Tuesday, July 6, 2010

भैसों के साथ वाहन चोरी का भी करने लगे थे धंधा

-पुलिस ने आठ लोगों के साथ वाहन पकडे़, तीन मौके से फरार 
बठिंडा। पिछले कुछ साल से दूध की कीमतों में हो रही बेहताश बढ़ोतरी ने भैसों के दाम में भी उछाल ला दिया। मात्र दस हजार रुपये में मिलने वाले भैस का मूल्य २५ हजार क्या पहुंचा, चोरों ने घरों में सेध मारने की बजाय भैसों को चोरी करना शुरू कर दिया। इसमें भी तसल्ली नहीं हुई तो उक्त लोगों ने वाहनों को चोरी कर बेचने का धंधा भी शुरू कर दिया। पुलिस के अनुसार उक्त लोग पंजाब सहित आसपास के क्षेत्र से कई वाहन चोरी कर आगे बेच चुके हैं।  चोरों ने जिले में एक नहीं बल्कि दर्जनों भैसे व वाहन चोरी कर आगे बेचकर मोटी कमाई की लेकिन हो रही भैसे व वाहन चोरी की घटनाओं ने पुलिस की नाक में दम कर दिया। इसके चलते अब तक सो रही पुलिस ने गिरोह की तलाश शुरू कर दी व गत दिवस इस गिरोह के कई  सदस्यों को धर दबोचा। इन लोगों के पास कई वाहन व हथियार भी बरामद किए गए है। गिरोह का पर्दाफाश करने में नथाना पुलिस ने सफलता हासिल की। नथाना पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर छापेमारी कर गिरोह के आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया है,जबकि तीन सदस्य मौके पर फरार होने में सफल रहे। पुलिस ने गिरोह के ११ सदस्यों पर मामला दर्ज कर फरार तीनों आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार उक्त गिरोह किसी घर में डाका मारने की योजना तैयार कर रहा था। इस गिरोह के सदस्य बठिंडा के अलावा जिले के समीप क्षेत्रों के रहने वाले हैं। पुलिस ने उक्त गिरोह से चार मोटरसाईकिल, एक कार व दो १२ बोर देसी पिस्तौल व छह जिंदा कारतूस बरामद किए है। जानकारी अनुसार नथाना थाना के एसआई हरजीत सिंह ने बताया कि महानगर में पिछले लंबे समय से विभिन्न क्षेत्रों से वाहन चोरी होने की घटनाएं घटित हो रही थी। इन घटनाएं घटित होने से जिला पुलिस काफी समय से इस वाहन चोर गिरोह की तलाश में जुटी हुई थी। जिला पुलिस ने अज्ञात व्यक्ति पर केस दायर कर कार्रवाई शुरु की हुई थी। पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई में खुलासा हुआ कि कुछ  लोगों ने एक गिरोह बना रखा है जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे  हैं। एसआई हरजीत सिंह ने बताया कि आरोपी रेमश सिंह पुत्र बहादुर सिंह, हरदीप सिंह पुत्र जीत सिंह, गगनदीप सिंह पुत्र बचितर सिंह, सुखेदव सिंह पुत्र हरनाम सिंह, बलजीत सिंह पुत्र मेजर सिंह, बलविंद्र सिंह पुत्र सीता सिंह, तेजू सिंह पुत्र  जंगीर सिंह, जसवंत सिंह पुत्र  ताना सिंह, लक्ष्मण सिंह पुत्र नछतर सिंह, कुलविंद्र सिंह पुत्र रेमश सिंह व सलीम खां पुत्र नवाब खां ने मिलकर एक गिरोह का गठन कर रखा था, जोकि पिछले लंबे समय से महानगर में  वाहन चोरी घटनाओ को अंजाम दे रहा है। पुलिस द्वारा की जा रही जांच पड़ताल में  यह भी पता चला है कि उक्त गिरोह सबसे पहले जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्र से भैसे चोरी करता था और उन्हें आगे बेच देता था, अब तक उक्त गिरोह सैकड़ो भैसें चोरी कर चुके हैं। उन्होने बताया कि भैसे चोरी करते हुए इस गिरोह के हौसले इतने बुलंद हो गए कि उन्हें ने शहर से वाहन चोरी करना शुरु कर दिये। उन्होने बताया कि पुलिस को गुप्त सूचना मिली की उक्त गिरोह विगत दिवस हथियारों से लेंस होकर किसी घर में डाका मारने की योजना बना रहे थे। पुलिस टीम ने गुप्त सूचना के आधार पर छापेमारी कर गिरोह के आठ सदस्यों को मौके पर काबू कर लिया, जबकि तीन सदस्य मौके पर फरार होने में सफल रहे। गिरोह सदस्यों से पूछताछ करने पर  एक कार, चार मोटरसाईकिल व दो देसी पिस्तौल व छह जिंदा कारतूस बरामद किए है। नथाना पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए गिरोह के सभी सदस्यों पर आईपीसी की धारा ३९९,४०२,४११ केञ् तहत मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है।

राष्ट्रीय स्तर के शिविर में भाग लेंगी सेंट जेवियर की छात्राएं

मन में पूरा विश्वास लेकर चल रही है,  लक्ष्य है अंतिम 16 सदस्यीय टीम में पहुंचना
पूरे पंजाब से तीन लडकियों का हुआ चुनाव,  वो भी बठिंडा की लड़कियां
बठिंडा : शहर का नाम खेल जगत में समय समय पर अलग अलग खेल प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेकर अपनी प्रतिभा लोहा मनवाने वाले खिलाड़ियों ने विश्व स्तर पर रोशन किया है। इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए स्थानीय सेंट जेवियर कान्वेंट स्कूल की तीन छात्राओं ने हैंडबाल के राष्ट्रीय स्तर के कैंप में अपना स्थान बनाया है, जो आज से हरियाणा के जिला सिरसा में शुरू होने जा रहा है। यह कैंप करीबन 42 दिन तक चलेगा, जिसमें देश भर से 25 महिला खिलाड़ी भाग लेंगी, और अपने हुनर का लोहा मनवाते हुए अंतिम 16 में अपनी जगह बनाएंगी। बहरहाल, बठिंडा वासियों व खेल प्रेमियों के लिए दिलचस्प बात तो यह है कि इस शिविर में भाग लेने वाली 25 महिला खिलाड़ियों में से तीन तो केवल बठिंडा स्थित सेंट जेवियर स्कूल की हैं, अगर वो इस शिविर में सफल होती हैं तो वो भारतीय टीम के साथ कैमरून की धरती पर अपने हुनर का लोहा मनवाने पहुंचेगी, जिस से देश का ही नहीं बल्कि राज्य व जिले का भी नाम रोशन होगा।

इस बाबत जानकारी देते हुए कोच दविंद्र पाल सिंह ने बताया कि इससे पहले अनमोल कौर ढिल्लों, अजशनजोत चीमा व नवप्रीत कौर मान सिरसा में 27 मई से 24 जून तक आयोजित किया गया, राष्ट्रीय स्तरीय शिविर में भाग ले चुकी हैं, और आज से सिरसा में शुरू होने वाले एक और शिविर में भाग लेने जा रही हैं, जो 42 दिन तक चलेगा। जिसके बाद कैमरून में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए एक सोलह सदस्यीय टीम चुनी जाएगी। उन्होंने बताया कि इन्होंने शिविर के लिए कड़ी तैयारी की है, और इनको खुद पर पूरा भरोसा है कि अंतिम 16 में वो अपनी जगह बनाकर बठिंडा लौटेंगी।

औरतों के हक से खिलवाड़

एक मजबूत जनतंत्र में महिलाओं के मुद्दे को कितनी आसानी से समुदाय के कर्णधारों के हवाले छोड़ दिया गया। उन्हें आज तक बराबरी का पूर्ण नागरिक अधिकार क्यों नहीं मिल पाया, जिसमें वे अपने मसले संविधान प्रदत्त कानूनों के मातहत निपटाएं। आजादी के 62 साल बाद भी यह स्थिति क्यों बनी हुई है। समुदाय विशेष के धर्मगुरुओं, मौलवियों या कर्णधारों के हाथों उसके सदस्यों के भविष्य का फैसला करने का अधिकार होना चाहिए, यह मांग तो खाप पंचायतों की भी है कि वे अपनी परंपरानुसार कानून का इस्तेमाल कर सकें। ये खाप पंचायतें और समुदाय आधारित संस्थाएं- जो धार्मिक वैधता भी हासिल होने का दावा करती हैं, पहले से ही महिलाओं पर नियंत्रण की ढेरों नीतियां और नियम बनाए हुए हैं। सरकार और प्रशासन के लोग ऐसे मामलों में आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, यह कह कर कि यह धार्मिक मामला है। हाशिए के सभी लोगों के लिए जिसमें महिलाएं भी हैं, मुक्तिदायी कानूनों की जरूरत है। ये मुक्तिदायी कानून सभी को बराबर का हक दें और समुदायों की मनमानी नहीं चलने पाए। महिलाएं सर्वप्रथम एक व्यक्ति, एक नागरिक हों न कि एक समुदाय या धर्मविशेष की सदस्य। ध्यान देने लायक बात है कि भारत जैसे बहुधर्मीय मुल्क में ही नहीं सऊदी अरब जैसे मुस्लिम बहुल मुल्क में भी मुस्लिम महिलाओं के बीच नई जागृति आने के संकेत मिल रहे हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि किस तरह सऊदी में धार्मिक पुलिस के खिलाफ बढ़ते गुस्से का असर उजागर हो रहा है। पता चला कि एक महिला ने तो एक धार्मिक पुलिस पर गोली चलाई थी।
दरअसल, जबरन लोगों को काबू में रखने की एक सीमा होती है और देर-सवेर इसका प्रतिरोध होता ही है। वह प्रतिरोध कितना सुनियोजित, मजबूत और प्रभावी होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग कितने संगठित होंगे।

राशन कार्ड न देने से भड़के लोग, डिपो होल्डर के खिलाफ की नारेबाजी

-डिपो होल्डर ने कहा इंस्पेटर के आने के बाद जारी होंगे कार्ड 
बठिंडा। दुग्गल पैलेस के पास स्थित राशन डिपो में अनियमियतताओं को लेकर लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। इसमें लोगों ने आरोप लगाया कि डिपो संचालक मनमाने ढंग से काम करता है व लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कुछ समय पहले जिला खुराक विभाग की तरफ से राशन कार्ड जारी किए गए थे। इसमें डिपो होल्डर के पास सैकड़ों कार्ड बकाया पडे़ हैं लेकिन वह इन्हें जारी करने में आनाकानी की जा रही है। डिपो होल्डर करतार सिंह से जब संपर्क किया जाता है तो कहा जाता है कि विभाग के इस्पेक्टर आकर कार्ड वितरित करेगा। इसमें लोगों को प्रतिदिन डिपो में बुला लिया जाता है लेकिन उन्हें हर बार निराशा का सामना करना पड़ रहा है।
ईलाका वासी सूरज ने बताया कि दुग्गल पैलेस के पास स्थित गुरुकुल रोड पर करतार सिंह डिपो होल्डर को नए राशन कार्ड देने के लिए कई बार लोगों ने गुहार लगाई लेकिन इसमें किसी तरह की सफलता नहीं मिल सकी। अन्य दिनों की तरह आज मंगलवार को जब इलाके के ६० के करीब परिवार वहां पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि फूड सप्लाई विभाग का इंस्पेक्टर जब आएगा को कार्ड वितरित किए जाएंगे। इसके बाद वहां खडे़ लोगों ने एक घंटे तक इंतजार किया लेकिन किसी तरह की सफलता नहीं मिलने पर लोगों ने वहां खडे़ होकर नारेबाजी करना शुरू कर दी। इसमें डिपो होल्डर के साथ प्रशासकीय अधिकारियों के खिलाफ भी नारेबाजी की गई। लोगों ने प्रशासन से इस बाबत लोगों को पेश आ रही परेशानी का तत्काल हल निकालने की मांग रखी।  

तहसील दफ्तर बने भ्रष्टाचार के अड्डे, लगती है करोडो की चपत

-सरकार चाहकर भी नहीं कर पाती है कानूनी कार्रवाई 
-लुधियाना कांड में जिला प्रशासन की कारगुजारी भी आ चुकी है  शक के दायरे में  
हरिदत्त जोशी 
बठिंडा। पंजाब की तहसील परिसरों में व्याप्त भ्रष्ट्राचार को रोकने के लिए किसी भी सरकार ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया है। वतर्मान में हालात यह है कि तहसील दफ्तरों में नीचले स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक भ्रष्ट्राचार का बौलबाला है। इसमें जहां अधिकारी और कमर्चारी अपनी जेबे भरने में लगे हैं वही सरकार को हर साल करोडों की चपत लगती है। दो नंबर में होने वाली कमाई का ही नतीजा है कि इस विभाग में एक अर्जी नवीस से लेकर सामान्य कलर्क भी लाखों की कमाई कर आलीशान बंगलों के मालिक बने हुए है। 
कई तहसील दफ्तरों में तो प्राइवेट स्तर पर रजिस्ट्री लिखने वाले ही लाखों में खेलते हैं। इस मामले में भ्रष्ट्रचार को उच्च अधिकारी से लेकर नीचले स्तर पर राजनेता जमकर प्रोत्साहन देते हैं। यही कारण है कि अगर जिला इकाई में सत्तापक्ष से जुडा़ कोई भी समारोह हो या फिर सरकारी समागम किया जाए सबसे अधिक बगार (अवैध वसूली के पैसे से समागम का खर्च) पूरा करने का जिम्मा इसी विभाग पर होता है। अब भ्रष्ट्रचार की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन  यह होता कैसे हैं इसके बारे में कही जिक्र नहीं हुआ है, चलो हम बताते है कि तहसील दफ्तर में दो नंबर की कमाई कैसे की जाती है।एक जिला स्तर के तहसील दफ्तर में  प्रतिदिन डेढ़ सौ के करीब रजिस्ट्री, इंतकाल और बयाने किए जाते हैं। 
सामान्य तौर पर जिला प्रशासन की तरफ से हर क्षेत्र में जमीनों की खरीद और बिक्री करने के लिए सरकारी मूल्य निर्धारित कर रखे हैं। दूसरी तरफ जिले में क्षेत्र में मिलने वाली सुविधा के अनुसार व्यापारी व प्रार्पटी डीलर जमीन को मोटे दाम में बेच देता है। इसमें एक जमीन जो दस से १५ हजार रुपये प्रतिगज बेची गई उसमें स्टाप ड्यूटी व आयकर बचाने के लिए मिलीभगत कर जमीन को मात्र एक हजार रुपये प्रति गज बिका दिखा दिया जाता है। इस तरह लाखों रुपये की सरकारी फीस सीधे तौर पर चोरी कर ली जाती है। इस काम के बदले तहसील दफ्तर में रजिस्ट्री करने वाले कमर्चारी व अधिकारियों को एक मुस्त राशि दो नंबर में दी जाती है। इस तरह एक अनुमान के अनुसार एक तहसील दफ्तर में प्रतिदिन दो से तीन लाख रुपये की अवैध कमाई की जाती है। इसमें अधिकारी व  कर्मचारी तो एक माह में करोड़ो कमा लेते हैं लेकिन सरकार को इससे दो गुणा चपत लगा दी जाती है। अब सवाल उठता है कि करोडों की कमाई में हिस्सा किस-किस को जाता है। सीधा जा जबाव मिलेगा इसमें हिस्सेदारी कई लोगों की होती है। तभी तो जिला प्रशासन कभी भी इस अवैध कमाई को रोकने का प्रयास नहीं करता और विभागीय स्तर पर भी इस विभाग के खिलाफ आज तक कानूनी कार्र्वाई नहीं हो सकी है। एक साल पहले लधियाना जिले में तहसीलदार और राजनेताओं के बीच तकरारबाजी और मारपीट की घटना अखबारों की सुरखी में रही। 
इसमें एक जमीन को लेकर तहसीलदार की पिटाई की गई कि वह जमीन के कम मूल्य पर रजिस्ट्री करने को तैयार नहीं हो रहा था। सभी दूध के धुले नहीं होते, मामला जांच की दायरे में आया तो पता चला कि राज्य की अन्य तहसीलों की तरह वहां भी पैसे बटोरने का गौरखधंधा जोर शोर से चलता है इसमें हिस्सेदारी डीसी दफ्तर तक पहुंचती है। वहां से सरकार में बैठे लोगों को भी हिस्सा पहुंचता है। अखिर सरकारी खजाने को लूटने वाली इन गतिविधियों को प्रोत्साहन देने वाले लोग किसी एक दल से नहीं जुडे़ है बलिक हर राजनीतिक दल ने अपने सरकार गठन के बाद इस भ्रष्ट्रचार को हवा दी है और अपनी जेबे भरी है। दिखावे के लिए कानून बने लेकिन वह भी भारी जबाव में कागजों तक ही सिमटकर रह गए। जब तहसील में बैठे अधिकारी व कर्मचारी मोटी कमाई करने में लगे है तो वहां अरजीनवीस, स्टाम पेपर बेचने वाले कर्मी से लेकर नक्शा बनाने वाले भी लोगों को जमकर लूटने का धंधा करते हैं। 
रजिस्ट्री लिखने वाले लोग सीधा पैसा लोगों से लेकर अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। इसमें बकायदा रजिस्ट्री करवाने को कहा जाता है कि पूरे खर्च के साथ तहसीलदार का हिस्सा उन्हें देना पडे़गा। इस तरह की अवैध कमाई के धंधे में हो रही बेसुमार कमाई का नतीजा है कि यहां सरकार से मात्र दस हजार रुपये प्रतिमाह वेतन लेने वाला कर्मचारी भी आज लाखों की जमीन व मकान का मालिक है। इस मामले में आयकर विभाग ने भी कभी इन मगरमच्छों पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की है। अगर इन लोगों की जायदाद और आय की जांच की जाए तो होने वाले गोलमाल का पता चल सकता है। दूसरी तरफ सरकार को भी भ्रष्ट्रचार का अड्डा बन रहे इस विभाग पर शिकंजा कसने के लिए सारथर्क कदम उठाना पडे़गा। अगर सरकार राज्य की सभी तहसील दफ्तरों की अवैध कमाई पर लगाम कस ले तो राज्य के विकास के लिए फंड जुटाने को दूसरों के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पडे़गी। इसके साथ ही सरकार व जिला प्रशासन को यहां की गतिविधियों को प्रादर्शी बनाना होगा। तहसील परिसर में बैठे दूसरे लोगों पर शिकंजा कसना होगा जो प्रत्यक्ष तौर पर इस धंधे को प्रोत्साहन दे रहे हैं। जमीनों की रजिस्ट्री के लिए प्लाट की फोटो खिचवाने का प्रावधान है लेकिन तहसील के साथ एक प्लांट पर ही सभी को खडा़ कर फोटो खीचकर दो सौ रुपये बटोर लिए जाते हैं, जिससे गलत रजिस्ट्री करवाने के धंधे को प्रोत्साहन मिलता है। 
अधिकारी पैसे के लालच में इतने अंधे हो जाते हैं कि वह गवाह के साथ रजिस्ट्री कागज में दर्ज आदमी का भी पता नहीं लगाते बलिक सीधी रजिस्ट्री कर मामले की इतिश्री कर देते हैं। इसका विपरित प्रभाव यह पडा़ कि हजारों मामले फ्रजी रजिस्ट्री के सामने आ चुके हैं। इसमें भी पैसे ले देकर तहसीलदार से लेकर हर एक आसानी से  बच जाता है जो इसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेवार होता है। 

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