Wednesday, July 7, 2010

शायद उलझन में इंद्रदेव

जब वो मल्हार राग में शिव स्तुति गाती है तो इंद्रदेव इतने खुश होते हैं कि पूरे क्षेत्र को जलमग्न कर देते हैं। उसका जन्म गजियाबाद के एक अमीर परिवार में हुआ था और उसका ब्याह भी एक अमीर घर में, लेकिन वो सादगी भरा जीवन जीने में विश्वास करती थी, वो आज जिन्दा है या नहीं पता नहीं, लेकिन जब इंद्रदेव को खुश करना होता तो लोग उसके द्वार जाते थे। कुछ ऐसा ही किस्सा बता रहा था संकट मोचन मंदिर के निकट एक बिजली की दुकान पर एक भद्र पुरुष। आज से पहले तानसेन के बारे में तो सुना था कि वो दीपक राग गाकर दीए जला देते थे, लेकिन उक्त किस्सा पहली दफा सुनने में आया, हो सकता है सच भी हो और काल्पनिक भी। मगर हम इंद्रदेव को मनाने के लिए तरह तरह के ढंग तो अपनाते ही हैं। मुझे याद है जब हम गांव में रहते थे, सावन का महीना बीतते वाला होता, और गांव में एक बूंद पानी तक न टपकता, तब लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए डेरा बाबा भगवान दास में पहुंचकर चावलों का यज्ञ करते, और इंद्रदेव खुश हो भी जाता था। इस डेरे का इतिहास भी तो बारिश से जुड़ा हुआ है। एक बार की बात है कि गांव में बारिश नहीं हो रही थी, और लोग इंद्र देव को मनाने के लिए तरह तरह के पैंतरे अजमा रहे थे। इन दिनों गांव के खेतों में एक साधु आया हुआ था, गांवों ने उनसे बिनती बगैरह किया, उन्होंने संतों के कहने अनुसार सब कुछ किया। जब गांव वासी डेरे में पहुंचे तो संत बोले 'तुम लोग छत्रियां क्यों नहीं लेकर आए, लोग चकित रह गए, धूप चढ़ी हुई है, बादलों का नामोनिशान नहीं, संत कहीं पागल तो नहीं हो गया। जैसे यज्ञ खत्म होने के किनारे पहुंचा तो बादल ऐसे बरसे कि गांव वासी संत के चरणों में जा गिरे। यह तो बस एक विश्वास की बात है, अगर विश्वास है तो धन्ने भगत जैसे पत्थरों से भगवान के दीदार कर लेते हैं। पिछले दो दिनों से इंद्रदेव बठिंडा में बरसने के लिए उतावला है, लेकिन न जाने क्या सोच कर खुद को रोके हुए है। हो सकता है कि बठिंडा नगर निगम व नहरी विभाग की खामियों से इंद्रदेव अच्छी तरह अवगत हैं। पिछले हफ्ते इंद्रदेव ने बठिंडा वासियों को खुश करने की छोटी सी कोशिश की थी, लेकिन नतीजा शहर में अधिकतर क्षेत्रों में बारिश का पानी जमा हो गया। लोगों को आने जाने में दिक्कतें पेश आने लगी। इतना ही नहीं, कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो बारिश के पानी के कारण रजबाहे टूट गए, किसानों की खड़ी फसलें बर्बाद हो गई। इंद्रदेव तो पिछले दो दिन से निरंतर बरसने के मूड में है, लेकिन नहरी विभाग व नगर निगम की कार्यगुजारी के चलते इंद्रदेव का बरसना भी लोगों पर भारी पड़ सकता है। वैसे इंद्रदेव ने लोगों को थोड़ी सी राहत देने के लिए हवाओं में नमी भर दी है। पंजाब में अब तक इंद्रदेव जहां जहां अभी तक बरसा है, वहां से फसलों के बर्बाद होने की ख़बर आ रही हैं, चाहे वो पटिआला हो या दोआबे का क्षेत्र। सरकारों व निगमों की कार्यगुजारी के बाद इंद्रदेव को एक कुम्हार की कहानी याद आ रही होगी, या तो बर्तन वाली या फिर फसल वाली। एक कुम्हार के दो बेटियां होती हैं, दोनों की शादी एक ही गांव में हुई होती है, एक बार उन से मिलने के लिए कुम्हार उस गांव जाता है। पहली बेटी से मिलता है जो एक कुम्हार के साथ ही ब्याही होती है, वो खुश है कि उसके बर्तन सूखने वाले हैं, और इंद्रदेव नहीं बरसे। वो यहां अपनी दूसरी बेटी के घर जाता जो एक किसान को ब्याही होती है। वो दुखी है, क्योंकि इंद्रदेव अभी तक बरसा नहीं था। वो अपने पिता से कहती है कि दुआ करो रब्ब से बारिश हो जाए। कुम्हार असमंजस में पड़ जाता है कि आखिर किस को बचा लूं और किसको डुबो दूं। कुछ ऐसी ही स्थिति में शायद इंद्रदेव उलझा हुआ है।

कुलवंत हैप्पी
76967-13601

Tuesday, July 6, 2010

भैसों के साथ वाहन चोरी का भी करने लगे थे धंधा

-पुलिस ने आठ लोगों के साथ वाहन पकडे़, तीन मौके से फरार 
बठिंडा। पिछले कुछ साल से दूध की कीमतों में हो रही बेहताश बढ़ोतरी ने भैसों के दाम में भी उछाल ला दिया। मात्र दस हजार रुपये में मिलने वाले भैस का मूल्य २५ हजार क्या पहुंचा, चोरों ने घरों में सेध मारने की बजाय भैसों को चोरी करना शुरू कर दिया। इसमें भी तसल्ली नहीं हुई तो उक्त लोगों ने वाहनों को चोरी कर बेचने का धंधा भी शुरू कर दिया। पुलिस के अनुसार उक्त लोग पंजाब सहित आसपास के क्षेत्र से कई वाहन चोरी कर आगे बेच चुके हैं।  चोरों ने जिले में एक नहीं बल्कि दर्जनों भैसे व वाहन चोरी कर आगे बेचकर मोटी कमाई की लेकिन हो रही भैसे व वाहन चोरी की घटनाओं ने पुलिस की नाक में दम कर दिया। इसके चलते अब तक सो रही पुलिस ने गिरोह की तलाश शुरू कर दी व गत दिवस इस गिरोह के कई  सदस्यों को धर दबोचा। इन लोगों के पास कई वाहन व हथियार भी बरामद किए गए है। गिरोह का पर्दाफाश करने में नथाना पुलिस ने सफलता हासिल की। नथाना पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर छापेमारी कर गिरोह के आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया है,जबकि तीन सदस्य मौके पर फरार होने में सफल रहे। पुलिस ने गिरोह के ११ सदस्यों पर मामला दर्ज कर फरार तीनों आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार उक्त गिरोह किसी घर में डाका मारने की योजना तैयार कर रहा था। इस गिरोह के सदस्य बठिंडा के अलावा जिले के समीप क्षेत्रों के रहने वाले हैं। पुलिस ने उक्त गिरोह से चार मोटरसाईकिल, एक कार व दो १२ बोर देसी पिस्तौल व छह जिंदा कारतूस बरामद किए है। जानकारी अनुसार नथाना थाना के एसआई हरजीत सिंह ने बताया कि महानगर में पिछले लंबे समय से विभिन्न क्षेत्रों से वाहन चोरी होने की घटनाएं घटित हो रही थी। इन घटनाएं घटित होने से जिला पुलिस काफी समय से इस वाहन चोर गिरोह की तलाश में जुटी हुई थी। जिला पुलिस ने अज्ञात व्यक्ति पर केस दायर कर कार्रवाई शुरु की हुई थी। पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई में खुलासा हुआ कि कुछ  लोगों ने एक गिरोह बना रखा है जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे  हैं। एसआई हरजीत सिंह ने बताया कि आरोपी रेमश सिंह पुत्र बहादुर सिंह, हरदीप सिंह पुत्र जीत सिंह, गगनदीप सिंह पुत्र बचितर सिंह, सुखेदव सिंह पुत्र हरनाम सिंह, बलजीत सिंह पुत्र मेजर सिंह, बलविंद्र सिंह पुत्र सीता सिंह, तेजू सिंह पुत्र  जंगीर सिंह, जसवंत सिंह पुत्र  ताना सिंह, लक्ष्मण सिंह पुत्र नछतर सिंह, कुलविंद्र सिंह पुत्र रेमश सिंह व सलीम खां पुत्र नवाब खां ने मिलकर एक गिरोह का गठन कर रखा था, जोकि पिछले लंबे समय से महानगर में  वाहन चोरी घटनाओ को अंजाम दे रहा है। पुलिस द्वारा की जा रही जांच पड़ताल में  यह भी पता चला है कि उक्त गिरोह सबसे पहले जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्र से भैसे चोरी करता था और उन्हें आगे बेच देता था, अब तक उक्त गिरोह सैकड़ो भैसें चोरी कर चुके हैं। उन्होने बताया कि भैसे चोरी करते हुए इस गिरोह के हौसले इतने बुलंद हो गए कि उन्हें ने शहर से वाहन चोरी करना शुरु कर दिये। उन्होने बताया कि पुलिस को गुप्त सूचना मिली की उक्त गिरोह विगत दिवस हथियारों से लेंस होकर किसी घर में डाका मारने की योजना बना रहे थे। पुलिस टीम ने गुप्त सूचना के आधार पर छापेमारी कर गिरोह के आठ सदस्यों को मौके पर काबू कर लिया, जबकि तीन सदस्य मौके पर फरार होने में सफल रहे। गिरोह सदस्यों से पूछताछ करने पर  एक कार, चार मोटरसाईकिल व दो देसी पिस्तौल व छह जिंदा कारतूस बरामद किए है। नथाना पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए गिरोह के सभी सदस्यों पर आईपीसी की धारा ३९९,४०२,४११ केञ् तहत मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है।

राष्ट्रीय स्तर के शिविर में भाग लेंगी सेंट जेवियर की छात्राएं

मन में पूरा विश्वास लेकर चल रही है,  लक्ष्य है अंतिम 16 सदस्यीय टीम में पहुंचना
पूरे पंजाब से तीन लडकियों का हुआ चुनाव,  वो भी बठिंडा की लड़कियां
बठिंडा : शहर का नाम खेल जगत में समय समय पर अलग अलग खेल प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेकर अपनी प्रतिभा लोहा मनवाने वाले खिलाड़ियों ने विश्व स्तर पर रोशन किया है। इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए स्थानीय सेंट जेवियर कान्वेंट स्कूल की तीन छात्राओं ने हैंडबाल के राष्ट्रीय स्तर के कैंप में अपना स्थान बनाया है, जो आज से हरियाणा के जिला सिरसा में शुरू होने जा रहा है। यह कैंप करीबन 42 दिन तक चलेगा, जिसमें देश भर से 25 महिला खिलाड़ी भाग लेंगी, और अपने हुनर का लोहा मनवाते हुए अंतिम 16 में अपनी जगह बनाएंगी। बहरहाल, बठिंडा वासियों व खेल प्रेमियों के लिए दिलचस्प बात तो यह है कि इस शिविर में भाग लेने वाली 25 महिला खिलाड़ियों में से तीन तो केवल बठिंडा स्थित सेंट जेवियर स्कूल की हैं, अगर वो इस शिविर में सफल होती हैं तो वो भारतीय टीम के साथ कैमरून की धरती पर अपने हुनर का लोहा मनवाने पहुंचेगी, जिस से देश का ही नहीं बल्कि राज्य व जिले का भी नाम रोशन होगा।

इस बाबत जानकारी देते हुए कोच दविंद्र पाल सिंह ने बताया कि इससे पहले अनमोल कौर ढिल्लों, अजशनजोत चीमा व नवप्रीत कौर मान सिरसा में 27 मई से 24 जून तक आयोजित किया गया, राष्ट्रीय स्तरीय शिविर में भाग ले चुकी हैं, और आज से सिरसा में शुरू होने वाले एक और शिविर में भाग लेने जा रही हैं, जो 42 दिन तक चलेगा। जिसके बाद कैमरून में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए एक सोलह सदस्यीय टीम चुनी जाएगी। उन्होंने बताया कि इन्होंने शिविर के लिए कड़ी तैयारी की है, और इनको खुद पर पूरा भरोसा है कि अंतिम 16 में वो अपनी जगह बनाकर बठिंडा लौटेंगी।

औरतों के हक से खिलवाड़

एक मजबूत जनतंत्र में महिलाओं के मुद्दे को कितनी आसानी से समुदाय के कर्णधारों के हवाले छोड़ दिया गया। उन्हें आज तक बराबरी का पूर्ण नागरिक अधिकार क्यों नहीं मिल पाया, जिसमें वे अपने मसले संविधान प्रदत्त कानूनों के मातहत निपटाएं। आजादी के 62 साल बाद भी यह स्थिति क्यों बनी हुई है। समुदाय विशेष के धर्मगुरुओं, मौलवियों या कर्णधारों के हाथों उसके सदस्यों के भविष्य का फैसला करने का अधिकार होना चाहिए, यह मांग तो खाप पंचायतों की भी है कि वे अपनी परंपरानुसार कानून का इस्तेमाल कर सकें। ये खाप पंचायतें और समुदाय आधारित संस्थाएं- जो धार्मिक वैधता भी हासिल होने का दावा करती हैं, पहले से ही महिलाओं पर नियंत्रण की ढेरों नीतियां और नियम बनाए हुए हैं। सरकार और प्रशासन के लोग ऐसे मामलों में आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, यह कह कर कि यह धार्मिक मामला है। हाशिए के सभी लोगों के लिए जिसमें महिलाएं भी हैं, मुक्तिदायी कानूनों की जरूरत है। ये मुक्तिदायी कानून सभी को बराबर का हक दें और समुदायों की मनमानी नहीं चलने पाए। महिलाएं सर्वप्रथम एक व्यक्ति, एक नागरिक हों न कि एक समुदाय या धर्मविशेष की सदस्य। ध्यान देने लायक बात है कि भारत जैसे बहुधर्मीय मुल्क में ही नहीं सऊदी अरब जैसे मुस्लिम बहुल मुल्क में भी मुस्लिम महिलाओं के बीच नई जागृति आने के संकेत मिल रहे हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि किस तरह सऊदी में धार्मिक पुलिस के खिलाफ बढ़ते गुस्से का असर उजागर हो रहा है। पता चला कि एक महिला ने तो एक धार्मिक पुलिस पर गोली चलाई थी।
दरअसल, जबरन लोगों को काबू में रखने की एक सीमा होती है और देर-सवेर इसका प्रतिरोध होता ही है। वह प्रतिरोध कितना सुनियोजित, मजबूत और प्रभावी होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग कितने संगठित होंगे।

राशन कार्ड न देने से भड़के लोग, डिपो होल्डर के खिलाफ की नारेबाजी

-डिपो होल्डर ने कहा इंस्पेटर के आने के बाद जारी होंगे कार्ड 
बठिंडा। दुग्गल पैलेस के पास स्थित राशन डिपो में अनियमियतताओं को लेकर लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। इसमें लोगों ने आरोप लगाया कि डिपो संचालक मनमाने ढंग से काम करता है व लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कुछ समय पहले जिला खुराक विभाग की तरफ से राशन कार्ड जारी किए गए थे। इसमें डिपो होल्डर के पास सैकड़ों कार्ड बकाया पडे़ हैं लेकिन वह इन्हें जारी करने में आनाकानी की जा रही है। डिपो होल्डर करतार सिंह से जब संपर्क किया जाता है तो कहा जाता है कि विभाग के इस्पेक्टर आकर कार्ड वितरित करेगा। इसमें लोगों को प्रतिदिन डिपो में बुला लिया जाता है लेकिन उन्हें हर बार निराशा का सामना करना पड़ रहा है।
ईलाका वासी सूरज ने बताया कि दुग्गल पैलेस के पास स्थित गुरुकुल रोड पर करतार सिंह डिपो होल्डर को नए राशन कार्ड देने के लिए कई बार लोगों ने गुहार लगाई लेकिन इसमें किसी तरह की सफलता नहीं मिल सकी। अन्य दिनों की तरह आज मंगलवार को जब इलाके के ६० के करीब परिवार वहां पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि फूड सप्लाई विभाग का इंस्पेक्टर जब आएगा को कार्ड वितरित किए जाएंगे। इसके बाद वहां खडे़ लोगों ने एक घंटे तक इंतजार किया लेकिन किसी तरह की सफलता नहीं मिलने पर लोगों ने वहां खडे़ होकर नारेबाजी करना शुरू कर दी। इसमें डिपो होल्डर के साथ प्रशासकीय अधिकारियों के खिलाफ भी नारेबाजी की गई। लोगों ने प्रशासन से इस बाबत लोगों को पेश आ रही परेशानी का तत्काल हल निकालने की मांग रखी।  

तहसील दफ्तर बने भ्रष्टाचार के अड्डे, लगती है करोडो की चपत

-सरकार चाहकर भी नहीं कर पाती है कानूनी कार्रवाई 
-लुधियाना कांड में जिला प्रशासन की कारगुजारी भी आ चुकी है  शक के दायरे में  
हरिदत्त जोशी 
बठिंडा। पंजाब की तहसील परिसरों में व्याप्त भ्रष्ट्राचार को रोकने के लिए किसी भी सरकार ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया है। वतर्मान में हालात यह है कि तहसील दफ्तरों में नीचले स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक भ्रष्ट्राचार का बौलबाला है। इसमें जहां अधिकारी और कमर्चारी अपनी जेबे भरने में लगे हैं वही सरकार को हर साल करोडों की चपत लगती है। दो नंबर में होने वाली कमाई का ही नतीजा है कि इस विभाग में एक अर्जी नवीस से लेकर सामान्य कलर्क भी लाखों की कमाई कर आलीशान बंगलों के मालिक बने हुए है। 
कई तहसील दफ्तरों में तो प्राइवेट स्तर पर रजिस्ट्री लिखने वाले ही लाखों में खेलते हैं। इस मामले में भ्रष्ट्रचार को उच्च अधिकारी से लेकर नीचले स्तर पर राजनेता जमकर प्रोत्साहन देते हैं। यही कारण है कि अगर जिला इकाई में सत्तापक्ष से जुडा़ कोई भी समारोह हो या फिर सरकारी समागम किया जाए सबसे अधिक बगार (अवैध वसूली के पैसे से समागम का खर्च) पूरा करने का जिम्मा इसी विभाग पर होता है। अब भ्रष्ट्रचार की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन  यह होता कैसे हैं इसके बारे में कही जिक्र नहीं हुआ है, चलो हम बताते है कि तहसील दफ्तर में दो नंबर की कमाई कैसे की जाती है।एक जिला स्तर के तहसील दफ्तर में  प्रतिदिन डेढ़ सौ के करीब रजिस्ट्री, इंतकाल और बयाने किए जाते हैं। 
सामान्य तौर पर जिला प्रशासन की तरफ से हर क्षेत्र में जमीनों की खरीद और बिक्री करने के लिए सरकारी मूल्य निर्धारित कर रखे हैं। दूसरी तरफ जिले में क्षेत्र में मिलने वाली सुविधा के अनुसार व्यापारी व प्रार्पटी डीलर जमीन को मोटे दाम में बेच देता है। इसमें एक जमीन जो दस से १५ हजार रुपये प्रतिगज बेची गई उसमें स्टाप ड्यूटी व आयकर बचाने के लिए मिलीभगत कर जमीन को मात्र एक हजार रुपये प्रति गज बिका दिखा दिया जाता है। इस तरह लाखों रुपये की सरकारी फीस सीधे तौर पर चोरी कर ली जाती है। इस काम के बदले तहसील दफ्तर में रजिस्ट्री करने वाले कमर्चारी व अधिकारियों को एक मुस्त राशि दो नंबर में दी जाती है। इस तरह एक अनुमान के अनुसार एक तहसील दफ्तर में प्रतिदिन दो से तीन लाख रुपये की अवैध कमाई की जाती है। इसमें अधिकारी व  कर्मचारी तो एक माह में करोड़ो कमा लेते हैं लेकिन सरकार को इससे दो गुणा चपत लगा दी जाती है। अब सवाल उठता है कि करोडों की कमाई में हिस्सा किस-किस को जाता है। सीधा जा जबाव मिलेगा इसमें हिस्सेदारी कई लोगों की होती है। तभी तो जिला प्रशासन कभी भी इस अवैध कमाई को रोकने का प्रयास नहीं करता और विभागीय स्तर पर भी इस विभाग के खिलाफ आज तक कानूनी कार्र्वाई नहीं हो सकी है। एक साल पहले लधियाना जिले में तहसीलदार और राजनेताओं के बीच तकरारबाजी और मारपीट की घटना अखबारों की सुरखी में रही। 
इसमें एक जमीन को लेकर तहसीलदार की पिटाई की गई कि वह जमीन के कम मूल्य पर रजिस्ट्री करने को तैयार नहीं हो रहा था। सभी दूध के धुले नहीं होते, मामला जांच की दायरे में आया तो पता चला कि राज्य की अन्य तहसीलों की तरह वहां भी पैसे बटोरने का गौरखधंधा जोर शोर से चलता है इसमें हिस्सेदारी डीसी दफ्तर तक पहुंचती है। वहां से सरकार में बैठे लोगों को भी हिस्सा पहुंचता है। अखिर सरकारी खजाने को लूटने वाली इन गतिविधियों को प्रोत्साहन देने वाले लोग किसी एक दल से नहीं जुडे़ है बलिक हर राजनीतिक दल ने अपने सरकार गठन के बाद इस भ्रष्ट्रचार को हवा दी है और अपनी जेबे भरी है। दिखावे के लिए कानून बने लेकिन वह भी भारी जबाव में कागजों तक ही सिमटकर रह गए। जब तहसील में बैठे अधिकारी व कर्मचारी मोटी कमाई करने में लगे है तो वहां अरजीनवीस, स्टाम पेपर बेचने वाले कर्मी से लेकर नक्शा बनाने वाले भी लोगों को जमकर लूटने का धंधा करते हैं। 
रजिस्ट्री लिखने वाले लोग सीधा पैसा लोगों से लेकर अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। इसमें बकायदा रजिस्ट्री करवाने को कहा जाता है कि पूरे खर्च के साथ तहसीलदार का हिस्सा उन्हें देना पडे़गा। इस तरह की अवैध कमाई के धंधे में हो रही बेसुमार कमाई का नतीजा है कि यहां सरकार से मात्र दस हजार रुपये प्रतिमाह वेतन लेने वाला कर्मचारी भी आज लाखों की जमीन व मकान का मालिक है। इस मामले में आयकर विभाग ने भी कभी इन मगरमच्छों पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की है। अगर इन लोगों की जायदाद और आय की जांच की जाए तो होने वाले गोलमाल का पता चल सकता है। दूसरी तरफ सरकार को भी भ्रष्ट्रचार का अड्डा बन रहे इस विभाग पर शिकंजा कसने के लिए सारथर्क कदम उठाना पडे़गा। अगर सरकार राज्य की सभी तहसील दफ्तरों की अवैध कमाई पर लगाम कस ले तो राज्य के विकास के लिए फंड जुटाने को दूसरों के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पडे़गी। इसके साथ ही सरकार व जिला प्रशासन को यहां की गतिविधियों को प्रादर्शी बनाना होगा। तहसील परिसर में बैठे दूसरे लोगों पर शिकंजा कसना होगा जो प्रत्यक्ष तौर पर इस धंधे को प्रोत्साहन दे रहे हैं। जमीनों की रजिस्ट्री के लिए प्लाट की फोटो खिचवाने का प्रावधान है लेकिन तहसील के साथ एक प्लांट पर ही सभी को खडा़ कर फोटो खीचकर दो सौ रुपये बटोर लिए जाते हैं, जिससे गलत रजिस्ट्री करवाने के धंधे को प्रोत्साहन मिलता है। 
अधिकारी पैसे के लालच में इतने अंधे हो जाते हैं कि वह गवाह के साथ रजिस्ट्री कागज में दर्ज आदमी का भी पता नहीं लगाते बलिक सीधी रजिस्ट्री कर मामले की इतिश्री कर देते हैं। इसका विपरित प्रभाव यह पडा़ कि हजारों मामले फ्रजी रजिस्ट्री के सामने आ चुके हैं। इसमें भी पैसे ले देकर तहसीलदार से लेकर हर एक आसानी से  बच जाता है जो इसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेवार होता है। 

Monday, July 5, 2010

बाहरी इलाको में नहीं दिखाई दिया बंद का कोई असर

-स्कूल रहे पूर्ण तौर पर बंद, लोगों को झेलनी पड़ी परेशानी  
बठिंडा। ईंधन की कीमतों में हुई वृद्धि के  खिलाफ बीजेपी सहित तमाम विपक्षी दलों की ओर से आयोजित भारत बंद से सोमवार को पंजाब सहित देश के  विभिन्न हिस्सों में आम जनजीवन प्रभावित हुआ है। बंद का बस सेवा के साथ उड़ानों और रेल सेवाओं पर भी असर पड़ा है। पंजाब में बसों का आवागमन बंद रहा जिससे लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। बठिंडा सहित राज्य के प्रमुख जिलों में शहरी इलाकों में बंद का असर रहा लेकिन ग्रामीण व बाहरी क्षेत्र में इसका असर न के बराबर रहा। बीजेपी समेत विपक्ष के कई नेता सडक़ों पर उतर चुके हैं और जमकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी तरफ सुरक्षा के लिहाज से सभी स्कूलों व कालेजों ने सोमवार को छुट्टी की घोषणा कर दी थी। वही आपात सेवाएं बिना किसी रुकावट के चलती रही। लखनऊ में बीजेपी नेता अरुण जेटली और मुख्तयार अब्बास नकवी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। भाजपा कार्यकर्ताओं ने शहर के प्रमुख बाजारों में सरकार का पुतला जलाया व बढ़ी कीमतों को तत्काल वापिस लेने की मांग रखी। इस दौरान किसी तरह की अनहोनी को टालने के लिए सुरक्षा के कडे़ इंतजाम किए गए थे। वही पुलिस पार्टी विभिन्न स्थानों में गश्त लगाती रही। पंजाब के बस अड्डों से बसों का संचालन सुबह से प्रभावित है। यहां कई जगहों पर विभिन्न दलों के  कायकर्ताओं ने रेल सेवाओं को भी बाधित करने का प्रयास किया। दूसरी तरफ बठिंडा शहर के कुछ  इलाकों में बाजार और कारोबारी प्रतिष्ठान बंद हैं जबकि बाहरी क्षेत्रों में काम धंधा रोजमर्जा की तरह चल रहा है। धोबी बाजार में भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया व सरकार का पुतला जलाया। इस दौरान सुरक्षा के कडे़ इंतजाम रहे। बंद का शिव सेना सहित कई दलों ने समर्थन किया था। मुंबई में बीजेपी के सीनियर नेता किरीट सोमैया समेत पार्टी के कई कार्यकर्ताओं को सोमवार को उस समय हिरासत में ले लिया गया जब वे ट्रेनों को रोकने की कोशिश कर रहे थे। पुणे में बंद समर्थकों ने कई जगहों पर पथराव किया और 12 बसों को नुकसान पहुंचाया। बिहार में भी बंद का व्यापक असर दिख रहा है। पटना समेत राज्य के  कई क्षेत्रों में बंद समर्थकों ने रेलमार्ग और सड़क जाम कर बसों और ट्रेनों की आवाजाही को रोकने की कोशिश की। पटना के राजेंद्रनगर टर्मिनल के पास महिला बंद समर्थकों ने दानापुर-हावड़ा एक्सप्रेस को घंटों रोके रखा। बाद में पुलिस ने बंद समर्थकों को पटरी से हटाया और फिर यह रेलगाड़ी रवाना हो पाई। यात्रियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में बंद के कारण सभी प्राइवेट स्कूलों को सोमवार को बंद कर दिया गया है। बंद के  कारण राज्यभर में सुरक्षा के  व्यापक प्रबंध किए गए हैं। रेल प्रशासन ने रेलवे पुलिस बल को विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। प्रदर्शनकारियों के स्टेशन पर आते ही रेलगाड़ियों का परिचालन बंद करने का निर्देश दिया गया है। 

हमें महंगाई से बचाने के लिए बंद कितना सार्थक

हरिदत्त जोशी
बठिंडा। दस साल से मंहगाई निरंतर बढ़ रही है, सरकार के साथ विपक्ष लंबे समय तक चुप्पी साधकर बैठा रहा लेकिन आज एकाएक भाजपा ने दूसरे दलों के साथ भारत बंद की घोषणा कर दी। इससे पहले भाजपा के साथ पूरे विपक्ष की चुप्पी यूपीए सरकार की मनमानी का समर्थन करते रहे जिसका नतीजा यह रहा है कि दाले बीस रुपये से एक सौ बीस रुपये तक पहुंच गई और रसोई गैस का सिलेंडर दो सौ से पौने चार सौ तक पहुंच गया। अगर समय पर यूपीए सरकार की मनमानी रोकी होती तो देश की जनता इतनी बेहाल नहीं होती। लोकतंत्र में संघर्ष और अपना विरोध जताने का सभी को अधिकार है लेकिन इस अधिकार की भी कुछ  सीमाएं है जिसे लाघकर आप किसी का हित नहीं कर सकते हैं। हाल में आप और हमको महंगाई से बचाने के  लिए जनता के  हितैषी आज सडक़ों पर उतर आए हैं। उनका कहना है कि अगर आज सारी दुकानें बंद रहें और गाड़ियां नहीं चलें तो महंगाई कम हो जाएगी। इसके  लिए वे रेलवे स्टेशनों और सड़कों पर रुकावटें खड़ी कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि आज देश भर में कोई भी पहिया न चले। जो लोग इस बात को नहीं मानते कि बंद आयोजित करने से कोई फर्क  पडता है, उनको ये सबक सिखाने के लिए तैयार खडे़ हैं। अब इन नौसखियों को कौन समझाएं कि लोगों को आंदोलन के लिए भड़काने वाले उनके दिग्गज सरकार के साथ मिले हुए है। सरकार की हर गतिविधि और निर्देशों में उनकी सहमती होती है अब आगे कुछ  राज्यों में चुनाव हा और जनता को बेवकूञ्फ बनाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जो न तो देश के हित में है और न ही लोगों के हित में है। टेलीविजन खोलकर देखों तो खबरे आ रही है कि प्रदर्शनकारियों ने देश भर में हो हल्ला मचाया ,उन लोगों को थप्पड़ मारे जो ट्रेन पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। कहीं-कहीं वे बसों पर पथराव कर रहे हैं, कहीं-कहीं टायरों की हवा निकाल रहे हैं ताकि सडक़ों पर यातायात रुक जाए। पंजाब में तो बस सेवाएं ही बंद कर दी, इसमें लाखों लोग आवागमन नहीं कर पा रहे हैं। हजारों लोग ऐसे है जो अपना इलाज करवाने के लिए सीएमसी, डीएमसी या फिर पीजीआई में जाते हैं। अगर इन लोगों का शारीरिक नुकसान होता है तो इसकी जिम्मेवारी किसकी होगी। क्या मंहगाई रोकने के इस ड्रामे से मंहगाई रूक जाएगी, कभी नहीं। न तो यूपीए सरकार गिरेगी और न ही मंहगाई रूपी दानव कम होगा।  इन सभी दलों के नेता अभी घरों में सुस्ता रहे हैं और टीवी चैनलों पर ये तस्वीरें देखकर हर्षित हो रहे हैं। वाह, क्या कमाल कर दिया। सडक़ों पर गाडिय़ों की कतार लग गई है। लोग परेशान हैं कि आगे भी नहीं जा सकते, पीछे भी नहीं। लेकिन यह तो इनकी सजा है जो इन हितैषियों ने उनके  लिए मुकर्रर की है। इन लोगों के डर से सभी लोग घरों में सिमट गए, स्कूल बंद हो गए। सड़कें  जाम हो गईं और मैं आपको गारंटी दे सकता हूं कि इस बंद से न महंगाई डरेगी न सरकार। तो ऐसे कितने भी बंद करा लो, यह यूपीए सरकार तो रहेगी और साथ में महंगाई भी रहेगी। लेकिन क्या यह जरूरी है कि महंगाई से परेशान जनता इस बंद नाम के तमाशे के कारण और परेशान हो।

हल स्थाई हो, अस्थाई नहीं

कुछ महीने पहले देश की एक अदालत ने केंद्र से राय मांगी थी कि क्या वेश्यावृत्ति को मान्यता दे दी जाए, यानि इसको अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाए, क्योंकि देश में वेश्यावृत्ति बढ़ती जा रही है। इस मुद्दे पर अदालत द्वारा केंद्र से राय मांगने का सीधा अर्थ है, अगर किसी चीज को कानून रोकने में असफल हो रहा है तो उसको मान्य दे दी जाए, ताकि अदालत का भी कीमत समय बच जाए। किसी मुश्किल का कितना साधारण हल है, कि उसको वैध करार दे दिया जाए, जिसको रोकने में कानून असफल है। कोर्ट ने एक बार भी केंद्र से नहीं कहा कि वेश्यावृत्ति की पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए एक टीम का गठन किया जाए। कोर्ट ने सवाल नहीं उठाया कि क्यों कभी पुलिस प्रशासन ने कोर्ट में वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के दूसरे पक्ष को उजागर नहीं किया। आखिर वेश्यावृत्ति हो क्यों रही है? आखिर क्यों देश की महिलाएं अपने जिस्म की नुमाईश लगा रही हैं?। अगर कोर्ट इन सवालों में से एक भी सवाल को केंद्र से पूछती तो केंद्र अदालती कटघरे में आ खड़ा नजर आता, क्योंकि वेश्यावृत्ति के बढ़ते रुझान के लिए हमारी सरकारें भी जिम्मेदार हैं, जो निम्न वर्ग को केवल वोटों के लिए इस्तेमाल करती हैं और उनके उत्थान के लिए कोई कार्य नहीं करती। ऐसे में पेट की आग बुझाने के लिए गरीब घरों की महिलाएं लोगों के बिस्तर गर्म करने के लिए निकल पड़ती हैं। अब तो वेश्यावृत्ति में कालेज की लड़कियां भी शुमार हो रही हैं, कारण है कि वो सुविधाओं भरी जिन्दगी जीना चाहती हैं। हम समस्याओं को जड़ से नहीं बल्कि बाहरी स्तर से हल करने के तरीके खोजते हैं। अभी कल की ही बात है, मेरा किसी काम को लेकर धोबियाना रोड़ पर जाना हुआ, श्री गुरूनानक देव स्कूल के पास सड़क पर दोनों तरफ आने जाने के लिए एक आधिकारिक रास्ता है, लेकिन उसको प्रशासन ने बंद कर दिया। बंद करने का कोई भी छोटा मोटा कारण हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि किसी नेता के आगमन पर उसको बंद किया हो, और फिर प्रशासन को खुलवाना भूल गया हो। प्रशासन ने वो रास्ता तो बेरियर लगाकर बंद कर दिया, क्योंकि ट्रैफिक पुलिस के पास कर्मचारियों की कमी तो हो सकती है, पर बेरियरों की नहीं। इसका अंदाजा पॉलिथीनों की तरह जगह जगह बिखरे पड़े मुसीबतों को जन्म दे रहे बेरियरों से लगाया जा सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि वो रास्ता हादसों का कारण बन रहा हो इसलिए बंद कर दिया गया, लेकिन क्या ऐसा करना जायज है, अगर जायज है तो बरनाला रोड़ को सबसे पहले बंद कर देना चाहिए, जिसको खूनी रास्ते के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रशासन ने उक्त दस बारह फुट के रास्ते को बंद कर दिया, लेकिन लोगों ने एक फूट चौड़ा रास्ता उससे थोड़ा से आगे डिवाईडर तोड़कर बना लिया। शायद प्रशासन भूल गया कि नदी के बहा को कभी दीवारें निकालकर नहीं रोका जा सकता, क्योंकि पानी अपने रास्ते खुद बनाना जानता है। जनता भी पानी के बहा जैसी है। गलियों में बने हम्प भी इसी बात की ताजा उदाहरण हैं। स्थानीय शहरी इलाकों की गलियों में बने हम्प लोगों के वाहनों की स्पीड को तो कम नहीं कर पा रहे, लेकिन लोगों का ध्यान जरूर खींच रहे हैं। जब मनचले वहां आकर जोर से ब्रेक मारते हैं, और ब्रेक लगने के वक्त निकालने वाली वाहन के पुर्जों की आवाज लोगों का ध्यान खींचती है। हम समस्या की जड़ को खत्म करने की बजाय बाहरी स्तर पर काम करते हैं, जिनके नतीजे हमेशा ही शून्य रहते हैं। मानो लो, देश भर के सरकारी स्कूलों की चारदीवारी को आलीशान बना दिया जाए, क्या वो देश की शिक्षा प्रणाली के दुरुस्त होने का प्रमाण होगा, नहीं क्योंकि वो सुधार केवल बाहरी रूप से हुआ है। अगर देश की शिक्षा प्रणाली का सुधार करना है तो उसकी जड़, मतलब टीचर को ऐसे प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वो एक पढ़े लिखे इंसान के साथ एक समझदार व्यक्ति को स्कूल से बाहर रुखस्त करे। वरना देश की अदालत हर बार किसी न किसी अपराध को अपराध मुक्त करने पर सरकार से राय मांगेगी।
कुलवंत हैप्पी 
76967-13601 

Sunday, July 4, 2010

उत्तरांचली परिवारों के हितों की रक्षा करेगी अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभाः घनश्याली

बठिंडा में अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक आयोजित  
बठिंडा। अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा पंजाब प्रदेश इकाई की बैठक टीचर होम में प्रदेश प्रधान ज्ञानदेव घनश्याली की अध्यक्षता में आयोजित की गई। इस बैठक में प्रदेश कायर्कारिणी के सभी सदस्यों ने हिस्सा लिया। इसमें सवर्सम्मित से प्रस्ताव परित कर जिला स्तर पर महासभा इकाईयों का गठन करने का फैसला लिया गया। प्रदेश प्रधान श्री धनश्याली ने राष्ट्रीय अधिवेशन कोटद्वार में परित किए गए प्रस्तावों की जानकारी दी वही प्रदेश स्तर पर इकाई को ओर मजबूत करने पर बल दिया।
महासचिव  नंदन सिंह रावत ने प्रदेश सदस्यों का स्वागत करते हुए उत्तरांचली धर्म मंडल के पदाधिकारियों की तरफ से बैठक आयोजित करवाने के लिए धन्यवाद किया। उन्होने कहा कहा कि अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा राष्ट्रीय स्तर पर उत्तरांचली परिवारों के हितों की रक्षा के लिए काम कर रही है। देश भर में लाखों लोग इस संस्था से जुडे़ है जिसमें देश के नामी व्यापारियों, बुदि्धजीवों, विज्ञानिकों के इलावा राजनेता शामिल है। उत्तरांचल के विकास के साथ उनकी समस्या के निवारण के लिए संस्था विभिन्न स्थानों में काम कर रही है। वतर्मान में पंजाब के विभिन्न हिस्सों में महासभा ने अपनी पैठ बनाई है जिसमें हाल में पटियाला में उत्तरांचल के लिए बंद होने वाली बस को फिर से शुरू करवाने के लिए संघर्ष शुरू किया गया जिसका नतीजा यह निकला कि सरकार को बंद की गई बस को दो जुलाई को फिर से शुरू करनी पडी़। इस तरह के कई आंदोलन चलाए गए जो आगे भी जारी रहेंगे। उन्होंने बताया कि लोगों की सुविधा के लिए महासभा की प्रदेश बेवसाइट भी लांच की जा रही है। प्रदेश प्रधान ज्ञान देव घनसयाली ने कहा कि राज्य में महासभा को मजबूत करने के लिए जिला स्तर पर इकाईयां गठित कर उन्हें मजबूत किया जाए। इसके लिए प्रदेश कार्यकारी के सभी सदस्यों को काम करना होगा।
बैठक के दौरान कोषाध्यक्ष भगत सिंह भंडारी ने लेखाजोखा पेश किया। बैठक में प्रमुख तौर पर लुधियाना में महासभा की नवीन इकाई के सभी सदस्यों ने भी हिस्सा लिया। इसमें प्रमुख तौर पर वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजीव सिंह नेगी,  सचिव राजेश नेगी, संयोजक परमेश प्रसाद मैठानी, बृज मोहन सिंह रावत, देवी प्रसाद डंगवाल, उपनयन सिंह पवार,  मुख्य सलाहकार सुरिंदर सिंह चौनाल, उपाध्यक्ष हरि सिंह नेगी, सचिव संतन सिंह, मिडिया प्रमुख हरिदत्त जोशी ने हिस्सा लिया। इसके इलावा उत्तरांचली धर्म मंडल के पदाधिकारियों ने सभी सदस्यों का धन्यवाद किया।      

आखिर पीली पत्रकारिता के प्रोत्साहन के लिए कौन जिम्मेवार ?

हरिदत्त जोशी
आजकल सामान्य तौर पर सुनने को मिल जाता है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में गिरावट आ गई है। पीली पत्रिकारिता निरंतर हावी हो रही है। पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का रुतबा खोने की कगार में खडी़ है। आखिर यह सब क्यों हुआ और इसके लिए कौन जिम्मेवार है। इसका अवलोकन करना समय की जरूरत है। भौतिकवादी युग में लोगों की जरूरत और आकांशा भी निरंतर बढी़ है, देखादेखी हर इंसान पैसों से लबालब होना चाहता है। अब इसके लिए जायज और नायायज रास्ता अखि्तयार करना पडे़ तो वह करने को तैयार है।
पंजाब की बात करे तो पहले पहल राज्य में चलने वाले अखबार अपने प्रतिनिधियों को पैसा नहीं देते थे बिल्क उन्हें विज्ञापन से मिलने वाले कमिशन में से ही अपना खर्च निकालना होता था। अस्सी के दशक में पंजाब में आतंकवाद का दौर था ऐसे में व्यापार का बुरा हाल था और विज्ञापन हासिल करना इतना सुगम नहीं था, ऐसे में शुरू हुआ, पत्रकारों का खबर भेजने के लिए प्रयुक्त होने वाले साधनों का खर्च खबर प्रकाशित करवाने की दिलचस्पी रखने वाले लोगों से पैसा वसूल करने का धंधा। यह धंधा धीरे-धीरे हर अखबार के प्रतिनिधि ने करना शुरू कर दिया। जो आगे खबर प्रकाशित करने या फिर रोकने के नाम पर पैसे वसूली का धंधा बन गया। धीरे-धीरे पीली पत्रकारिता ने अपना असर दिखाना शुरू किया।
एक दशक पहले राज्य से बाहर के अखबारों ने पंजाब में पैर जमाए तो उन्होंने अखबार के प्रतिनिधियों को बेहतर वेतन देना शुरू कर दिया और इसके बाद इस धंधे (पीली पत्रकारिता) पर कुछ लगाम लगी लेकिन पत्रकारों के एक वर्ग ने इस धंधे को जारी रखा । हाल की घडी़ जिस तरह से हर अखबार का मलिक खबरों की मौलिकता से ज्यादा विज्ञापनों की तादाद व उससे बटोरे जाने वाले पैसे को अधिक महत्ता देने लगा है उसने पत्रकारिता के मूल्यों की कदर करने वाले पत्रकारों को निराश जरूर किया। मुझे याद है कुछ समय पहले पंजाब में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव,जिसमें अखबार के मालिकों से लेकर स्थानीय पत्रकारों में राजनितिक दलों से पैसे बटोरने की होड़ शुरू हुई, संपादक स्तर पर बडी़ डिलिंग हुई, दल की पूरी मुहिम करोडो़ में खरीदी गई, इसमें जिस दल ने ज्यादा पैसा दिया वह अखबारों में ज्यादा चमका, कई दलों की स्थिति तो ऐसी हो गई कि वह कई बडे़ अखबारों में छपने को तरसने लगे। यहां मेरा मकसद किसी अखबार विशेष या फिर समूह की नितियों को उजागर करना नहीं है बलि्क मैं पीली पत्रकारिता के लिए जाने-अनजाने तैयार होने वाले माहौल के बारे में अवगत करवाना चाहता हूं जब पत्रकार को अखबार का संपादक या फिर स्थानीय संवाददाता विज्ञापन के नाम पर जायज व नाजायज वसूली को कहता है तो वह आगे उसे दूसरों की जेब काटने से कैसे रोकेगा। यही नहीं इसके बाद खबरे बिकना संभाविक है। कई स्थानों में इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मिडिया के कुछ प्रतिनिधियों को ब्लैकमेलिंग करते पकडा़ गया। इससे पत्रकार व पत्रकारिता की बदनामी ही हुई है जिसने अखबारों की विश्वसनियता पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया है।
लोग अखबार को बिकाऊ माल कहने लगे है जो खासकर ऐसे वर्ग के लिए चिंताजनक है जो अभी भी पत्रकारिता के मूल्यों को पहचानते है और उनकी कदर करते हैं। पत्रकारिता पेशा सेवा के साथ एक बडी़ राष्ट्रीय जिम्मेवारी का हिस्सा है, जिसने लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बनकर उसकी नींव को मजबूत किया है। इस विश्वास को बनाए रखने की जिम्मेवारी हर राष्ट्र भक्त की बनती है जो इसमें पत्रकार भी अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकते हैं। आज इमानदारी से पत्रकारिता में आ रही गिरावट को रोकने के लिए चिंतन की जरूरत है। इसमें ऊपरी स्तर पर अखबार के मालिक से लेकर संपादक व निचले स्तर के कर्मचारी को विचार करना होगा। पत्रकारिता की शान इसके सम्मान और विश्वास के आधार पर टिकी है, अगर लोगों ने इसका सम्मान करने के साथ विश्वास करना छोड़ दिया तो अखबार एक पंपलेट बनकर रह जाएगा जिसे लोग देखते तो है पर विश्वास नहीं करते और रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं। 

Saturday, July 3, 2010

सेहत विभाग की कुंभकरणी नींद ने दाईयों के बुलंद किए हौसले

-दो दिनों में तीन लड़के के भ्रूण मारकर नालों में डाले गए 
-अवैध संबंधों से जन्मे बच्चे की हत्या करने की प्रवृति 
-पुलिस मामले की जांच में जुटी, आरोपी पकड़ से बाहर 
बठिंडा। एक तरफ जहां कन्या हत्या को रोकने के लिए सरकार के साथ जिला प्रशासन ने विशेष मुहिम चलाई व इसमें काफी हद तक रोक भी लगी है लेकिन वर्तमान में पिछले कुछ दिनों से बठिंडा जिले में घटित हो रही लड़के भ्रूण की हत्या ने सबको चकित करके रख दिया है। इस तरह की घटनाओं ने एक ओर बात को बल दिया है कि जिले में ग्रामीण क्षेत्रों के इलावा बाहरी बस्तियों में रहने वाले डाक्टर व दाईयां अवैध गर्भपात करने का धंधा जोर शोर से कर रही है। सेहत विभाग को इन घटनाओं से सबक लेकर इस तरह के असामाजिक तत्वों पर लगाम कसने की जरूरत है । सेहत विभाग की नींद और जिला प्रशासन की लापरवाही का नतीजा ही है कि दो दिन में तीन लड़के के भ्रूण विभिन्न स्थानों से बरामद किए गए है। इसी कड़ी में शनिवार को रामा मंडी के  सरकारी बाग में खेल रहे बच्चों को उस समय हाथ पांव की पड़ गई, जब उन्होंने नाले में एक भ्रूण को देखा। घटना की खबर मंडी में जंगल की आग की तरह फैल गई। सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस मौके  पर पहुंची, जिन्होंने लोगों की मदद से भ्रूण को नाले से बाहर निकलवाया। मौके  पर मौजूद लोगों के  बताने के  अनुसार रोज की तरह आज भी आसपास के  बच्चे सरकारी बाग में खेल रहे थे, अचानक उनकी निगाह उक्त  भ्रूण पर पड़ी, जिसे देखकर उनके  चेहरों का रंग उड़ गया, और उन्होंने तुरंत घर पहुंच अपने परिजनों को बताया। जिसके  बाद पुलिस को सूचित किया और पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची।
 पुलिस ने भ्रूण को बाहर निकाला और आगे की कार्यवाई के  लिए साथ ले लिया। बताया जा रहा है कि उक्त  भ्रूण एक लड़के  का था, जो देखने में नौ महीनों का लग रहा है। ज्ञात रहे कि स्थानीय सरकारी बाग में पूरी मंडी का गंदा पानी आता है, हो सकता है कि उक्त  बच्चा अवैध रिश्तों की उपज हो, और इज्जत बचाने के  लिए गर्भपात करवाया गया है। मामले को लेकर पुलिस सखते में है। पुलिस इस मामले की जांच में जुट गई है व स्थानीय डॉक्टरों से भी पूछताछ की जा रही है। गौरतलब है कि बठिंडा जिले में पिछले दो दिनों में यह तीसरा भ्रूण है, और हैरानी बात तो यह है कि तीनों के  तीनों भ्रूण लडकों के  हैं। दूसरी तरफ समाज शास्त्री व प्रशासन इस तरह की घटनाओं को लेकर चिंतित है। समाज सेवक व सहारा जन सेवा के प्रधान विजय गोयल का कहना है कि समाज में कन्या की पेट में हत्या की घटनाओं के पीछे समाज की तुच्छ मानसिकता का पता चलता है लेकिन वर्तमान में लड़कों की पेट में हत्या के  पीछे सबसे बड़ा कारण अवैध संबंधों को माना जा सकता है। अवैध संबंधों के चलते पैदा होने वाले बच्चे को या तो पेट में मार दिया जा रहा है या फिर उसके जन्म होते ही उसे मौत के मुंह में सुला दिया जा रहा है। इस तरह की प्रवृति पर रोक लगाने के लिए समाज में जागृति लाने के साथ पुलिस व जिला प्रशासन को मुस्तैद होना पडेगा। इसमें हत्या करने वाले लोगों को पकड़ने के लिए तह तक जाना जरुरी है।  
यहां बताना जरूरी  है कि जिले में शहरी क्षेत्रों की बस्तियों व ग्रामीण इलाकों में तैनात डाक्टर व दाईयां अवैध ढंग से गर्भपात करने का गौरखधंधा बेलगाम कर रही है। पांच से दस हजार रुपये की वसूली के लिए इस तरह के काम उक्त लोग सुगमता से कर देते हैं। जिले में कुछ  दाईयां तो ऐसी है जो घरों में या फिर क्लिनिंक में सभी नियम कायदों को दरकिनार कर गर्भपात करते हैं व पुलिस की नजर से बचने के लिए भ्रूण को मिट्टी में दबा देते हैं वही मौका मिलने पर उसे किसी गंदे नाले व बहती नहर में फैक देते हैं, जो बहता हुआ आगे निकल जाता है व इसमें शक भी नहीं हो पाता है।   


Friday, July 2, 2010

रक्षक से भक्षक तक

सर जी, वो कहता है कि उसको एसी चाहिए घर के लिए। वो का मतलब था डॉक्टर, क्योंकि मोबाइल पर किसी से संवाद करने वाला व्यक्ति एक उच्च दवा कंपनी का प्रतिनिधि था, जो शहर में उस कंपनी का कारोबार देखता था। इस बात को आज कई साल हो गए, शायद आज उसके संवाद में एसी की जगह एक नैनो कार आ गई होगी या फिर से भी ज्यादा महंगी कोई वस्तु आ गई होगी, क्योंकि शहर में लगातार खुल रहे अस्पताल बता रहे हैं कि शहर में मरीजों की संख्या बढ़ चुकी है, जिसके चलते दवा कारोबार में इजाफा तो लाजमी हुआ होगा।

आप सोच रहें होंगे कि मैं क्या पहेली बुझा रहा हूँ, लेकिन यह किस्सा आम आदमी की जिन्दगी को बेहद प्रभावित करता है, क्योंकि इस किस्सा में भगवान को खरीदा जा रहा है। चौंकिए मत! आम आदमी की भाषा में डॉक्टर भी तो भगवान का रूप है, और उक्त किस्सा एक डॉक्टर को लालच देकर खरीदने का ही तो है। कितनी हैरानी की बात है कि पैसे मोह से बीमार डॉक्टर शारीरिक तौर पर बीमार व्यक्तियों का इलाज कर रहे हैं।

इस में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि दवा कंपनियों के पैसे से एशोआराम की जिन्दगी गुजारने वाले ज्यादातर डॉक्टर अपनी पसंदीदा कंपनियों की दवाईयाँ ही लिखकर देते हैं, जिसकी मार पड़ती है आम आदमी पर, क्योंकि दवा कंपनियां डॉक्टर को दी जाने वाली सुविधाओं का खर्च भी तो अपने ही उत्पादों से निकालेंगी।

पैसे के मोह से ग्रस्त डॉक्टरी पेशा भी बुरी तरह बर्बाद हो चुका है, अब इस पेशे में ईमानदार लोग इतने बचें, जितना आटे में नमक या फिर समुद्र किनारे नजर आने वाला आईसबर्ग (हिमखंड), ज्ञात रहे कि आइसबर्ग का 90 फीसदी हिस्सा पानी में होता है, और दस फीसदी पानी के बाहर, जो नजर आता है।

अब ज्यादातर डॉक्टरों का मकसद मरीजों को ठीक करना नहीं, बल्कि रेगुलर ग्राहक बनाना है, ताकि उनकी रोजी रोटी चलती रहे, और वो जिन्दगी को पैसे के पक्ष से सुरक्षित कर लें, पैसे की लत ऐसी लग गई है कि आम लोग सरकारी नौकरियाँ तलाशते हैं, डॉक्टर खुद के अस्पताल खोलने के बारे में सोचते हैं। मुझे याद है, जब मेरी माता श्री बीमार हुई थी, उसका मानसा के एक सरकारी अस्पताल से चल रहा था, वो पहले से चालीस फीस ठीक हो गई थी, अचानक उस युवा डॉक्टर ने सरकारी नौकरी छोड़कर खुद को अस्पताल खोल लिया, और मेरी माता की दवाई अब उसके अस्पताल से आनी शुरू हो गई, वो पहले महीने भर में बुलाता था, अब हफ्ते भर में। और मोटी फीस लेने लगा था, लेकिन कुछ हफ्तों बाद उसकी तबीयत फिर से पहले जैसी हो गई, क्योंकि अब उस डॉक्टर का मकसद खुद की आमदन बढ़ाना था, ना कि मरीज को तंदरुस्त कर घर भेजना।

लोगों ने डॉक्टर को भगवान की उपमा दी है, लेकिन अब उस भगवान के मन में इतना खोट आ गया है कि अब वो भगवान अपने दर पर आने वाले मानवों के अंगों की तस्करी करने से भी पीछे नहीं हट रहा। इतना ही नहीं, कभी कभी तो भगवान इतना क्रूर हो जाता है कि शव को भी बिन पैसे परिजनों के हवाले नहीं करता। और तो और रक्त के लिए भी अब वो निजी ब्लड बैंकों की पर्चियां काटने लगा है, आम आदमी का शोषण अब उसकी आदत में शुमार हो गया है। अपनी रक्षक की छवि को उसने भक्षक की छवि में बदल दिया।

कुलवंत हैप्पी
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