका बनी यूनि.टॉपर
स्थानीय वीर कालोनी की डा.युविका राजकुमार ने अपने व माता पिता के सपने को साकार करते हुए पंडित बीडी शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस रोहतक, हरियाणा में एमडीएस की परीक्षा में टॉप किया है, जो आजकल फिरोजपुर स्थित जेंट्स डेंटल कॉलेज में सीनियर रेजीडेंट एमडीएस के पद पर अपनी सेवाएं दे रही हैं।
डा.युविका ने बताया कि उनके कॉलेज डीएवी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के 18 विद्यार्थियों के अलावा अन्य दो कॉलेजों से भी दर्जनों विद्यार्थी थे, जिनको पीछे छोड़ते हुए उसने इस उपलब्धि को हासिल किया। इसके अलावा उनको कॉलेज प्रबंधन की ओर से बेस्ट पीजी स्टूडेंट का एवार्ड भी दिया गया है।
ज्ञात रहे कि डा.युविका के पिता डा. राजकुमार बाल रोगों के विशेषज्ञ हैं, जिनके आदर्शों पर चलते हुए डा.युविका ने अपने व अपने माता पिता के सपनों को हकीकत में बदलकर रख दिया। बेटी की इस उपलब्धि को लेकर उत्साहित श्रीमति अनिता राजकुमार कहती हैं कि डा.युविका का हमेशा ध्यान अपने लक्ष्य पर होता था, वो हर समय अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रयास करती थी। यही कारण है कि वो अपने लक्ष्य को पाने में सफल हुई है। वो इसको रिटर्न गिफ्ट मानती हैं, क्योंकि 15 जुलाई यानि आज डा.युविका जन्मदिन है।
Wednesday, July 14, 2010
असहाय लोगों के लिए काम कर रहा है राजीव गांधी विचार मंच
-प्रदेश वाईस चेयरमैन अमरजीत सिंह ग्रेवाल का महत्वपूर्ण योगदान
-अब बठिंडा के साथ मालवा में मंच को मजबूत करने का काम
बठिंडा। स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी युवाओं के साथ निर्बल व असहाय लोगों के उत्थान के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते इस वर्ग के लिए जितना काम किया वह बेमिशाल रहा। वर्तमान में उनकी ही विचारधारा व सोच को लेकर राजीव गांधी विचार मंच देश भर में काम कर रहा है। पिछले ढ़ाई साल से इस मंच ने पंजाब में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। ढ़ाई साल पहले गरीबों, बेसहारा लोगों के उत्थान के साथ समाज में फैली बुराईयों के खिलाफ काम करने की शपथ लेकर शुरू हुए राजीव गांधी विचार मंच ने कम समय में ही अपनी नई पहचान बनाने में सफलता हासिल की है।
मंच को बुलंदियों में पहुंचाने के लिए प्रदेश वाईस चेयरमैन अमरजीत सिंह ग्रेवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने इस मंच को पंजाब के विभिन्न जिलों में स्थापित करवाने के साथ बडे़ स्तर पर इसके सदस्य बनाने की मुहिम शुरू की। उनकी मेहनत का नतीजा ही रहा कि ढाई साल में पंजाब के अंदर छह लाख ६८ हजार सदस्य बने हैं। इस मंच की खास बात यह है कि इसके साथ अधिकतर ऐसा वर्ग है जो गरीब व पिछड़ा है। इस मंच के चेयरमैन बलवीर सिंह है, जो समय-समय पर संस्था को अपना सहयोग देने के साथ उसके कार्य विस्तार को लेकर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। मंच ने गरीब महिलाओं के उत्थान के लिए मुहिम चलाई जिसमें महिलाओं को स्वालंबी बनाने के साथ अपने पैरों में खड़ा करने के लिए सिलाई सेंटर खोलने का सिलसिला शुरू किया। इसके तहत राज्य में अब तक १२५ सिलाई सेंटर चल रहे हैं जिसमें महिलाओं को निशुल्क सिखलाई प्रदान की जाती है जिसमें छह माह का कोर्स करवाने के साथ बकायदा प्रमाणपत्र भी दिया जाता है। इसके साथ ही राजीव गांधी विचार मंच गरीब घरों की लड़कियों के विवाह में भी समय-समय पर सहयोग प्रदान करता है। जो परिवार ज्यादा जरूरुतमंद होता है उसे मंच के पदाधिकारी ४७ हजार रुपये का सामान देते हैं। इसके इलावा गरीब वर्ग की लड़की के विवाह में शगुन के तौर पर ११०० व ५१०० रुपये की सहायता भी प्रदान की जाती है।
राजीव गांधी विचार मंच के प्रदेश वाईस चेयरमैन अमरजीत सिंह ग्रेवाल का कहना है कि उनका मंच मानता है कि समाज में फैली बुराईयों को दूर करे बिना राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं हो सकता है। इसी सोच के चलते समय-समय पर समाज में जागृति लाने व सामाजिक बुराईयों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए सेमिनार का आयोजन भी किया जाता है। वर्तमान में मंच के महासचिव सुखदेव सिंह राज्य भर में मंच को बुलंदी में पहुंचाने के लिए कामं कर रहे हैं। मंच को प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी देखती है व समय-समय पर मंच का मार्गदर्शन करती है।
उन्होंने बताया कि राज्य भर में जिस तरह के मंच का कार्य विस्तार हुआ उससे मंच में नए व वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की तादाद भी बढ़ने लगी। इसके लिए उन्होंने सोनिया गांधी से पदाधिकारियों को समुचित सम्मान देने की अपील की थी जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने मंच के कार्यविस्तार की अनुमति प्रदान कर दी व छह नए विंग बनाने के आदेश दिए। इसी के तहत वर्तमान में एससीबीसी विंग, महिला विंग व स्पोर्टंस सैल, बीसी सैल अपना काम कर रहा है। इसमें बीसी सैल के प्रधान लक्खा सिंह बलटौवा है जबकि महिला सैल की प्रधान कमलजीत कौर है जो मंच की मजबूती में सहयोग दे रही है। वर्तमान में राजीव गांधी विचार मंच बठिंडा के इलावा मालवा में मंच को मजबूत करने व इसके कार्यविस्तार के लिए काम कर रहा है, जिसमें एक मुस्त योजना बनाकर व्यवहार में योजना को लागू किया जा रहा है।
मंच को बुलंदियों में पहुंचाने के लिए प्रदेश वाईस चेयरमैन अमरजीत सिंह ग्रेवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने इस मंच को पंजाब के विभिन्न जिलों में स्थापित करवाने के साथ बडे़ स्तर पर इसके सदस्य बनाने की मुहिम शुरू की। उनकी मेहनत का नतीजा ही रहा कि ढाई साल में पंजाब के अंदर छह लाख ६८ हजार सदस्य बने हैं। इस मंच की खास बात यह है कि इसके साथ अधिकतर ऐसा वर्ग है जो गरीब व पिछड़ा है। इस मंच के चेयरमैन बलवीर सिंह है, जो समय-समय पर संस्था को अपना सहयोग देने के साथ उसके कार्य विस्तार को लेकर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। मंच ने गरीब महिलाओं के उत्थान के लिए मुहिम चलाई जिसमें महिलाओं को स्वालंबी बनाने के साथ अपने पैरों में खड़ा करने के लिए सिलाई सेंटर खोलने का सिलसिला शुरू किया। इसके तहत राज्य में अब तक १२५ सिलाई सेंटर चल रहे हैं जिसमें महिलाओं को निशुल्क सिखलाई प्रदान की जाती है जिसमें छह माह का कोर्स करवाने के साथ बकायदा प्रमाणपत्र भी दिया जाता है। इसके साथ ही राजीव गांधी विचार मंच गरीब घरों की लड़कियों के विवाह में भी समय-समय पर सहयोग प्रदान करता है। जो परिवार ज्यादा जरूरुतमंद होता है उसे मंच के पदाधिकारी ४७ हजार रुपये का सामान देते हैं। इसके इलावा गरीब वर्ग की लड़की के विवाह में शगुन के तौर पर ११०० व ५१०० रुपये की सहायता भी प्रदान की जाती है।
राजीव गांधी विचार मंच के प्रदेश वाईस चेयरमैन अमरजीत सिंह ग्रेवाल का कहना है कि उनका मंच मानता है कि समाज में फैली बुराईयों को दूर करे बिना राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं हो सकता है। इसी सोच के चलते समय-समय पर समाज में जागृति लाने व सामाजिक बुराईयों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए सेमिनार का आयोजन भी किया जाता है। वर्तमान में मंच के महासचिव सुखदेव सिंह राज्य भर में मंच को बुलंदी में पहुंचाने के लिए कामं कर रहे हैं। मंच को प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी देखती है व समय-समय पर मंच का मार्गदर्शन करती है।
उन्होंने बताया कि राज्य भर में जिस तरह के मंच का कार्य विस्तार हुआ उससे मंच में नए व वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की तादाद भी बढ़ने लगी। इसके लिए उन्होंने सोनिया गांधी से पदाधिकारियों को समुचित सम्मान देने की अपील की थी जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने मंच के कार्यविस्तार की अनुमति प्रदान कर दी व छह नए विंग बनाने के आदेश दिए। इसी के तहत वर्तमान में एससीबीसी विंग, महिला विंग व स्पोर्टंस सैल, बीसी सैल अपना काम कर रहा है। इसमें बीसी सैल के प्रधान लक्खा सिंह बलटौवा है जबकि महिला सैल की प्रधान कमलजीत कौर है जो मंच की मजबूती में सहयोग दे रही है। वर्तमान में राजीव गांधी विचार मंच बठिंडा के इलावा मालवा में मंच को मजबूत करने व इसके कार्यविस्तार के लिए काम कर रहा है, जिसमें एक मुस्त योजना बनाकर व्यवहार में योजना को लागू किया जा रहा है।
प्रस्तुतिः-बब्बल गर्ग
एचटूपी प्रोजेक्ट के तहत लगाया एकदिवसीय शिविर
बठिंडा : स्थानीय ड्यून्स क्लब में इंडियन रेड क्रोस सोसायटी की ओर से ह्यूमनट्रीयन पेनडेमिक प्रपेर्डनेस प्रोजेक्ट (एचटूपी प्रोजेक्ट) के तहत स्वाईन फ्लू व अन्य महामारियों से निबटने हेतु लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए जिले भर से करीबन 25 लोगों को बुलाया गया। इस एकदिवसीय जागरूकता शिविर में समाज सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, आरएमपी डॉक्टरों व अन्य लोगों ने भाग हिस्सा लिया। प्रशिक्षिण व जागरूकता हेतु आयोजित इस शिविर में प्रोजेक्ट डायरेक्टर आरवी वर्मा विशेष तौर पर पहुंचे, जिन्होंने शिविर में उपस्थित लोगों को स्वाईन फ्लू व अन्य महामारियों से निबटने के लिए कुछ खास बातें बताई, ताकि जो किसी महामारी के फैलने पर उसको रोकने के लिए व्यापक प्रबंध किए जा सके। इस मौके पर अन्य लोगों के अलावा सेहत विभाग की ओर से डॉ.धर्मपाल सेखों, रेड क्रास सचिव जेआर गोयल, रेड क्रास सुपरवाईजर नरेश पठानियां, रिपोर्टिंग ऑफिसर हरकृष्ण शर्मा, रेड क्रास कर्मचारी विद्या सागर व अजय गोयल आदि उपस्थित थे। इस मौके पर संबोधित करते हुए अलग अलग वक्ताओं ने स्वाईन फ्लू के लक्षणों व उनको फैलने से रोकने हेतु भरपूर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ऐसी बीमारियों से निबटने के लिए सबसे बेहतर होता है बचाओ। इस लिए ध्यान रखें हाथों को निरंतर धोएं, छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें, बीमार व्यक्ति से दूरी बनाए रखें व बीमार व्यक्ति को अलग कमरे में रखें। ज्ञात रहे कि एच1एन1 एक नया फ्लू है, जो लोगों में दमे की बीमारी पैदा कर रहा है। इस वायरस को सबसे पहले 18 मार्च 2009 को मैकसिको में पंछियों व सूअरों में पाया गया। इसके बाद यह बीमारी यूनाईटेड स्टेट व कनेडा में फैल गई। सूत्र बताते हैं कि अब तक इस बीमारी की चपेट में करीबन दुनिया भर के 209 देश आ चुके हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। उधर, डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार 24 जनवरी तक दुनिया भर में स्वाईन फ्लू से लगभग 14711 मौतें हुई, जबकि भारत में 1194 मौतें। इतना ही नहीं, इस बीमारी से ग्रस्त 28596 केस सामने आए थे।
संस्था ने करवाया अंतिम संस्कार
बठिंडा : स्थानीय समाज सेवी संस्था सहारा जन सेवा ने एक प्रवासी मजदूर का पूरी धार्मिक रीति के अनुसार अंतिम संस्कार करवाया। जानकारी के अनुसार गत दिवस दौरा पड़ने से संगत मंडी के नजदीक स्थित गांव बांडी में 50 वर्षीय प्रवासी मजदूर मखतयार सिंह की दौरा पड़ने से मौत हो गई थी, जिसका अंतिम संस्कार करने के लिए उसकी पत्नि व 5 वर्षीय बच्ची के पास पैसे नहीं थे। वो मदद के लिए दर ब दर भटक रही थीं, ऐसे में सहारा जन सेवा को सूचना मिली, जिन्होंने मामले की पूरी पैरवी करने के बाद मृतक का अंतिम संस्कार धार्मिक रसमों के साथ करवाया। ज्ञात रहे कि उक्त मजदूर राजस्थान का रहने वाला था, वो पिछले छह माह से उक्त गांव में मजदूरी कर रहा था।
घर में घुसकर की मारपीट, दो गंभीर घायल
बठिंडा : स्थानीय अमरपुरा बस्ती में गत रात उस समय तनाव का माहौल बन गया, जब एक घर में कुछ व्यक्तियों ने घूसकर मारपीट करना शुरू कर दिया। इस हादसे में घायल हुए लोगों को स्थानीय संस्था सहारा जन सेवा ने समय रहते स्थानीय सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया। सिविल अस्पताल में भर्ती घायल हरदेव सिंह ने बताया कि गत दिवस उसका पुत्र टोनी स्थानीय राशन डिपो पर तेल लेने के लिए गया। डिपो मालकों ने तेल देने से मना कर दिया, जिसके बाद वहां कहासुनी हो गई। इसके बाद मामला पूरी तरह शांत हो गया था, मगर आधी रात के करीब डिपो मालक अपने कुछ साथियों के साथ हमारे घर में आ धमका, जिन्होंने हमारे साथ बदसलूकी करते हुए मारपीट की। इस बाद वो मेरे बेटे टोनी को उठाकर ले गए, और उसके साथ खूब मारपीट गई। किसी ने संस्था को सूचना की, और संस्था के कार्यकर्ताओं ने घटनास्थल पर पहुंचकर इस घायल परिवार के सदस्यों को स्थानीय सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया। पुलिस ने घायल लोगों के बयान लेने के बाद शिकायत दर्ज करते हुए मामले की जांच शुरू कर दी है। सूत्र बताते हैं कि हरदेव सिंह व उसके पुत्र टोनी सिंह को काफी चोटें लगी हैं, जबकि अन्य सदस्य को मालूमी चोटें लगी।
शहीदे आजम व उसकी छवि
जब दिल्ली में बैठे हुक्मरान कहते हैं कि शहीदे आजम भगत सिंह हिंसक सोच के व्यक्ति थे, तो भगत सिंह को चाहने वाले, उनको आदर्श मानने वाले लोग दिल्ली के शासकों कोसने लगते हैं, लेकिन क्या यह सत्य नहीं कि शहीदेआजम की छवि को उनके चाहने वाले ही बिगाड़ रहे हैं।
अभी कल की ही बात है, एक स्कूटर की स्पिटनी वाली जगह पर लगे एक टूल बॉक्स पर भगत सिंह की तस्वीर देखी, जो भगत सिंह के हिंसक होने का सबूत दे रही थी। यह तस्वीर हिन्दी फिल्म अभिनेता सन्नी दिओल के माफिक हाथ में पिस्टल थामे भगत सिंह को प्रदर्शित कर रही थी। इस तस्वीर में भगत सिंह को निशाना साधते हुए दिखाया गया, जबकि इससे पहले शहर में ऐसी तमाम तस्वीरें आपने देखी होंगी, जिसमें भगत सिंह एक अधखुले दरवाजे में पिस्टल लिए खड़ा है, जो शहीदे आजम की उदारवादी सोच पर सवालिया निशान लगती है। जब महात्मा गांधी जैसी शख्सियत भगत सिंह जैसे देश भगत पर उंगली उठाती है तो कुछ सामाजिक तत्व हिंसक हो उठते हैं, तलवारें खींच लेते हैं, लेकिन उनकी निगाह में यह तस्वीर क्यों नहीं आती, जो भगत सिंह की छवि को उग्र साबित करने के लिए शहर में आम वाहनों पर लगी देखी जा सकती हैं।
यहां तक मुझे याद है, या मेरा अल्प ज्ञान कहता है, शायद भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर केवल सांडरस को उड़ाया था, वो भी शहीद लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, इसके अलावा किसी और हत्याकांड में भगत सिंह का नाम नहीं आया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर फिर भगत सिंह की ऐसी ही छवि क्यों बनाई जा रही है, जो नौजवानों को हिंसक रास्ते की ओर चलने का इशारा कर रही हो। ऐसी तस्वीरें क्यों नहीं बाजार में उतारी जाती, जिसमें भगत सिंह को कोई किताब पढ़ते हुए दिखाया जाए। उसको एक लक्ष्य को हासिल करने वाले उस नौजवान के रूप में पेश किया जाए, जो अपने देश को गोरों से मुक्त करवाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुका है। भगत सिंह ने हिंसक एक बार की थी, लेकिन उसका ज्यादातर जीवन किताबें पढ़ने में गुजरा है। भगत सिंह किताबें पढ़ने का इतना बड़ा दीवाना था कि वो किताब यहां देखता वहीं से किताब कुछ समय के लिए पढ़ने हेतु ले जाता था। जब भगत सिंह को फांसी लगने वाली थी, तब भी वो किसी रूसी लेखक की किताब पढ़ने में व्यस्त थे, भगत सिंह की जीवनी लिखने वाले ज्यादातर लेखकों का यही कहना है।
फिर भी न जाने क्यों पंजाब में भगत सिंह की उग्र व हिंसक सोच वाली तस्वीरों को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। पंजाब अपने बहादुर सूरवीरों व मेहमाननिवाजी के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है, लेकिन कुछ कथित उग्र सोच के लोगों के कारण पंजाब की साफ सुथरी छवि को ठेस लगी है, हैरत की बात तो यह कि बाहरी दुश्मनों को छठी का दूध याद करवाने वाला पंजाब अपने ही मुल्क में ब्लैकलिस्टड है, जिसके बारे में यहां के गृहमंत्री को भी पता नहीं।
हमारी राज्य सरकार, पानी की रॉल्यटी को लेकर पड़ोसी राज्यों से तू तू मैं मैं कर रही है, लेकिन वो भी उस पानी के लिए जो कुदरत की देन है, जिसमें पंजाब सरकार का कुछ भी योगदान नहीं, ताकि आने वाले चुनावों में लोगों को एक बार फिर से मूर्ख बनाया जाए कि हमारा पानी के मुद्दे पर संघर्ष जारी है। यह सरकार पंजाब को खुशहाल, बेरोजगारी व भुखमरी मुक्त राज्य क्यों नहीं बनाने की तरफ ध्यान दे रही, कल तक बिहार को सबसे निकम्मा राज्य गिना जाता था, लेकिन वहां हो रहा विकास बिहार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर सुधार रहा है, मगर पंजाब सरकार राज्य पर लगे ब्लैकलिस्टड के धब्बे को हटाने के लिए यत्न नहीं कर रही, यह धब्बा भगत सिंह पर लगे हिंसक सोच के व्यक्तित्व के धब्बे जैसा है, जिसको सुधारना हमारे बस में है। जितना क्रांतिकारी साहित्य भगत सिंह ने पढ़ा था, उतने के बारे में तो उनके प्रशंसकों ने सुना भी नहीं होगा। शर्म से सिर झुक जाता है, जब भगत सिंह की हिंसक तस्वीर देखता हूं, जिसमें उसके हाथ में पिस्टल थमाया होता है। चित्रकारों व अन्य ग्राफिक की दुनिया से जुड़े लोगों से निवेदन है कि भगत सिंह की उस तस्वीर की समीक्षा कर देखे व उस तस्वीर को गौर से देखें, जिसमें वो लाहौर जेल के प्रांगण में एक खटिया पर बैठा है, एक सादे कपड़ों में बैठे हवलदार को कुछ बता रहा है, क्या उसके चेहरे पर कहीं हिंसा का नामोनिशान नजर आता है। अगर भगत सिंह हिंसक सोच का होता तो दिल्ली की असंबली में बम्ब फेंककर वो धुआं नहीं फैलाता, बल्कि लाशों के ढेर लगाता, लेकिन भगत सिंह का एक ही मकसद था, देश की आजादी, सोए हुए लोगों को जगाना, लेकिन मुझे लगता है कि सोए हुए लोगों को जगाना समझ में आता है, लेकिन उन लोगों को जगाना मुश्किल है, जो सोने का बहाना कर रहे हैं, उस कबूतर की तरह जो बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेते है, और सोचता है कि बिल्ली चली गई। भगत सिंह जैसे शहीदों ने देश को गोरों से तो आजाद करवा दिया, लेकिन गुलाम होने की फिदरत से आजाद नहीं करवा सके। भगत सिंह जैसे सूरवीरों ने अपनी कुर्बानी राष्ट्र के लिए दी, ना कि किसी क्षेत्र, भाषा व एक विशेष वर्ग के लिए, लेकिन सीमित सोच के लोग, उनको अपना कहकर उनका दायरा सीमित कर देते हैं, जबकि भगत सिंह जैसे लोग यूनीवर्सल होते हैं। भगत सिंह की बिगड़ती छवि को बचाने के लिए वो संस्थाएं आगे आएं, जो भगत सिंह पर होने वाली टिप्पणी को लेकर मारने काटने पर उतारू हो जाती हैं।
अभी कल की ही बात है, एक स्कूटर की स्पिटनी वाली जगह पर लगे एक टूल बॉक्स पर भगत सिंह की तस्वीर देखी, जो भगत सिंह के हिंसक होने का सबूत दे रही थी। यह तस्वीर हिन्दी फिल्म अभिनेता सन्नी दिओल के माफिक हाथ में पिस्टल थामे भगत सिंह को प्रदर्शित कर रही थी। इस तस्वीर में भगत सिंह को निशाना साधते हुए दिखाया गया, जबकि इससे पहले शहर में ऐसी तमाम तस्वीरें आपने देखी होंगी, जिसमें भगत सिंह एक अधखुले दरवाजे में पिस्टल लिए खड़ा है, जो शहीदे आजम की उदारवादी सोच पर सवालिया निशान लगती है। जब महात्मा गांधी जैसी शख्सियत भगत सिंह जैसे देश भगत पर उंगली उठाती है तो कुछ सामाजिक तत्व हिंसक हो उठते हैं, तलवारें खींच लेते हैं, लेकिन उनकी निगाह में यह तस्वीर क्यों नहीं आती, जो भगत सिंह की छवि को उग्र साबित करने के लिए शहर में आम वाहनों पर लगी देखी जा सकती हैं।
यहां तक मुझे याद है, या मेरा अल्प ज्ञान कहता है, शायद भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर केवल सांडरस को उड़ाया था, वो भी शहीद लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, इसके अलावा किसी और हत्याकांड में भगत सिंह का नाम नहीं आया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर फिर भगत सिंह की ऐसी ही छवि क्यों बनाई जा रही है, जो नौजवानों को हिंसक रास्ते की ओर चलने का इशारा कर रही हो। ऐसी तस्वीरें क्यों नहीं बाजार में उतारी जाती, जिसमें भगत सिंह को कोई किताब पढ़ते हुए दिखाया जाए। उसको एक लक्ष्य को हासिल करने वाले उस नौजवान के रूप में पेश किया जाए, जो अपने देश को गोरों से मुक्त करवाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुका है। भगत सिंह ने हिंसक एक बार की थी, लेकिन उसका ज्यादातर जीवन किताबें पढ़ने में गुजरा है। भगत सिंह किताबें पढ़ने का इतना बड़ा दीवाना था कि वो किताब यहां देखता वहीं से किताब कुछ समय के लिए पढ़ने हेतु ले जाता था। जब भगत सिंह को फांसी लगने वाली थी, तब भी वो किसी रूसी लेखक की किताब पढ़ने में व्यस्त थे, भगत सिंह की जीवनी लिखने वाले ज्यादातर लेखकों का यही कहना है।
फिर भी न जाने क्यों पंजाब में भगत सिंह की उग्र व हिंसक सोच वाली तस्वीरों को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। पंजाब अपने बहादुर सूरवीरों व मेहमाननिवाजी के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है, लेकिन कुछ कथित उग्र सोच के लोगों के कारण पंजाब की साफ सुथरी छवि को ठेस लगी है, हैरत की बात तो यह कि बाहरी दुश्मनों को छठी का दूध याद करवाने वाला पंजाब अपने ही मुल्क में ब्लैकलिस्टड है, जिसके बारे में यहां के गृहमंत्री को भी पता नहीं।
हमारी राज्य सरकार, पानी की रॉल्यटी को लेकर पड़ोसी राज्यों से तू तू मैं मैं कर रही है, लेकिन वो भी उस पानी के लिए जो कुदरत की देन है, जिसमें पंजाब सरकार का कुछ भी योगदान नहीं, ताकि आने वाले चुनावों में लोगों को एक बार फिर से मूर्ख बनाया जाए कि हमारा पानी के मुद्दे पर संघर्ष जारी है। यह सरकार पंजाब को खुशहाल, बेरोजगारी व भुखमरी मुक्त राज्य क्यों नहीं बनाने की तरफ ध्यान दे रही, कल तक बिहार को सबसे निकम्मा राज्य गिना जाता था, लेकिन वहां हो रहा विकास बिहार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर सुधार रहा है, मगर पंजाब सरकार राज्य पर लगे ब्लैकलिस्टड के धब्बे को हटाने के लिए यत्न नहीं कर रही, यह धब्बा भगत सिंह पर लगे हिंसक सोच के व्यक्तित्व के धब्बे जैसा है, जिसको सुधारना हमारे बस में है। जितना क्रांतिकारी साहित्य भगत सिंह ने पढ़ा था, उतने के बारे में तो उनके प्रशंसकों ने सुना भी नहीं होगा। शर्म से सिर झुक जाता है, जब भगत सिंह की हिंसक तस्वीर देखता हूं, जिसमें उसके हाथ में पिस्टल थमाया होता है। चित्रकारों व अन्य ग्राफिक की दुनिया से जुड़े लोगों से निवेदन है कि भगत सिंह की उस तस्वीर की समीक्षा कर देखे व उस तस्वीर को गौर से देखें, जिसमें वो लाहौर जेल के प्रांगण में एक खटिया पर बैठा है, एक सादे कपड़ों में बैठे हवलदार को कुछ बता रहा है, क्या उसके चेहरे पर कहीं हिंसा का नामोनिशान नजर आता है। अगर भगत सिंह हिंसक सोच का होता तो दिल्ली की असंबली में बम्ब फेंककर वो धुआं नहीं फैलाता, बल्कि लाशों के ढेर लगाता, लेकिन भगत सिंह का एक ही मकसद था, देश की आजादी, सोए हुए लोगों को जगाना, लेकिन मुझे लगता है कि सोए हुए लोगों को जगाना समझ में आता है, लेकिन उन लोगों को जगाना मुश्किल है, जो सोने का बहाना कर रहे हैं, उस कबूतर की तरह जो बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेते है, और सोचता है कि बिल्ली चली गई। भगत सिंह जैसे शहीदों ने देश को गोरों से तो आजाद करवा दिया, लेकिन गुलाम होने की फिदरत से आजाद नहीं करवा सके। भगत सिंह जैसे सूरवीरों ने अपनी कुर्बानी राष्ट्र के लिए दी, ना कि किसी क्षेत्र, भाषा व एक विशेष वर्ग के लिए, लेकिन सीमित सोच के लोग, उनको अपना कहकर उनका दायरा सीमित कर देते हैं, जबकि भगत सिंह जैसे लोग यूनीवर्सल होते हैं। भगत सिंह की बिगड़ती छवि को बचाने के लिए वो संस्थाएं आगे आएं, जो भगत सिंह पर होने वाली टिप्पणी को लेकर मारने काटने पर उतारू हो जाती हैं।
स्वच्छ जल के लिए १२८०.३० करोड़ का प्रोजेक्ट : पुरी
नितिन/राकेश
बठिंडा। राज्य के गांवों में दूषित पानी के कारण बढ़ रही बीमारियों से निपटने के लिए राज्य सरकार की ओर से १२८०.३० करोड़ की लागत वाला पंजाब ग्रामीण जल सप्लाई व सेनिटेशन प्रोजेक्ट स्थापित कर राज्य के गांवों में पीने वाला साफ व सुरक्षित पानी मुहैया करवाया जाएगा, जो विश्व बैंक की वित्त सहायता से चलाया जा रहा है।
इस प्रोजेक्ट को कामयाब करने के लिए जल सप्लाई व सेनिटेशन विभाग के जिला प्रोग्राम प्रबंधन सेल, बठिंडा की ओर से विगत दिवस मेहता रिसोर्ट मौड़ मंडी में ब्लॉक मौड़ के १२ गांवों के पंच-सरपंचों व ब्लॉक समिति सदस्य के लिए पंचायती राज्य संस्थाओं के शक्तिकरण सबंधी ट्रेनिंग प्रोग्राम करवाया गया।
इस प्रोग्राम में ब्लॉक समिति मौड़ के चेयरमैन बलजिंदर सिंह पुरी बतौर विशेष मेहमान पहुंचे। इस मौके पर उन्होंने पंचायतों को आगे आने व गांवों को साफ पानी मुहैया करवाने के लिए जल सप्लाई की इस योजना को अपनाने व सफलतापूर्वक ढंग से चलाने को ही पंचायती राज्य की शक्तिकरण की एक मिसाल देकर प्रेरित किया।
इस मौके पर प्रोग्राम प्रबंधन सेल बठिंडा की ओर से अमनदीप सिंह, उप मंडल इंजीनियर, कुञ्लदीप गांधी, राजदीप सिंह बराड़, राजेंद्र सिंह व गुरइकबाल सिंह, गुरविंदर सिंह मान व बीडीपीओ गुरतेज सिंह उपस्थि थे।
महानगरी में नहीं सुधर रही है सड़कों की स्थिति, हादसों की भरमार
-करोड़ों खर्च करने पर भी नहीं हो सका है सड़कों की दशा में सुधार
-हर साल बढ़ रहा है सड़कों पर ट्रैफिक, नहीं हो रहा है सड़कों का विस्तार
बठिंडा। महानगर बठिंडा में दो सोसायटी ऐसी है जो सड़क हादसों में घायल लोगों को तत्काल चकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाती है। इसमें सहारा जन सेवा और नौजवान वैलफेयर सोसायटी प्रमुख है। इन दोनों संस्थानों की तरफ से अस्पतालों में पहुंचाने वाले मरीजों की बात करे तो प्रतिदिन १२ से १३ लोग हादसों का शिकार हो रहे हैं इसमें कई लोग मर भी जाते हैं। हर साल बठिंडा जिले में ही छह सौ के करीब लोग हादसों में अपाहिज होते हैं तो सौ के करीब मौत के मुंह में चले जाते हैं। इन हादसों के लिए ट्रैफिक अव्यवस्था के साथ हमारी डामाडोल सड़के काफी हद तक जिम्मेवार है। हमारी सड़कें देश की आजादी के बाद क्या कुछ हुआ है और क्या हो रहा है, उसका सही आईना हैं।
-हर साल बढ़ रहा है सड़कों पर ट्रैफिक, नहीं हो रहा है सड़कों का विस्तार
बठिंडा। महानगर बठिंडा में दो सोसायटी ऐसी है जो सड़क हादसों में घायल लोगों को तत्काल चकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाती है। इसमें सहारा जन सेवा और नौजवान वैलफेयर सोसायटी प्रमुख है। इन दोनों संस्थानों की तरफ से अस्पतालों में पहुंचाने वाले मरीजों की बात करे तो प्रतिदिन १२ से १३ लोग हादसों का शिकार हो रहे हैं इसमें कई लोग मर भी जाते हैं। हर साल बठिंडा जिले में ही छह सौ के करीब लोग हादसों में अपाहिज होते हैं तो सौ के करीब मौत के मुंह में चले जाते हैं। इन हादसों के लिए ट्रैफिक अव्यवस्था के साथ हमारी डामाडोल सड़के काफी हद तक जिम्मेवार है। हमारी सड़कें देश की आजादी के बाद क्या कुछ हुआ है और क्या हो रहा है, उसका सही आईना हैं।
मकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा अप्रैल में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, लगभग आठ करोड़ लोग शहरों की मलिन बस्तियों में रहते हैं। ये वे लोग हैं, जो रोजी-रोटी के लिए शहरों में आए हैं। इनके लिए न चमकती-दमकती मोटरगाडिय़ां हैं और न एयरकंञ्डीशंड लो-फ्लोर बसें। ये पैदल, साइकिल और यदा-कदा मोटर बाइक पर दिखते हैं। सडक़ों पर इनके लिए सुरक्षित पृथक लेन राज्य के अधितक महामार्गो में भी नहीं हैं। जहां हैं भी, वहां पाकिग और सामान बेचने के लिए उन पर व्यापारियों या रेहड़ी चालकों ने कब्जा कर रखा है। पुलिस को हफ्ते से मतलब है, उनकी सुरक्षा से नहीं। ऐसे में उक्त लोग सड़कों पर आवागमन करने के लिए मजबूर होते हैं व यदाकदा हादसों का शिकार हो जाते हैं। वर्तमान में अगर हादसे के शिकार लोगों की तादाद देखे तो इसी तरह के लोग बड़ी गाडि़यों का शिकार होते हैं। सार्वजनिक परिवहन में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष १९९४ में यातायात में सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा ४० प्रतिशत था, जो अभी ३० प्रतिशत हो गया है, परंतु निजी गाड़ियों की संチया लगातार बढ़ती जा रही है। नए-नए मॉडल रोज आ रहे हैं, जो आकार की दृष्टि से पहले की अपेक्षा काफी बडे़ हैं। भीड़भाड़ के समय १९९४ की अपेक्षा आज सडक़ पर ५० प्रतिशत अधिक गाड़ियां आ गई हैं। वर्ष २०२० आते-आते आज की तुलना में तिगुनी गाड़ियां सडक़ों पर दिखेंगी। दूसरी तरफ सड़कों का आकार व स्थिति वही चालिस साल पहले वाली बनी हुई है। इससे हादसे को बढ़ते है साथ ही यातायात जाम होने की समस्या निरंतर बनी रहती है।
समाज के एक छोटे से तबके को राष्ट्रीय आय का अधिकांश प्राप्त हो रहा है। इसी का परिणाम है कि महंगाई के दिनों में भी कारों की खरीदारी धड़ल्ले से बढ़ रही है। पिछले वर्ष मई में देश भर में १,१३,८१० गाड़ियां बिकीं, जबकि इस साल मई में १,१४,४८१ गाड़ियों की बिक्रञ्ी हुई। बठिंडा में ही हर साल सैकड़ों नए वाहन सड़कों पर उतर रहे हैं। एशिया में भारत मोटर वाहनों का तीसरा बड़ा बाजार बन गया है। नव धनाढ्य परिवारों में औसतन दो से तीन मोटर गाडिय़ां हैं। पार्किंग को लेकर आए दिन गली-मुहल्लों के साथ बाजारों में हिंसक झड़पें होने लगी हैं। गाड़ीवालों की मनोवृति भी अलग-सी है। सड़कों पर अंधाधुंध गाडिय़ां चलाना आम बात है। पांच लाख रुपये की गाड़ी वाला पांच कौड़ी वाले आदमी की परवाह नहीं करता है और सामने आने पर गाड़ी भी नहीं रोक ता है। परिवहन के कायदे-कानूनों को ये नवधनाढ्य धता बताते हैं। रसूख और पैसे वाले इन लोगों का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। ऐसे में, सडक़ों की हालत में बहुत सुधार संभव नहीं है, भले ही सरकार जितने भी पैसे लगाए और इरादे करे। भ्रष्टाचार का दैत्य भारी बाधा है। सड़कों में कानून की अवहेलना कर शराब पीकर वाहन चलाना आम बात है वही इस बाबत बने कडे़ नियमों की पालना भी लोग नहीं करते हैं। इन धनाढ़य लोगों को अगर पुलिस कभी गलती से हाथ डाल लेती है तो पैसे दिखाकर आसानी से निकल जाते हैं। जब कानून पैसे के दम पर जेब में रखा जा सकता है तो फिर नियमों को मानने व उनकी पालना करने की जरूरत नहीं होती है, ऐसे में अगर उक्त लोग किसी गली मुहल्ले में किसी के बच्चे को कुचल दे या फिर मजदूर को फेट मार दे तो उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं होती है।
ऐसी मानसिकता से ग्रस्त हो चुके समाज में ट्रैफिक नियमों को लागू करना डेढ़ी खीर से कम नहीं है। इसके इलावा महानगरों में ट्रकों व कारों की संख्या में भारी वृद्धि के साथ अप्रशिक्षित चालकों की भरमार हो रही है। परिवहन विभाग में भी तय नियम को तोड़कर किसी को भी लाइसेंस जारी कर दिया जाता है अब कार व ट्रक के कुछ फक्सन आते हो और गाड़ी दौड़ती है तो वह सुगमता से ड्राइवर की डिग्री ले लेता है इसके बाद वह सड़क में कुछ भी करने का लाइसेंस भी हासिल कर लेता है? वर्तमान में सड़क हादसों को रोकने के लिए सड़क प्रबंधन को बेहतर बनाने के साथ ट्रैफिक नियमों की सख्ती से पालना करवाना जरूरी है । हमारे यहां इसका अभाव है। नशे में धुत्त चालकों की संख्या व उनसे होने वाले हादसे बढ़ रहे हैं, अब पुलिस चाहे जो दावे करे।
समाज के एक छोटे से तबके को राष्ट्रीय आय का अधिकांश प्राप्त हो रहा है। इसी का परिणाम है कि महंगाई के दिनों में भी कारों की खरीदारी धड़ल्ले से बढ़ रही है। पिछले वर्ष मई में देश भर में १,१३,८१० गाड़ियां बिकीं, जबकि इस साल मई में १,१४,४८१ गाड़ियों की बिक्रञ्ी हुई। बठिंडा में ही हर साल सैकड़ों नए वाहन सड़कों पर उतर रहे हैं। एशिया में भारत मोटर वाहनों का तीसरा बड़ा बाजार बन गया है। नव धनाढ्य परिवारों में औसतन दो से तीन मोटर गाडिय़ां हैं। पार्किंग को लेकर आए दिन गली-मुहल्लों के साथ बाजारों में हिंसक झड़पें होने लगी हैं। गाड़ीवालों की मनोवृति भी अलग-सी है। सड़कों पर अंधाधुंध गाडिय़ां चलाना आम बात है। पांच लाख रुपये की गाड़ी वाला पांच कौड़ी वाले आदमी की परवाह नहीं करता है और सामने आने पर गाड़ी भी नहीं रोक ता है। परिवहन के कायदे-कानूनों को ये नवधनाढ्य धता बताते हैं। रसूख और पैसे वाले इन लोगों का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। ऐसे में, सडक़ों की हालत में बहुत सुधार संभव नहीं है, भले ही सरकार जितने भी पैसे लगाए और इरादे करे। भ्रष्टाचार का दैत्य भारी बाधा है। सड़कों में कानून की अवहेलना कर शराब पीकर वाहन चलाना आम बात है वही इस बाबत बने कडे़ नियमों की पालना भी लोग नहीं करते हैं। इन धनाढ़य लोगों को अगर पुलिस कभी गलती से हाथ डाल लेती है तो पैसे दिखाकर आसानी से निकल जाते हैं। जब कानून पैसे के दम पर जेब में रखा जा सकता है तो फिर नियमों को मानने व उनकी पालना करने की जरूरत नहीं होती है, ऐसे में अगर उक्त लोग किसी गली मुहल्ले में किसी के बच्चे को कुचल दे या फिर मजदूर को फेट मार दे तो उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं होती है।
ऐसी मानसिकता से ग्रस्त हो चुके समाज में ट्रैफिक नियमों को लागू करना डेढ़ी खीर से कम नहीं है। इसके इलावा महानगरों में ट्रकों व कारों की संख्या में भारी वृद्धि के साथ अप्रशिक्षित चालकों की भरमार हो रही है। परिवहन विभाग में भी तय नियम को तोड़कर किसी को भी लाइसेंस जारी कर दिया जाता है अब कार व ट्रक के कुछ फक्सन आते हो और गाड़ी दौड़ती है तो वह सुगमता से ड्राइवर की डिग्री ले लेता है इसके बाद वह सड़क में कुछ भी करने का लाइसेंस भी हासिल कर लेता है? वर्तमान में सड़क हादसों को रोकने के लिए सड़क प्रबंधन को बेहतर बनाने के साथ ट्रैफिक नियमों की सख्ती से पालना करवाना जरूरी है । हमारे यहां इसका अभाव है। नशे में धुत्त चालकों की संख्या व उनसे होने वाले हादसे बढ़ रहे हैं, अब पुलिस चाहे जो दावे करे।
विशाल मैगामार्ट ने दी ३० छात्रों को पैलेसमेंट
-बाबा फरीद संस्थान में आयोजित किया गया विशाल कैंप
बठिंडा। बाबा फरीद ग्रुप आप इंस्टीच्यूशन की तरफ से साल २०१० पलेसमेंट को समर्पित नारे को हकीकत में बदलने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इन्हीं प्रयासों के अधीन संस्था में मैगा जाब फेयर का आयोजन किया जा रहा है। इसमें ३८ कंपनियों ने हिस्सा लिया व इसके बाद लगातार विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियों की प्लेसमेंट ड्रइव का आयोजन करवाया जा रहा है। इस कड़ी के तहत ११ जुलाई को संस्था में विशाल मैगा मार्ट ग्रुप की तरफ से एक प्लेसमेंट ड्राइव करवाई गई। जिक्रयोग्य है कि विशाल मैगामार्ट कंपनी देश की प्रसिद्ध कंपनी है जिसके बठिंडा सहित देश के लगभग सभी बडे़ शहरों में स्टोर खोल रखे हैं।
संस्था में आयोजित प्लेसमेंट ड्राइव में बाबा फरीद संस्था के साथ इस क्षेत्र की दूसरी संस्थाओं के छात्रों ने भी हिस्सा लिया। इस कैंप का मुख्य लक्ष्य संस्था के छात्रों के इलावा मालवा के विभिन्न क्षेत्रों में बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करना है। इस प्लेसमेंट ड्राइव में सौ से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया। विशाल मैगामार्ट कंपनी के जयवीर सिंह ने संस्था की तरफ से किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा की व छात्रों की योग्यता पर भी संतुष्टी जताई। इस कैंप में तीस छात्रों का चुनाव बतौर स्टोर मैनेजर के तौर पर की गई जो देश के विभिन्न हिस्सों में काम करेंगे। इसमें छात्रों की योग्यता के आधार पर उन्हें दो लाश से साढे़ तीन लाख रुपये का वार्षिक पैकेज दिया जाएगा। बाबा फरीद संस्थान के प्रबंधकीय निर्देशक गुरमीत सिंह धालीवाल ने चुने गए छात्रों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि संस्था इस तरह के प्रयास आगे भी जारी रखेगी जिससे शिक्षा हासिल कर रोजगार की तलाश करने वाले सौकड़ों छात्रों को लाभ मिलेगा।
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