Punjab Ka Sach Newsporten/ NewsPaper: तहसील दफ्तर बने भ्रष्टाचार के अड्डे, लगती है करोडो की चपत

Tuesday, July 6, 2010

तहसील दफ्तर बने भ्रष्टाचार के अड्डे, लगती है करोडो की चपत

-सरकार चाहकर भी नहीं कर पाती है कानूनी कार्रवाई 
-लुधियाना कांड में जिला प्रशासन की कारगुजारी भी आ चुकी है  शक के दायरे में  
हरिदत्त जोशी 
बठिंडा। पंजाब की तहसील परिसरों में व्याप्त भ्रष्ट्राचार को रोकने के लिए किसी भी सरकार ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया है। वतर्मान में हालात यह है कि तहसील दफ्तरों में नीचले स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक भ्रष्ट्राचार का बौलबाला है। इसमें जहां अधिकारी और कमर्चारी अपनी जेबे भरने में लगे हैं वही सरकार को हर साल करोडों की चपत लगती है। दो नंबर में होने वाली कमाई का ही नतीजा है कि इस विभाग में एक अर्जी नवीस से लेकर सामान्य कलर्क भी लाखों की कमाई कर आलीशान बंगलों के मालिक बने हुए है। 
कई तहसील दफ्तरों में तो प्राइवेट स्तर पर रजिस्ट्री लिखने वाले ही लाखों में खेलते हैं। इस मामले में भ्रष्ट्रचार को उच्च अधिकारी से लेकर नीचले स्तर पर राजनेता जमकर प्रोत्साहन देते हैं। यही कारण है कि अगर जिला इकाई में सत्तापक्ष से जुडा़ कोई भी समारोह हो या फिर सरकारी समागम किया जाए सबसे अधिक बगार (अवैध वसूली के पैसे से समागम का खर्च) पूरा करने का जिम्मा इसी विभाग पर होता है। अब भ्रष्ट्रचार की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन  यह होता कैसे हैं इसके बारे में कही जिक्र नहीं हुआ है, चलो हम बताते है कि तहसील दफ्तर में दो नंबर की कमाई कैसे की जाती है।एक जिला स्तर के तहसील दफ्तर में  प्रतिदिन डेढ़ सौ के करीब रजिस्ट्री, इंतकाल और बयाने किए जाते हैं। 
सामान्य तौर पर जिला प्रशासन की तरफ से हर क्षेत्र में जमीनों की खरीद और बिक्री करने के लिए सरकारी मूल्य निर्धारित कर रखे हैं। दूसरी तरफ जिले में क्षेत्र में मिलने वाली सुविधा के अनुसार व्यापारी व प्रार्पटी डीलर जमीन को मोटे दाम में बेच देता है। इसमें एक जमीन जो दस से १५ हजार रुपये प्रतिगज बेची गई उसमें स्टाप ड्यूटी व आयकर बचाने के लिए मिलीभगत कर जमीन को मात्र एक हजार रुपये प्रति गज बिका दिखा दिया जाता है। इस तरह लाखों रुपये की सरकारी फीस सीधे तौर पर चोरी कर ली जाती है। इस काम के बदले तहसील दफ्तर में रजिस्ट्री करने वाले कमर्चारी व अधिकारियों को एक मुस्त राशि दो नंबर में दी जाती है। इस तरह एक अनुमान के अनुसार एक तहसील दफ्तर में प्रतिदिन दो से तीन लाख रुपये की अवैध कमाई की जाती है। इसमें अधिकारी व  कर्मचारी तो एक माह में करोड़ो कमा लेते हैं लेकिन सरकार को इससे दो गुणा चपत लगा दी जाती है। अब सवाल उठता है कि करोडों की कमाई में हिस्सा किस-किस को जाता है। सीधा जा जबाव मिलेगा इसमें हिस्सेदारी कई लोगों की होती है। तभी तो जिला प्रशासन कभी भी इस अवैध कमाई को रोकने का प्रयास नहीं करता और विभागीय स्तर पर भी इस विभाग के खिलाफ आज तक कानूनी कार्र्वाई नहीं हो सकी है। एक साल पहले लधियाना जिले में तहसीलदार और राजनेताओं के बीच तकरारबाजी और मारपीट की घटना अखबारों की सुरखी में रही। 
इसमें एक जमीन को लेकर तहसीलदार की पिटाई की गई कि वह जमीन के कम मूल्य पर रजिस्ट्री करने को तैयार नहीं हो रहा था। सभी दूध के धुले नहीं होते, मामला जांच की दायरे में आया तो पता चला कि राज्य की अन्य तहसीलों की तरह वहां भी पैसे बटोरने का गौरखधंधा जोर शोर से चलता है इसमें हिस्सेदारी डीसी दफ्तर तक पहुंचती है। वहां से सरकार में बैठे लोगों को भी हिस्सा पहुंचता है। अखिर सरकारी खजाने को लूटने वाली इन गतिविधियों को प्रोत्साहन देने वाले लोग किसी एक दल से नहीं जुडे़ है बलिक हर राजनीतिक दल ने अपने सरकार गठन के बाद इस भ्रष्ट्रचार को हवा दी है और अपनी जेबे भरी है। दिखावे के लिए कानून बने लेकिन वह भी भारी जबाव में कागजों तक ही सिमटकर रह गए। जब तहसील में बैठे अधिकारी व कर्मचारी मोटी कमाई करने में लगे है तो वहां अरजीनवीस, स्टाम पेपर बेचने वाले कर्मी से लेकर नक्शा बनाने वाले भी लोगों को जमकर लूटने का धंधा करते हैं। 
रजिस्ट्री लिखने वाले लोग सीधा पैसा लोगों से लेकर अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। इसमें बकायदा रजिस्ट्री करवाने को कहा जाता है कि पूरे खर्च के साथ तहसीलदार का हिस्सा उन्हें देना पडे़गा। इस तरह की अवैध कमाई के धंधे में हो रही बेसुमार कमाई का नतीजा है कि यहां सरकार से मात्र दस हजार रुपये प्रतिमाह वेतन लेने वाला कर्मचारी भी आज लाखों की जमीन व मकान का मालिक है। इस मामले में आयकर विभाग ने भी कभी इन मगरमच्छों पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की है। अगर इन लोगों की जायदाद और आय की जांच की जाए तो होने वाले गोलमाल का पता चल सकता है। दूसरी तरफ सरकार को भी भ्रष्ट्रचार का अड्डा बन रहे इस विभाग पर शिकंजा कसने के लिए सारथर्क कदम उठाना पडे़गा। अगर सरकार राज्य की सभी तहसील दफ्तरों की अवैध कमाई पर लगाम कस ले तो राज्य के विकास के लिए फंड जुटाने को दूसरों के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पडे़गी। इसके साथ ही सरकार व जिला प्रशासन को यहां की गतिविधियों को प्रादर्शी बनाना होगा। तहसील परिसर में बैठे दूसरे लोगों पर शिकंजा कसना होगा जो प्रत्यक्ष तौर पर इस धंधे को प्रोत्साहन दे रहे हैं। जमीनों की रजिस्ट्री के लिए प्लाट की फोटो खिचवाने का प्रावधान है लेकिन तहसील के साथ एक प्लांट पर ही सभी को खडा़ कर फोटो खीचकर दो सौ रुपये बटोर लिए जाते हैं, जिससे गलत रजिस्ट्री करवाने के धंधे को प्रोत्साहन मिलता है। 
अधिकारी पैसे के लालच में इतने अंधे हो जाते हैं कि वह गवाह के साथ रजिस्ट्री कागज में दर्ज आदमी का भी पता नहीं लगाते बलिक सीधी रजिस्ट्री कर मामले की इतिश्री कर देते हैं। इसका विपरित प्रभाव यह पडा़ कि हजारों मामले फ्रजी रजिस्ट्री के सामने आ चुके हैं। इसमें भी पैसे ले देकर तहसीलदार से लेकर हर एक आसानी से  बच जाता है जो इसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेवार होता है। 

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