Friday, June 24, 2022

राज्य का सेहतमंत्री कमिशन के चक्कर में जेल गया लेकिन बठिंडा का सिविल अस्पताल कमिशनखोरी का अड्डा बना


बठिंडा (हरिदत्त जोशी).
भगवान का दर्जा प्राप्त डॉक्टरों में से चिकित्सकों का एक तबका सवालों के घेरे में है। जिला के अस्पतालों में महंगी दवाइयों पर कमीशनखोरी का गोरखधंधा चल रहा है तो प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों के टेस्ट करवाने के नाम पर कुछ डाक्टरों को मोटी कमिशन पहुंच रहा है। यही नहीं इस धंधे में एम्स व सरकारी अस्पताल में तैनात कुछ डाक्टरों पर भी शक की सुई घूम रही है। हाल ही में सिविल अस्पताल में एक प्राइवेट डायग्नोसिस्ट सेंटर की गाड़ी व दो करिंदे पकड़े गए लेकिन इसमें सिविल अस्पताल प्रबंधन ने किसी तरह की कारर्वाई नहीं की और न ही पुलिस ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाई जिससे मामला रफादफा कर दिया गया। इस मामले में आशंका जताई जा रही है कि जिस डायग्नोसिस्ट सेंटर में सिविल अस्पताल से मरीज लेकर जा रहे थे उसका संचालक सरकारी डाक्टर के परिचित कर रहे हैं व इस बाबत बकायदा कमिश्न भी समय पर दिया जा रहा था। एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कमिशनखोरी के चक्कर में अपनी ही सरकार के सेहत मंत्री पर केस दर्ज करवाकर मंत्री पद छीन गिरफ्तार करवा दिया वही सिविल अस्पताल व सरकारी अस्पतालों व संस्थानों में सरेआम चल रहे कमिशनखोरी के धंधे पर लगाम कसने के लिए किसी तरह के सार्थक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं बल्कि जो मामला सामने आया उसे भी दबाने की कोशिश की जा रही है। इस मामले में पुलिस ने सिविल अस्पताल में उपचार के लिए आए मरीजों को गुमराह कर प्राइवेट डायग्नोसिस्ट सेंटर में लेकर जाने वाले दो लोगों को मौके पर हिरासत में लिया था वही सेंटर की एक गाड़ी जिसमें मरीजों को लेकर जाते थे को भी पकड़ा लेकिन सिविल अस्पताल प्रबंधन की तरफ से मामले में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाने के चलते 72 घंटे बाद भी मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। फिलहाल इस घटना में सिविल अस्पताल प्रबंधन की निरसता कई तरह के सवाल खड़े करती है। पहला सवाल यह है कि सिविल अस्पताल में रखी गई करोड़ों रुपए की मशीनों को कबाड़ कहकर बंद रखा जाता है इन मशीनों को कर्मी व एक्सपर्ट की कमी के चलते नहीं चलाने की बात कही जाती है लेकिन हाल की घटना से इन मशीनों को बंद रखने के पीछे बड़ी साजिश व प्राइवेट अस्पतालों को फायदा पहुंचाने की आशंका जताई जा रही है। यही नहीं सिविल अस्पताल में हर तरह के टेस्ट की सुविधा है इसके बावजूद दलाल लोगों को कहते हैं कि अस्पताल में टेस्ट की सुविधा नहीं है व जो टेस्ट होते हैं वह रिपोर्ट गलत देते हैं। सिविल अस्पताल की सुविधाओं को सरेआम नकारा कहने वाले उक्त दलालों को सिविल सर्जन दफ्तर के पास ही बनी ओपीडी में सरेआम घूमते देखा जा सकता है जबकि अधिकारी इस मामले में आंखे मूदकर बैठे हैं व इसे सामान्य घटना कहकर व शिकायत का इंतजार कर रहे है का दावा कर चुपी साध लेते हैं।  

यही नहीं पुख्ता सूत्रों के मुताबिक कुछ चिकित्सक मरीजों को कमीशन के चक्कर में महंगी ब्रांडेड दवाएं व बाहर से टेस्ट करवाने का लिख रहे हैं। इसकी वजह से आम आदमी की जेब ढीली हो रही है। अस्पताल में लाखों रुपये की सरकारी दवा पहुंचती है लेकिन इसमें मरीजों को गिनती की कुछ दवा ही दी जाती है व बाकि महंगी दवाएं कहा जाती है यह भी जांच का विषय है। हालांकि जिला में यह गोरखधंधा लंबे अरसे से जारी है। इसके तहत चिकित्सक दवा कंपनियों से मोटी चांदी कूट रहे हैं। इसमें न केवल ब्रांडेड बल्कि लोकल ब्रांड की दवा कंपनियों का भी खेल चल रहा है। वहीं, सरकार के फरमान के बावजूद अधिकांश डॉक्टर मरीजों को सस्ती जेनरिक दवाई लिखने के बजाय महंगी ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। इस कथित मनमानी से आम मरीज परेशान और बेबस हैं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि जिला के अस्पतालों में विभाग की ओर से दवाओं का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है। इसके बावजूद चिकित्सक मरीजों को बाहरी स्टोरों से दवा खरीदने को मजबूर कर रहे हैं।

गिफ्ट से लेकर कैश तक का चलता है धंधा

नाम न छापने की शर्त पर जिला में कार्यरत दवा कंपनी के एक एमआर (मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव) ने बताया कि अमूमन दवा कंपनियों की ओर से डॉक्टरों को सालाना उपहार तय होते हैं, लेकिन कई मर्तबा डॉक्टर कैश तक की डिमांड करते हैं। जिनकी आपूर्ति करना मजबूरी बन जाता है। हालांकि नामी कंपनियां कैश जैसे मामलों में न पड़कर तय गिफ्ट देती हैं। लेकिन लोकल ब्रांड के मामलों में बात कैश तक आती है। डॉक्टरों की 20 से लेकर 50 फीसदी तक कमीशन तय रहती है। यह दीगर है कि सभी डॉक्टर इस तरह की अनैतिक प्रैक्टिस में शामिल नहीं हैं।

सरकार बनाए ठोस नीति- जिला में आम आदमी के सरोकारों से जुड़े संगठनों का कहना है कि सरकार को इस बाबत कोई ठोस नीति बनाकर उसे अमल में लाना चाहिए। जहां तक डॉक्टरी पेशे का सवाल है यह पुण्य के कार्य से जुड़ा है। चिकित्सकों को इस तरह की अनैतिक प्रैक्टिस में शामिल नहीं होना चाहिए। इस पर कार्रवाई की जरूरत है। वहीं, प्रदेश भर में बतौर एमआर जुड़े हजारों युवाओं के लिए भी सरकार को नीति निर्धारित करनी चाहिए। 




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