अमृतसर। पंजाब के 31 किसान संगठनों से हमेशा अलग रुख अपनाने वाली किसान मजदूर संघर्ष कमेटी किसान आंदोलन में अलग-थलग नजर आती है। इसके प्रमुख सतनाम सिंह पन्नू और महासचिव सरवण सिंह पंधेर का गुट गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में लाल किला पर हुई हिंसा के बाद सवालों के घेरे में आ गया है और अन्य किसान संगठनों ने उससे दूरी बना ली है।
हमेशा अन्य किसान संगठनों से अलग स्टैंड के कारण चर्चा में रही किसान मजदूर संघर्ष कमेटी
पंधरे ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर आरोप लगाया है कि वह केंद्र सरकार से मिल गए हैं। उन्होंने कहा कि कैप्टन सोच रहे हैं कि उनके घर में ईडी के छापे नहीं पडऩे चाहिए। उनके इस बयान को पंजाब में ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। यहां तक कि अन्य किसान संगठनों ने भी उनके इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। सरकार ने भी इस पर कोई टिप्पणी करना मुनासिब नहीं समझा। इसका एक कारण यह भी कि इस गुट का प्रभाव अब अमृतसर व तरनतारन तक ही सीमित रह गया है।
169 दिन बाद बहाल किया था अमृतसर रेल ट्रैक, लाल किला हिंसा के बाद नाराज थे अन्य संगठन
गौरतलब है कि दिल्ली में 26 जनवरी को लाल किले में हुई हिंसक घटना के लिए किसान मजदूर संघर्ष कमेटी सवालों के घेरे में आ गई थी। दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना के साथ-साथ सतनाम सिंह पन्नू और सरवण सिंह पंधेर को भी इस हिंसा के लिए जिम्मेदार माना गया था। पंधेर ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च शुरू होने से पहले किसानों को लाल किले पर पहुंचने का एलान किया था, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
इस गुट ने किसान मार्च के तय रूट का उल्लंघन किया, जिससे बाकी किसान संगठन नाराज थे। जब सभी किसान संगठन दिल्ली पुलिस के साथ बैठकर ट्रैक्टर मार्च का रूट तय कर रहे थे, तब पंधेर की जत्थेबंदी सहमत हो गई, लेकिन ऐन मौके पर लाल किले व रिंग रोड पर जाने की जिद करते हुए पुलिस की रुकावटों को तोड़ दिया। पंधेर का एक और वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें वे मरने-मारने की बात कह रहे थे। इस संगठन के उग्र रवैये के कारण ही अन्य किसान संगठनों से इससे किनारा करना शुरू कर दिया था।
इस गुट का एक्शन प्लान हमेशा अलग रहा है। 31 किसान संगठनों ने जब साझा आंदोलन शुरू किया तो पन्नू-पंधेर गुट जत्थेबंदी ने अपने अलग प्रोग्राम का एलान कर दिया। जब सभी किसान संगठनों ने रेल ट्रैक खाली करने की घोषणा की तब भी यह गुट अड़ा रहा। इसी वजह से अमृतसर ट्रैक 169 दिन बाद बहाल हो सका, जबकि शेष पंजाब में ट्रेनें एक माह पहले चलने लगी थीं।
सभी किसान संगठनों ने दिल्ली में आंदोलन शुरू करने का एलान किया तो किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के नेता व कार्यकर्ता दिल्ली नहीं गए। बाद में इस गुट ने खुद ही अपने जत्थे दिल्ली लेकर पहुंचना शुरू कर दिया और संयुक्त मोर्चा के साथ स्टेज लगाने की जगह अपनी अलग स्टेज लगा दी। पंधेर पर शिरोमणि अकाली दल के नेताओं के साथ निकटता के भी आरोप लगते रहे हैं। पंधेर पर एक आपराधिक मामला दर्ज था, यह भी बताया जाता है कि इसे शिअद के प्रभावशाली नेता के इशारे पर रद कर दिया गया था।
राजेवाल ने भी बताया था संदिग्ध
लाल किले में हिंसा के बाद पंधेर ने कहा था कि हमारा लाल किले पर जाने का कोई भी प्रोग्राम नहीं था। किसान रूट भूल गए थे। इस सारे प्रकरण से किसान मजदूर संघर्ष कमेटी पंजाब की छवि पंजाब में खराब हुई। संयुक्त मोर्चा में शामिल किसान संगठनों के नेताओं ने भी संघर्ष कमेटी के नेताओं की गतिविधियों को संदेह से देखना शुरू कर दिया। भारतीय किसान यूनियन के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने तो खुलकर पंधेर का विरोध किया और उन्हें संदिग्ध बताया।
पहले उगराहां गुट में मनमानी करते थे पंधेर
सरवण सिंह पंधेर पहले भारतीय किसान यूनियन उगराहां ग्रुप अमृतसर के नेता थे। उगराहां ग्रुप जब भी कोई एजेंडा लागू करता तो पंधेर अकसर इससे बाहर जाकर कुछ और ही एजेंडा ले आते। उनकी मनमानी के कारण उगराहां ग्रुप में पंधेर के मतभेद पैदा हो गए और उन्होंने उगराहां ग्रुप को छोड़ दिया। इसके बाद सतनाम सिंह पन्नू के साथ मिलकर अपना संगठन बनाया। किसान संगठन हमेशा आरोप लगाते रहे हैं कि किसान मजूदर संघर्ष कमेटी राज्य में जिस पार्टी की सरकार होती है, उसके साथ मिल कर चलती है।