- अस्पताल के बकाया 10 लाख पंजाब सरकार भरेगी, शोक संदेश में मंत्रिमंडल ने कहा-मुल्क ने एक अनमोल हीरा गंवा दिया
मोहाली। पंजाब के प्रख्यात गायक सरदूल सिकंदर को गुरुवार को गमगीन माहौल के बीच अंतिम विदाई देने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। उन्हें गांव खेड़ी नौध सिंह के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा, जहां इससे पहले उनके दो भाई सुपुर्द-ए-खाक किए गए थे। इस रस्म के लिए पंजाबभर से कला और राजनीति के क्षेत्र के अलावा अन्य लोग पहुंचना जारी हैं, उधर बीते दिन सुबह से ही परिजन विलाप करते हुए परमात्मा को कोस रहे हैं, 'ओ रब्बा! साड्डा इक तां छड्ड देंदा'।
बता दें कि प्रसिद्ध पंजाबी लोक गायक सरदूल सिकंदर का बुधवार को कोरोना संक्रमण के चलते मोहाली में निधन हो गया। 60 वर्षीय सरदूल पिछले महीनेभर से बीमार थे। पहले किडनी ट्रांसप्लांट करनी पड़ी और फिर कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए। बुधवार सुबह मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।
एक-दूसरे को सांत्वना देती सरदूल सिकंदर के परिवार और रिश्तेदारी से संबंधित महिलाएं।
पंजाब मंत्रिमंडल ने लोक गायक सरदूल सिकंदर के असामयिक निधन पर दुख प्रकट किया है। शोक संदेश में मंत्रिमंडल ने कहा कि सरदूल सिकंदर के देहांत से मुल्क ने नामवर पंजाबी गायकों में से एक अनमोल हीरा गंवा दिया है। उनके चल जाने से पैदा हुए सूनेपन को दूर करना असंभव है। इसके अलावा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ऐलान किया कि सरदूल सिकंदर के अस्पताल के बनते 10 लाख के बकाया की अदायगी सरकार द्वारा की जाएगी। पंजाबी फिल्म व गायकी के जगत में अपना नाम चमकाने वाले सुरों के इस सिकंदर का दिल फतेहगढ़ साहिब के खेड़ी नौध सिंह में धड़कता था। सरदूल का जन्म 15 अगस्त 1961 को खेड़ी नौध सिंह में हुआ था। इसी गांव की गलियों व खेतों में सरदूल का बचपन बीता और पांचवीं तक की शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से ग्रहण की थी। बचपन में ही सरदूल अपने पिता सागर मस्ताना, जो नामवर तबला वादक थे, से गायकी के सुर सीखने लगे थे। 1988 में सरदूल सिकंदर गांव से शिफ्ट होकर खन्ना में रहने लगे थे, लेकिन गांव से जुड़ी यादों के चलते और आज भी गांव में बसते परिवार के कारण उनका दिल हमेशा यहीं धड़कता रहता था। सरदूल के निधन के बाद गांव में मातम छा गया। हर जुबान से यही निकल रहा था कि उनका बादशाह नहीं रहा। गांव में सरदूल की बड़ी भाभी प्रकाश कौर, भतीजा बावा सिकंदर, छोटी भाभी रजिया बेगम, भतीजे बब्बल खान, नवी खान रहकर संगीत की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। बावा सिकंदर गायक हैं। बब्बल खान तबला वादक हैं।
सरदूल सिकंदर के दो भाई थे। बड़े भाई गमदूर अमन की करीब बीस साल पहले मौत हो गई थी। छोटे भाई भरपूर अली की कुछ समय पहले मौत हुई थी। तीन बहनों में से भी दो बहनों की मौत हो चुकी है। एक बहन करमजीत खन्ना में रहती हैं। दो भाइयों की मौत के बाद इकलौते सरदूल की मौत के बाद परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। परिजन विलाप करते हुए परमात्मा को कोस रहे थे कि ओ रब्बा साड्डा इक तां छड्ड देंदा।
सरदूल का जन्म 15 अगस्त 1961 को खेड़ी नौध सिंह में हुआ था। इसी गांव की गलियों व खेतों में सरदूल का बचपन बीता और पांचवीं तक की शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से ग्रहण की थी। बचपन में ही सरदूल अपने पिता सागर मस्ताना, जो नामवर तबला वादक थे, से गायकी के सुर सीखने लगे थे। 1988 में सरदूल सिकंदर गांव से शिफ्ट होकर खन्ना में रहने लगे थे, लेकिन गांव से जुड़ी यादों के चलते और आज भी गांव में बसते परिवार के कारण उनका दिल हमेशा यहीं धड़कता रहता था। सरदूल के निधन के बाद गांव में मातम छा गया। हर जुबान से यही निकल रहा था कि उनका बादशाह नहीं रहा। गांव में सरदूल की बड़ी भाभी प्रकाश कौर, भतीजा बावा सिकंदर, छोटी भाभी रजिया बेगम, भतीजे बब्बल खान, नवी खान रहकर संगीत की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। बावा सिकंदर गायक हैं। बब्बल खान तबला वादक हैं।
सरदूल सिकंदर के दो भाई थे। बड़े भाई गमदूर अमन की करीब बीस साल पहले मौत हो गई थी। छोटे भाई भरपूर अली की कुछ समय पहले मौत हुई थी। तीन बहनों में से भी दो बहनों की मौत हो चुकी है। एक बहन करमजीत खन्ना में रहती हैं। दो भाइयों की मौत के बाद इकलौते सरदूल की मौत के बाद परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। परिजन विलाप करते हुए परमात्मा को कोस रहे थे कि ओ रब्बा साड्डा इक तां छड्ड देंदा।