जब वो मल्हार राग में शिव स्तुति गाती है तो इंद्रदेव इतने खुश होते हैं कि पूरे क्षेत्र को जलमग्न कर देते हैं। उसका जन्म गजियाबाद के एक अमीर परिवार में हुआ था और उसका ब्याह भी एक अमीर घर में, लेकिन वो सादगी भरा जीवन जीने में विश्वास करती थी, वो आज जिन्दा है या नहीं पता नहीं, लेकिन जब इंद्रदेव को खुश करना होता तो लोग उसके द्वार जाते थे। कुछ ऐसा ही किस्सा बता रहा था संकट मोचन मंदिर के निकट एक बिजली की दुकान पर एक भद्र पुरुष। आज से पहले तानसेन के बारे में तो सुना था कि वो दीपक राग गाकर दीए जला देते थे, लेकिन उक्त किस्सा पहली दफा सुनने में आया, हो सकता है सच भी हो और काल्पनिक भी। मगर हम इंद्रदेव को मनाने के लिए तरह तरह के ढंग तो अपनाते ही हैं। मुझे याद है जब हम गांव में रहते थे, सावन का महीना बीतते वाला होता, और गांव में एक बूंद पानी तक न टपकता, तब लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए डेरा बाबा भगवान दास में पहुंचकर चावलों का यज्ञ करते, और इंद्रदेव खुश हो भी जाता था। इस डेरे का इतिहास भी तो बारिश से जुड़ा हुआ है। एक बार की बात है कि गांव में बारिश नहीं हो रही थी, और लोग इंद्र देव को मनाने के लिए तरह तरह के पैंतरे अजमा रहे थे। इन दिनों गांव के खेतों में एक साधु आया हुआ था, गांवों ने उनसे बिनती बगैरह किया, उन्होंने संतों के कहने अनुसार सब कुछ किया। जब गांव वासी डेरे में पहुंचे तो संत बोले 'तुम लोग छत्रियां क्यों नहीं लेकर आए, लोग चकित रह गए, धूप चढ़ी हुई है, बादलों का नामोनिशान नहीं, संत कहीं पागल तो नहीं हो गया। जैसे यज्ञ खत्म होने के किनारे पहुंचा तो बादल ऐसे बरसे कि गांव वासी संत के चरणों में जा गिरे। यह तो बस एक विश्वास की बात है, अगर विश्वास है तो धन्ने भगत जैसे पत्थरों से भगवान के दीदार कर लेते हैं। पिछले दो दिनों से इंद्रदेव बठिंडा में बरसने के लिए उतावला है, लेकिन न जाने क्या सोच कर खुद को रोके हुए है। हो सकता है कि बठिंडा नगर निगम व नहरी विभाग की खामियों से इंद्रदेव अच्छी तरह अवगत हैं। पिछले हफ्ते इंद्रदेव ने बठिंडा वासियों को खुश करने की छोटी सी कोशिश की थी, लेकिन नतीजा शहर में अधिकतर क्षेत्रों में बारिश का पानी जमा हो गया। लोगों को आने जाने में दिक्कतें पेश आने लगी। इतना ही नहीं, कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो बारिश के पानी के कारण रजबाहे टूट गए, किसानों की खड़ी फसलें बर्बाद हो गई। इंद्रदेव तो पिछले दो दिन से निरंतर बरसने के मूड में है, लेकिन नहरी विभाग व नगर निगम की कार्यगुजारी के चलते इंद्रदेव का बरसना भी लोगों पर भारी पड़ सकता है। वैसे इंद्रदेव ने लोगों को थोड़ी सी राहत देने के लिए हवाओं में नमी भर दी है। पंजाब में अब तक इंद्रदेव जहां जहां अभी तक बरसा है, वहां से फसलों के बर्बाद होने की ख़बर आ रही हैं, चाहे वो पटिआला हो या दोआबे का क्षेत्र। सरकारों व निगमों की कार्यगुजारी के बाद इंद्रदेव को एक कुम्हार की कहानी याद आ रही होगी, या तो बर्तन वाली या फिर फसल वाली। एक कुम्हार के दो बेटियां होती हैं, दोनों की शादी एक ही गांव में हुई होती है, एक बार उन से मिलने के लिए कुम्हार उस गांव जाता है। पहली बेटी से मिलता है जो एक कुम्हार के साथ ही ब्याही होती है, वो खुश है कि उसके बर्तन सूखने वाले हैं, और इंद्रदेव नहीं बरसे। वो यहां अपनी दूसरी बेटी के घर जाता जो एक किसान को ब्याही होती है। वो दुखी है, क्योंकि इंद्रदेव अभी तक बरसा नहीं था। वो अपने पिता से कहती है कि दुआ करो रब्ब से बारिश हो जाए। कुम्हार असमंजस में पड़ जाता है कि आखिर किस को बचा लूं और किसको डुबो दूं। कुछ ऐसी ही स्थिति में शायद इंद्रदेव उलझा हुआ है।
कुलवंत हैप्पी
76967-13601
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