शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

माहौल भड़काऊ गीतों पर लगे पाबंदी

गीत संगीत के लिए बने सेंसर बोर्ड 
बठिंडा : पंजाबी गीत संगीत वारिस हीर की बदौलत अश्लीलता से बाहर निकालकर साफ सुधरे माहौल में पहुंचा ही था कि पंजाबी गायक बब्बू मान के गीतों ने उसका रुख क्रांतिकारी गीतों की तरफ मोड़ दिया। इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि अच्छी सोच क्रिएट करने की बजाय गीत विवादों को क्रिएट करने लगे हैं। लोगों के मनों में मोहब्बत का बीज बोने की बजाय नरफत के खार बोए जा रहे हैं, जिससे स्थिति किसी भी समय विस्फोटक साबित हो सकती है।

गौरतलब है कि पिछले कई दिनों से बब्बू मान द्वारा लाला लाजपत राय को लेकर गाया गीत आलोचनाओं का निरंतर शिकार हो रहा है। अभी बब्बू मान का मामला सिमटा नहीं था कि कुछ हिन्दु सामाजिक संगठनों ने म्यूजिक चैनलों पर प्रसारित होने वाले गीत असीं तां यारों फैन हां बाबे भिंडरांवाले दे' को लेकर एतराज जता दिया। कुछ संगठन तो इस गीत को पूरी तरह बैन करवाने की मांग भी उठा रहे हैं।

लोगों को सचेत करने की बात तो कोई बुरी बात नहीं, लेकिन पुराने जख्मों को कुरेदना व किसी हिंसक भावनाओं को फिर से उत्पन्न करना के बेहद बुरी बात है, क्योंकि विवादित बातें समाज को टुकड़ों में बांटकर रख देती हैं। अब पंजाब के कई गायक ऐसे गीत गा रहे हैं, जो किसी न किसी वर्ग को निशाना बनाकर गाए जा रहे हैं। जैसे कि पिछले दिनों रिलीज हुई राज कांकड़ा की एलबम का गीत 'तुसीं उन्हां दे गलां विच्च हार पाउंदे रहे' आदि गीत। इस गीत में भगत सिंह की सराहना की गई तो दूसरी तरफ देश के राष्ट्रपिता की खुलकर धज्जियां उड़ाई गई हैं।

आज ऐसे तमाम गीत टेलीविजनों पर बज रहे हैं, जो सामाजिक भाईचारे को ठेस पहुंचा रहे हैं। इस बाबत जब विश्व हिन्दु परिषद के शीर्ष नेता सुखपाल सिंह सरां का कहना है कि आज के युवा गायक घटिया मानसिकता की उपज गीत गाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को नफरत फैलाने वाले गीतों पर रोक लगानी चाहिए। एक अन्य बुद्धजीवि का मानना है कि पंजाबी संगीत के लिए हिन्दी फिल्मों की तरह एक सेंसर बोर्ड होना चाहिए, जो गीत कंटेंट को देखकर ही रिलीज करे।

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