Wednesday, May 4, 2022

विशेषज्ञों ने हानिकारक खाद्य उत्पादों के हेल्थ स्टार लेबलिंग पर एफएसएसएआई के फैसले को नकारा

बठिंडा, 4 मई (हरिदत्त जोशी). एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया (मालवा ब्रांच) सहित बाईस भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और उपभोक्ता संगठन भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की योजना का विरोध करने के लिए एक मंच पर आए है। इसमें अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को ‘हेल्थ स्टार रेटिंग’ के साथ लेबल कर डिजाइन किया गया है। इसमें उपभोक्ताओं को गुमराह करने और भ्रमित करने के लिए खाद्य व पेय उत्पादों पर फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (एफओपीएल) का समर्थन किया गया है। इससे पहले से सेहत संबंधी समस्याओं से जूझ रहे भारत के लोगों पर असर पड़ेगा व कई ऐसे खानपान के साजों सामान को प्रोत्साहन मिलेगा जो बच्चों के लिए हानिकारक है। विशेषज्ञों ने सरकार से मांग रखी है कि वह नियमों को तय करने से पहले इसमें ऐसी व्यवस्था बनाए जिससे आम लोगों को पता चल सके कि वह जिस खानपान व पैक खानपान का इस्तेमाल कर रहा है उसमें उनकी सेहत को खराब करने वाले तत्वों की मात्रा सामान्य, कम व अधिक है। इस नीति से शूगर, हार्ट जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे लोग जागरुक हो सकेंगे व तय कर सकेंगे कि उन्हें उक्त खानपान का इस्तेमाल करना है या फिर नहीं। समूह ने मांग रखी कि सरकार ऐसे सभी खान-पान व पेय पदार्थों पर पूर्ण पाबंदी लगाए जो बच्चों के लिए हानिकारक है। 

डा. वितुल कुमार गुप्ता ने कहा कि इससे भारतीय खाद्य उत्पादों के बारे में यथार्थवादी जानकारी प्रस्तुत करके अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों की खपत को कम करने के उद्देश्य को पूरा किया जा सकेगा। इस ‘स्थिति में  खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों की सिफारिश करता है, जिसमें डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के आधार पर सभी पैकेट अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों पर एक चेतावनी लेबल शामिल है, जो प्रकृति में अनिवार्य है और इसे विनियमित होने के एक वर्ष के भीतर लागू किया जाना चाहिए। एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया (मालवा ब्रांच) के अध्यक्ष और स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रो. डॉ. वितुल के. गुप्ता ने ‘पोजिशन स्टेटमेंट’ का समर्थन करते हुए कहा कि भारत मोटापे की महामारी के सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, जिसका मुख्य कारण गैर- जंक फूड, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, पोषण की दृष्टि से अनुपयुक्त खाद्य पदार्थ, कैफीनयुक्त, रंगीन कार्बोनेटेड खाद्य व पेय पदार्थ और चीनी-मीठे पेय पदार्थों से युक्त सेहत के लिए हानिकारक खाद्य व पेय उत्पादों (यूपीएफ) की बढ़ती खपत के कारण गंभीर रोग (एनसीडी) बढ़ रहे हैं। 

इन खाद्य उत्पादों के पैक लेबलिंग (एफओपीएल) के सामने चेतावनी पर सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हेल्थ स्टार रेटिंग के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की पहल पर सवाल उठा रहे हैं। इसमें डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित पोषक तत्व सामग्री से 2-3 गुना अधिक लेबल रखा है। इससे 4 से 5 साल की असाधारण लंबी संक्रमण की संभावना रहेगा और जो आगे भी जारी रहता है। स्वास्थ्य स्टार रेटिंग की बजाय संगठन व सरकार को प्रतीक, उच्च  या अधिक जैसे लेबल  के चेतावनी पर जोर दिए बिना भ्रामक स्थिति बनाने की कोशिश की जा रही है। खानपान के सामान की बिक्री से पहले इसे बच्चों को ट्रागेट कर डब्ल्यूएचओ सिरो पोषक तत्व प्रोफाइल के मॉडलिंग को अपनाया जाना चाहिए। वही ऐसे खाद्य पदार्थों व पेय पदार्थ को तत्काल बंद किया जाना चाहिए जो बच्चों को नुकसान पहुंचाते हैं। वही खाद्य उद्योग को नियमों की पालन करने के लिए अधिकतम 18 महीने का समय दिया जाना चाहिए और सरकार को कॉर्पोरेट हितों की बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य हितों पर ध्यान देना चाहिए। इस विशेषज्ञ समूह में प्रमुख तौर पर प्रो. के श्रीनाथ रेड्डी, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष, डॉ. संजय राय, एम्स, नई दिल्ली के सामुदायिक चिकित्सा के प्रोफेसर, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आईपीएचए) के अध्यक्ष और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की डीजी सुनीता नारायण शामिल है। विशेषज्ञों के समूह ने नोट किया कि फाइबर, फल, सब्जी, नट्स जैसे खाद्य उत्पादों में जोड़े गए अलग-अलग घटक, भोजन के स्वस्थ होने का गलत प्रभाव दे सकते हैं और अधिक खपत को जन्म दे सकते हैं। इसलिए एफएसएसआई के निर्णय में बदलाव की जरूरत हैं। एनएपीआई के संयोजक डॉ अरुण गुप्ता ने कहा कि हालांकि एफएसएसएआई के अधिकांश परामर्श एक हितधारक के रूप में खाद्य उद्योग से काफी प्रभावित थे, लेकिन इसे लागू करने का निर्णय एचएसआर के लिए आश्चर्य की बात नहीं थी। सितंबर 2021 में खाद्य सुरक्षा नियामक भारतीय आबादी का अध्ययन करने के लिए आईआईएम अहमदाबाद के संक्षिप्त विवरण में एचएसआर की ओर झुका हुआ लग रहा था। 



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