Friday, July 2, 2010

रक्षक से भक्षक तक

सर जी, वो कहता है कि उसको एसी चाहिए घर के लिए। वो का मतलब था डॉक्टर, क्योंकि मोबाइल पर किसी से संवाद करने वाला व्यक्ति एक उच्च दवा कंपनी का प्रतिनिधि था, जो शहर में उस कंपनी का कारोबार देखता था। इस बात को आज कई साल हो गए, शायद आज उसके संवाद में एसी की जगह एक नैनो कार आ गई होगी या फिर से भी ज्यादा महंगी कोई वस्तु आ गई होगी, क्योंकि शहर में लगातार खुल रहे अस्पताल बता रहे हैं कि शहर में मरीजों की संख्या बढ़ चुकी है, जिसके चलते दवा कारोबार में इजाफा तो लाजमी हुआ होगा।

आप सोच रहें होंगे कि मैं क्या पहेली बुझा रहा हूँ, लेकिन यह किस्सा आम आदमी की जिन्दगी को बेहद प्रभावित करता है, क्योंकि इस किस्सा में भगवान को खरीदा जा रहा है। चौंकिए मत! आम आदमी की भाषा में डॉक्टर भी तो भगवान का रूप है, और उक्त किस्सा एक डॉक्टर को लालच देकर खरीदने का ही तो है। कितनी हैरानी की बात है कि पैसे मोह से बीमार डॉक्टर शारीरिक तौर पर बीमार व्यक्तियों का इलाज कर रहे हैं।

इस में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि दवा कंपनियों के पैसे से एशोआराम की जिन्दगी गुजारने वाले ज्यादातर डॉक्टर अपनी पसंदीदा कंपनियों की दवाईयाँ ही लिखकर देते हैं, जिसकी मार पड़ती है आम आदमी पर, क्योंकि दवा कंपनियां डॉक्टर को दी जाने वाली सुविधाओं का खर्च भी तो अपने ही उत्पादों से निकालेंगी।

पैसे के मोह से ग्रस्त डॉक्टरी पेशा भी बुरी तरह बर्बाद हो चुका है, अब इस पेशे में ईमानदार लोग इतने बचें, जितना आटे में नमक या फिर समुद्र किनारे नजर आने वाला आईसबर्ग (हिमखंड), ज्ञात रहे कि आइसबर्ग का 90 फीसदी हिस्सा पानी में होता है, और दस फीसदी पानी के बाहर, जो नजर आता है।

अब ज्यादातर डॉक्टरों का मकसद मरीजों को ठीक करना नहीं, बल्कि रेगुलर ग्राहक बनाना है, ताकि उनकी रोजी रोटी चलती रहे, और वो जिन्दगी को पैसे के पक्ष से सुरक्षित कर लें, पैसे की लत ऐसी लग गई है कि आम लोग सरकारी नौकरियाँ तलाशते हैं, डॉक्टर खुद के अस्पताल खोलने के बारे में सोचते हैं। मुझे याद है, जब मेरी माता श्री बीमार हुई थी, उसका मानसा के एक सरकारी अस्पताल से चल रहा था, वो पहले से चालीस फीस ठीक हो गई थी, अचानक उस युवा डॉक्टर ने सरकारी नौकरी छोड़कर खुद को अस्पताल खोल लिया, और मेरी माता की दवाई अब उसके अस्पताल से आनी शुरू हो गई, वो पहले महीने भर में बुलाता था, अब हफ्ते भर में। और मोटी फीस लेने लगा था, लेकिन कुछ हफ्तों बाद उसकी तबीयत फिर से पहले जैसी हो गई, क्योंकि अब उस डॉक्टर का मकसद खुद की आमदन बढ़ाना था, ना कि मरीज को तंदरुस्त कर घर भेजना।

लोगों ने डॉक्टर को भगवान की उपमा दी है, लेकिन अब उस भगवान के मन में इतना खोट आ गया है कि अब वो भगवान अपने दर पर आने वाले मानवों के अंगों की तस्करी करने से भी पीछे नहीं हट रहा। इतना ही नहीं, कभी कभी तो भगवान इतना क्रूर हो जाता है कि शव को भी बिन पैसे परिजनों के हवाले नहीं करता। और तो और रक्त के लिए भी अब वो निजी ब्लड बैंकों की पर्चियां काटने लगा है, आम आदमी का शोषण अब उसकी आदत में शुमार हो गया है। अपनी रक्षक की छवि को उसने भक्षक की छवि में बदल दिया।

कुलवंत हैप्पी
76967-13601

नई किताब 'होटलों में अनिवार्य ज्ञान'रीलिज की

नई किताब 'होटलों में अनिवार्य ज्ञान'रीलिज की
बठिंडा। हिन्दी, संस्कृत  व गढ़वाल भाषा में करीबन दस किताबें लिख चुके पंडित बीडी भास्कर की नई किताब 'होटलों में अनिवार्य ज्ञान' का विमोचन समारोह शुक्रवर को शहर के एक निजी होटल में किया गया। समारोह में होटल एशोसिएशन बठिंडा के अध्यक्ष सतीश अरोड़ा मुख्यातिथि के तौर पर शामिल रहे। अरोड़ा ने लेखक वीडी भास्कर द्वारा लिखी गई नई किताब को रीलिज किया व किताब की विशेषता के बारे में लोगों को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस होटल जैसे कार्य में जहां आम व्यक्ति सोचना बंद कर देता है, वहीं से लेखक वीडी भास्कर ने इस कार्य को शुरु किया है। उन्होने बताया कि वीडी भास्कर द्वारा लिखी गई उनकी नई पुस्तक 'होटलों में अनिवार्य ज्ञान' होटलों में काम करने वाले लोगों के  अलावा इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वालों के  लिए भी एक अद्भुत पुस्तक साबित होगी। समारोह के अंत में होटल एशोसिएशन द्वारा वीडी भास्कर को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। समागम में प्रमुख तौर पर विक्रमजीत सिंह बाहीया के अलावा एशोसिएशन के कार्यकर्ता रमेश सरदाना, अनिल ठाकुर, चमन सिंह, डा. नवदीप सिंह, आई.एस. घुमन रिटा, एम.एस. सजवान, रूपन कटारिया, बीएस सन्धू आदि विशेष तौर पर शामिल हुए।
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बाबा फरीद ग्रुप ने डेमीनोज पीजा कंपनी का पेलेसमेंट ड्राईव करवाया 
बठिंडा। बाबा फरीद गु्प आँफ इंस्टीट्यूशन में फास्ट ड्डूड क्षेत्र की प्रसिद्ध कंपनी डेमीनोज पीजा की तरफ से पेलस्टमेंट ड्राईव की गई। इस बाबत जानकारी देते हुए संस्था के एमडी गुरमीत सिंह धालीवाल ने बताया कि नए शैक्षाणिक से संस्थान में इस प्रकार कोर्स, बी.एस.सी, बीएससी,एटीएचएम, पीजी जैसे आदि नए कोर्स शुरु किए जा रहे है। इन्हे कोर्स की आज के युग में बड़ी मांग है। श्री धालीवाल ने बताया कि डेमीनोज कंपनी ने वी एटीएचएम ने प्लेसमैंट का आधार बनाया हुआ है। इन प्रकार की कंपनियों के साथ संस्था के संबंध बने पर भविष्य में यह कंञ्पनियां संस्थान में आती रहेगी व एटीएचएम वर्ग कोर्स संस्था से पास करने वाले छात्राओं को रोजगार उपलब्ध करवाने में मदद करेगी।  इस  पेलस्टमेंट ड्राईव में पंजाब के अलावा शिमला, अंबाला, कैथल, हशियारपुर, कांगड़ा मंडी, दिल्ली, हिसार, हनुमानगढ़, बीकनेर आदि क्षेत्रों से भारी संख्या में उम्मीदवार पहुंचे। इस दौरान २५ उम्मीदवारों को  आफर लैटर भी दिए गए। संस्था के पेलस्टमैंट अफसर गौरव ने बताया कि यह कोर्स पास करने वाले छात्रो को उक्त मैनजमैंट की तरफ से ट्रेनिंग दी जायेगी व इनकी सालान वेतन दो लाख के करीब होगा।
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भाखड़ा नहर से मिले तीन शव व भ्रूण
बठिंडा : बठिंडा-सरदूलगढ़ रोड़ स्थित गांव कुसला से होकर गुजरने वाली भाखड़ा नहर से एक छह सात माह के नर भ्रूण के अलावा तीन अज्ञात लोगों की गली सड़ी लाशें बरामद हुई हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय समाज सेवी संस्था नौजवान वेलफेयर सोसायटी को सूचना मिली कि बठिंडा-सरदूलगढ़ रोड़ स्थित भाखड़ा नहर में तीन लाशें व एक भ्रूण फंसा हुआ है। सूचना मिलने के बाद संस्था के कार्यकर्ता तरसेम सिंह, विक्की, कमल वर्मा, शिवम शर्मा आदि घटनास्थल गांव कुसला पहुंचे, और उन्होंने जोड़कियां थाना प्रभारी कर्मजीत सिंह की देखरेख में नहर से तीन लाशें व एक नर भ्रूण को बाहर निकाला और लाशों व भ्रूण को पोस्टमार्टम के लिए सरदूलगढ़ के सिविल अस्पताल में भेज दिया। संस्था प्रमुख सोनू महेश्वरी ने बताया कि लाशें करीबन 15-20 दिन पुरानी थी, जिनकी शिनाख्त हो पाना बेहद मुश्किल है। उन्होंने बताया कि एक लाश की बाजू पर इंग्लिश में जेओटीई व शेयर लिखा हुआ था।

नहर से मिली नवजात बच्चे की लाश :
निकटवर्ती गांव तिओना में उस समय हतप्रभ की स्थिति पैदा हो गई, जब गांव से होकर गुजरने वाली नहर में जा रही एक नवजात बच्चे की लाश पर कुछ गांवों वासियों की निगाह पड़ी। उन्होंने तुरंत एक समाज सेवी संस्था को मोबाइल फोन द्वारा सूचित किया। संस्था के कार्यकर्ता ने मौके पर पहुंचकर नवजात बच्चे को नहर से बाहर निकाला, लेकिन वो मरा हुआ था।

एकत्र की जानकारी के अनुसार वक्त था सुबह दस बजे का, जब स्थानीय समाज सेवी संस्था सहारा जन सेवा को सूचना मिली कि गांव तिओना की नहर में एक नवजात शिशु का शव जा रहा है। संस्था ने सूचना मिलते ही अपने कार्यकर्ता जग्गा सिंह की नेतृत्व में अपनी टीम को घटनास्थल के लिए रवाना कर दिया। मौके पर पहुंच कर संस्था वर्करों ने बच्चे को बाहर निकाला, जो मृत था। संस्था के कार्यकर्ता बच्चे को पोस्टमार्टम के लिए बठिंडा के सिविल अस्पताल ले आए। ज्ञात रहे कि उक्त शव नवजात लड़के का है।

माहौल भड़काऊ गीतों पर लगे पाबंदी

गीत संगीत के लिए बने सेंसर बोर्ड 
बठिंडा : पंजाबी गीत संगीत वारिस हीर की बदौलत अश्लीलता से बाहर निकालकर साफ सुधरे माहौल में पहुंचा ही था कि पंजाबी गायक बब्बू मान के गीतों ने उसका रुख क्रांतिकारी गीतों की तरफ मोड़ दिया। इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि अच्छी सोच क्रिएट करने की बजाय गीत विवादों को क्रिएट करने लगे हैं। लोगों के मनों में मोहब्बत का बीज बोने की बजाय नरफत के खार बोए जा रहे हैं, जिससे स्थिति किसी भी समय विस्फोटक साबित हो सकती है।

गौरतलब है कि पिछले कई दिनों से बब्बू मान द्वारा लाला लाजपत राय को लेकर गाया गीत आलोचनाओं का निरंतर शिकार हो रहा है। अभी बब्बू मान का मामला सिमटा नहीं था कि कुछ हिन्दु सामाजिक संगठनों ने म्यूजिक चैनलों पर प्रसारित होने वाले गीत असीं तां यारों फैन हां बाबे भिंडरांवाले दे' को लेकर एतराज जता दिया। कुछ संगठन तो इस गीत को पूरी तरह बैन करवाने की मांग भी उठा रहे हैं।

लोगों को सचेत करने की बात तो कोई बुरी बात नहीं, लेकिन पुराने जख्मों को कुरेदना व किसी हिंसक भावनाओं को फिर से उत्पन्न करना के बेहद बुरी बात है, क्योंकि विवादित बातें समाज को टुकड़ों में बांटकर रख देती हैं। अब पंजाब के कई गायक ऐसे गीत गा रहे हैं, जो किसी न किसी वर्ग को निशाना बनाकर गाए जा रहे हैं। जैसे कि पिछले दिनों रिलीज हुई राज कांकड़ा की एलबम का गीत 'तुसीं उन्हां दे गलां विच्च हार पाउंदे रहे' आदि गीत। इस गीत में भगत सिंह की सराहना की गई तो दूसरी तरफ देश के राष्ट्रपिता की खुलकर धज्जियां उड़ाई गई हैं।

आज ऐसे तमाम गीत टेलीविजनों पर बज रहे हैं, जो सामाजिक भाईचारे को ठेस पहुंचा रहे हैं। इस बाबत जब विश्व हिन्दु परिषद के शीर्ष नेता सुखपाल सिंह सरां का कहना है कि आज के युवा गायक घटिया मानसिकता की उपज गीत गाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को नफरत फैलाने वाले गीतों पर रोक लगानी चाहिए। एक अन्य बुद्धजीवि का मानना है कि पंजाबी संगीत के लिए हिन्दी फिल्मों की तरह एक सेंसर बोर्ड होना चाहिए, जो गीत कंटेंट को देखकर ही रिलीज करे।

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