Friday, June 18, 2010

किसानों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा

-ऋण का मामला
-केंद्र को भेजे प्रस्ताव को मंजूरी नहीं
-पंजाब सरकार ने केंद्र से जताया रोष
बठिंडा। आम तौर पर बेहतर काम करने वालों को पुरस्कृञ्त तो किया जाता है, लेकिन सहकारी क्षेत्र में अच्छा काम के  लिए एक तरह से सजा भुगतनी पड़ रही है। पंजाब के  सहकारी बैंकों व सोसायटियों के  ऋञ्ण की वापसी देश के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी ज्यादा है। इसी के  चलते राज्य को केंञ्द्र सरकार से मिलने वाले पैसों में बड़ा कट लगाया जा रहा है और पंजाब सरकार के ऋञ्ण माफी के  लिए केंद्र को भेजे प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पा रही है। पंजाब सरकार ने इस नीति के खिलाफ केंद्र से कई बार रोष भी जताया है। नीति के अनुसार जिस राज्य में सहकारी ऋण के जितने ज्यादा डिफाल्टर होंगे उस राज्य को केंद्र से उतनी ही ज्यादा सहायता मिलती है। इसका मूल कारण ऋण में डूबे किसानों को राहत देना है। पंजाब के किसानों को ऋण माफी के मामले में राहत इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि यहां सहकारी व कामर्शियल बैंकों का डिफाल्टर रेट अन्य राज्यों से काफी कम है। राजस्व विभाग की वित्तायुक्त रोमिला दूबे ने को बताया कि राज्य सरकार ऋण में राहत के  लिए कई बार प्रस्ताव केंद्र को भेज चुकी है, लेकिन राहत नहीं मिल पा रही है, क्योंकि तर्क यह दिया जाता है कि किसानों की ऋण वापस करने की क्षमता के कारण फिलहाल विदर्भ जैसी स्थिति नहीं आई है। 

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि  पंजाब सरकार ने किसानों के  सिर पर 24,500 करोड़ रुपये के  बोझ का प्रस्ताव भेजा था। इसमें 12 हजार करोड़ रुपये के  करीब आढ़तियों व अन्य बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं का है। राज्य सरकार ने वनटाइम सेटलमेंट और आढ़तियों के  ऋण से निकालने के  लिए आर्थिक  सहायता की मांग की थी लेकिन कुञ्छ नहीं मिला। आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र को डिफाल्टर किसानों के कारण तीन-तीन हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं, जबकि  पंजाब को केवल 80 करोड़ मिला है। कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हालांकि पंजाब के किसानों की ऋण वापस करने की योग्यता आमदनी के कारण नहीं है बल्कि उत्पादन लागत बढऩे के कारण पंजाब सरकार की ओर से प्रत्येक वर्ष पांच सौ से एक  हजार रुपये तक बढ़ाई जाने वाली ऋण की लिमिट के कारण ऐसा हो रहा है। किसानों से पैसा भरवाकर अगले ही दिन बढ़ी लिमिट के हिसाब से उसे ऋण दे दिया जाता है। एक  तरह से यह नए-पुराने ही किए जाते हैं। यही तरीका किसानों के गले की फांस बन गया है।

स्थानीय निकायों और पंचायतों की वित्तीय स्थिति खराब

-प्रशासनिक  कामकाज पर लगा सवालिया निशान
-स्थानीय निकायों को प्रति वर्ष हो रहा है 30 करोड़ का घाटा
बठिंडा। पंजाब में स्थानीय निकायों व पंचायती राज्य संस्थाओं की वित्तीय स्थिति पर सरकारी फैसलों ने उलटा असर किया है। इन संस्थाओं की आमदनी व खर्च का अंतर लगातार बढ़ रहा है, जिसके  चलते प्रशासनिक  कामकाज व विकास कार्यों पर सवालिया निशान लग गया है। वर्तमान में कई निगमों व कौंसिलों की स्थिति यह है कि केंद्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही स्कीमों के अलावा वहां पर अन्य विकास योजनाए पिछले लंबे समय से नहीं शुरू हो सकी है। यह विश्लेषण हाल में वित्त आयोग की रिपोर्ट में भी किया गया है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि  विकास कार्यों की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों व पंचायती राज संस्थाओं पर है, लेकिन इनके आमदनी के स्रोतों को पंजाब सरकार अपने फैसलों से खत्म कर रही है। स्थानीय निकायों को चुंगी से राज्य भर में करीब 550 करोड़ रुपये मिलते थे।

राज्य सरकार ने चुंगी खत्म करने का फैसला करके स्थानीय निकायों को राज्य सरकार पर निर्भर बना दिया है। इसी तरह सीवरेज व पेयजल के यूजर चार्जेज माड्ड  करके  व अन्य फैसलों के  चलते इन संस्थाओं को प्रशासनिक  ढांचा चलाने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। आयोग ने सिफारिश की है कि  वित्तीय संसाधनों का बंटवारा इस तरीके  से होना चाहिए कि  स्थानीय निकाय व पंचायती राज संस्थाएं खुद अपने टैक्सों से कामकाज चला पाएं। इसके  लिए राज्य के टैक्सों  के हिस्से में स्थानीय निकायों व पंचायती राज संस्थाओं का हिस्सा बढ़ाने की जरूरत है। इसके  अलावा जो ड्डैञ्सले राज्य सरकार ने चुंगी माफी सहित अन्य माफी के लिए हैं उनके बदले में लगातार ग्रांटें स्थानीय निकायों को मिलनी चाहिए। रिपोर्ट में दिए तथ्यों के  अनुसार स्थानीय निकायों को प्रति वर्ष औसतन 20 करोड़ रुपये का घाटा है। इसी तरह पंचायती राज संस्थान में आय व व्यय में प्रति वर्ष औसतन अंतर पंचायतों का 280 करोड़, पंचायत समितियां 37 करोड़ व जिला परिषदों का 10 करोड़ है। इस तरह कुञ्ल अंतर 327 करोड़ रुपये का है। दूसरी तरफ राज्य में डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव की संभावित है। ऐसे में अकाली-भाजपा सरकार केञ् लिए चुनाव से पहले विकास कार्य करवाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। फिलहाल सरकार इस मामले में आय केञ् साधन जुटाने केञ् प्रयास में जुटी है लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लग रही है।

आयोग ने राज्य सरकार के  साथ-साथ स्थानीय निकायों व पंचायती राज संस्थाओं को भी कहा था कि  उन्हें अपनी आय बढ़ाने का प्रबंध करना चाहिए। इसके  लिए स्थानीय निकायें स्थानीय क्षेत्र कर, संपत्ति कर, उपभोक्ता कर व म्यूनिसपल एरिया में टर्न ओवर टैक्स लगाए तो उसकी आय में बढ़ोतरी संभव हो सकती है। टर्न ओवर टैक्स को भले ही स्थानीय निकायें वसूल करे या कराधान एवं आबकारी विभाग, लेकिन यह पैसा सीधे ही स्थानीय निकायों के खाते में जाना चाहिए। इसके अलावा ग्रांटों को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने का प्रबंध करके भी अंतर को कम किया जा सकता है। फिलहाल सरकार का दावा है कि इन तमाम समस्याओं को हल करने के लिए उन्होंने सुखवीर-कालिया कमेटी का गठन किया था इसमें की गई सिफारिशों को आपसी सहमती से लागू किया जा रहा है। इसमें कई मदों से करों की वसूली भी हो रही है।

अपराध समाचार 18 जून

नितिन सिंगला

सड़क हादसे में एक की मौत, केस दर्ज 
बठिण्डा : निकटवर्ती गाँव भूंदड़ में कल बाद दोपहर बस के नीचे आने से एक बच्चे मौत हो गई। इस मामले में बालिया वाली पुलिस ने बस चालक के विरुद्ध मामला दर्ज करते हुए आगे की कार्यवाई शुरू कर दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह हादसा कल बाद दोपहर उस समय हुआ, जब बाघ सिंह अपनी पत्नि एवं बच्चे के समेत बस से उतरकर अपने घर की तरफ जा रहा था, और बस चालक ने अचानक बस को बड़ी तेजी के साथ पीछे किया। इस दौरान रेशम कौर को काफी चोटें आई जबकि उनके बच्चे जसमेल की मौके पर ही मौत हो गई। पुलिस ने शिकायतकर्ता बाघ सिंह के बयानों के आधार पर बस चालक के विरुद्ध धारा 304 ए, 279, 337 के तहत केस दर्ज कर लिया।

जमीनी विवाद, चार के विरुद्ध केस
बठिंडा : थाना मौड़ के अधीन पड़ते गाँव मौड़ खुर्द में जमीन के कब्जे को लेकर हुए विवाद में पुलिस ने चार लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज किया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रूप सिंह निवासी मौड़ खुर्द ने पुलिस स्टेशन मौड़ में शिकायत दर्ज करवाई कि उसकी सवा दो एकड़ जमीन धान की फसल के लिए खाली पड़ी हुई थी, जिस पर आरोपियों बलवीर सिंह, धर्म सिंह, हरजोत सिंह, प्रकट सिंह पुत्र दारा सिंह निवासी मौड़ खुर्द ने धक्के से ट्रैक्टर चला दिया एवं उसे और उसके रिश्तेदार नाहर सिंह को जान से मारने की धमकी दी। गौरतलब है कि रूप सिंह ने अपने छोटे भाई मुख्तयार सिंह की सवा दो एकड़ जमीन अपने नाम करवा ली है, जो अभी तक कुंवारा है। पुलिस ने विभिन्न धाराओं के तहत मुकद्दमा दर्ज करते हुए आगे की कारवाई शुरू कर दी है।

अपनों के खून से सने हाथ

अपनों के खून से सने हाथ, आदम से इंसान तक का सफर अभी अधूरा है को दर्शाते हैं। झूठे सम्मान की खातिर अपनों को ही मौत के घाट उतार देता है आज का आदमी। पैसे एवं झूठे सम्मान की दौड़ में उलझे व्यक्तियों ने दिल में पनपने वाले भावनाओं एवं जज्बातों के अमृत को जहर बनाकर रख दिया है, और वो जहर कई जिन्दगियों को एक साथ खत्म कर देता है।

पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तान में भी ऑनर किलिंग के मामले निरंतर सामने आ रहे हैं, ऐसा नहीं कि भारत में ऑनर किलिंग का रुझान आज के दौर का है, ऑनर किलिंग हो तो सालों से रही है, लेकिन सुर्खियों में अब आने लगी है, शायद अब पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तानी हुक्मरानों को भी चाहिए कि वो भी मर्दों के लिए ऐसे कानून बनाए, जो उनको ऐसे शर्मनाक कृत्य करने की आजादी मुहैया करवाए। पाकिस्तानी मर्दों की तरह हिन्दुस्तानी मर्द भी औरतों को बड़ी आसानी से मौत की नींद सुला सके, वो अपना पुरुष एकाधिकार कायम कर सकें।

वोट का चारा खाने में मशगूल सरकारें मूक हैं और खाप पंचायतें अपनी दादागिरी कर रही हैं। इन्हीं पंचायतों के दबाव में आकर माँ बाप अपने बच्चों को मौत की नींद सुला देते हैं, जिनको जन्म देने एवं पालने के लिए हजारों सितम झेले होते हैं।

इसको एक सभ्य समाज कैसे कहा जा सकता है, जहाँ खुद पेड़ लगाकर खुद उखड़ा फेंकने का प्रचलन हो। जब मानव ऐसे शर्मनाक कृत्य करता है तो क्या फर्क रह जाता है आदम और पशु में। जब जब ऐसे ऑनर किलिंग के मामले सामने आते हैं तो सच में एक बात तो समझ में आने लगती है कि हमारी शिक्षा प्रणाली एवं हमारी धार्मिकता कितनी कमजोर है।

हमारे धार्मिक गुरू, ग्रंथ हमको अहिंसक होने का पाठ पढ़ाते हैं, प्रेम करने का पाठ पढ़ाते हैं, हमारी शिक्षा प्रणाली हमको गंवार से पढ़ा लिखा बनाती है ताकि हम अच्छे बुरे की पहचान कर सके, लेकिन हम इन चीजों को त्याग मूड़ लोगों की भीड़ खुद को खड़ा कर लेते हैं, जो वो भीड़ कर रही है, उसको ही सही मान रहे हैं।

भीड़ में सब अनजान होते हैं एक दूसरे से, किसी को कुछ अंदाजा नहीं होता वो क्या कर रहे हैं, वो सब सोच रहे होते हैं, बस जो कर रहे हैं अच्छा ही होगा, लेकिन जब कोई खुद को भीड़ से अलग कर एकांत में सोचता है तो उसकी हिम्मत नहीं पड़ती कि वो खुद से सामना भी कर सके, वो भीतर ही भीतर टूटकर बिखर जाता है। जब तलक मानव सोच शैतानी बचपने से उभरेगी नहीं, तब तक फगवाड़ा के गांव महेड़ू में हुए प्रवासी दम्पति की हत्या (ऑनर किलिंग) जैसे शर्मनाक कृत्य घटित होते रहेंगे।

कुलवंत हैप्पी-76967-13601

Thursday, June 17, 2010

क्या देखते हैं वो फिल्में.....

मंगलवार को एक काम से चंडीगढ़ जाना हुआ, बठिंडा से चंडीगढ़ तक का सफर बेहद सुखद रहा, क्योंकि बठिंडा से चंडीगढ़ तक एसी कोच बसों की शुरूआत जो हो चुकी है, बसें भी ऐसी जो रेलवे विभाग के चेयर कार अपार्टमेंट को मात देती हैं। इन बसों में सुखद सीटों के अलावा फिल्म देखने की भी अद्भुत व्यवस्था है।

इसी व्यवस्था के चलते सफर के दौरान कुछ समय पहले रिलीज हुई पंजाबी फिल्म मिट्टी देखने का मौका मिल गया, जिसके कारण तीन चार घंटे का लम्बा सफर बिल्कुल पकाऊ नहीं लगा।

पिछले कुछ सालों से पुन:जीवित हुए पंजाबी फिल्म जगत प्रतिभाओं की कमी नहीं, इस फिल्म को देखकर लगा। फिल्म सरकार द्वारा किसानों की जमीनों को अपने हितों के लिए सस्ते दामों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने जैसी करतूतों से रूबरू करवाते हुए किसानों की टूटती चुप्पी के बाद होने वाले साईड अफेक्टों से अवगत करवाती है।

फिल्म की कहानी चार बिगड़े हुए दोस्तों से शुरू होती है, जो नेताओं के लिए गुंदागर्दी करते हैं, और एक दिन उनको अहसास होता है कि वो सही अर्थों में गुंडे नहीं, बल्कि सरदार के कुत्ते हैं, जो उसके इशारे पर दुम हिलाते हैं।

वो इस जिन्दगी से निजात पाने के लिए अपने अपने घरों को लौट जाते हैं, लेकिन वक्त उनके हाथों में फिर हथियार थमा देता है, अब वो जंग किसानों के लिए लड़ते हैं, अपनों के लिए लड़ते हैं, सरकार के विरुद्ध संघर्ष अभियान चलाते हैं, और सरकार के खिलाफ चलाई इस मुहिम में तीन दोस्त एक एक कर अपनी जान गंवा बैठते हैं, लेकिन अंत तक आते आते फिल्म अपनी शिखर पर पहुंच जाती है। फिल्म का अंतिम सीन आम आदमी के भीतर जोश भरता है। इस दृश्य में किसान सति श्री अकाल और इंकलाब के नारे लगाते हुए पुलिस का सुरक्षा चक्र तोड़ते हुए नेता एवं फैक्ट्री मालक को मौत के घाट उतार देते हैं, और अपनी जमीन को दूसरे हाथों में जाने से रोक लेते हैं।

यह पिछले दिनों देखी गई पंजाबी फिल्मों में से दूसरी पंजाबी फिल्म थी, जो किसान हित की बात करते हुए सरकार के विरुद्ध आवाज बुलंद करने के लिए अपील करती है, आह्वान करती है। इससे कुछ दिन पहले पंजाबी गायक से अभिनेता बने बब्बू मान की फिल्म एकम - सन ऑफ सॉइल देखी। इस फिल्म में भी नायक एकम किसान वर्ग की अगुवाई करते हुए सरकार के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ता है। इस फिल्म में बब्बू मान को देखकर पुरानी फिल्मों के अमिताभ बच्चन के उन दमदार किरदारों की याद आ गई, जो गरीब वर्ग की अगुवाई करते हुए गरीबों को उनके हक दिलाता था।

जैसे ही मिट्टी फिल्म खत्म हुई, तो एक के बाद एक सवाल दिमाग में आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगे, क्या इन फिल्मों को उन्होंने देखा, जिन लोगों की स्थिति को पर्दे पर उभरा गया है, जिनके सवालों को बड़े पर्दे पर उठाया गया है। क्या सरकार के प्रतिनिधियों के पास सिनेमा देखने की फुर्सत है, वो भी ऐसी फिल्में, जो वास्तिवकता से रूबरू करवाती हों?

दिमाग को सवाल मुक्त करते हुए बस के भीतर बैठी सवारियों को एक नजर देखा, और पाया कि सब लोग नौकरी पेशा हैं, जिनके पास शायद चैन से बैठकर साँस लेने की फुर्सत भी न होगी, वो सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए लामबंद कैसे हो सकते हैं, शायद उनके लिए तो बस में चल रही फिल्म भी कोई मतलब न रख रही होगी।

जिनको सरकार के विरुद्ध लामबंद करने के लिए फिल्म बनाई गई, वो तो बेचारे रोड़्वेज की उन बसों में भी बामुशिक्ल चढ़ते होंगे, जिन बसों में पुर्जों के खटकने की आवाजें कानों को पका देती हैं, सीटें माँस में चूंटी काट लेती हैं, और सफर खत्म होने तक जान मुट्ठी में रहती है, कहीं ब्रेक फेल न हो जाएं, वगैरह वगैरह।

Monday, June 14, 2010

अब शोले फिल्म के वीरू बने बेरोजगार फार्मासिस्ट और लाईनमैन


पानी की टैंकी में चढ़कर नीचे छलाग लगाने की दे रहे हैं धमकी
सरकार से रोजगार देने की मांग कर रहे हैं हजारों बेरोजगार 

बठिंडा। मांगों को पूरा करवाने और प्रशासन पर दबाब बनाने का जरिया बनी पानी की टैंकियां प्रशासन के लिए गले की फांस साबित हो रही है। हाल ही में बेरोजगार अध्यापकों ने पानी की टैंकी में चढ़कर हो हल्ला मचाया तो आज सोमवार को उन्हीं के पद्चिन्हों पदचिन्हों पर चलते हुए बेरोजगार बैटनरी फार्मसिस्ट एसोसिएशन केञ् साथ बेरोजगार लाईनमैन कार्यकर्ता सुभाष मार्किट में बनी दो पानी की टैंकी पर चढ़ गए। उक्त लोग सरकार से रोजगार देने की मांग कर रहे हैं। बेरोजगार बैटनरी फार्मासिस्टों व बेरोजगार लाईनमैन यूनियन का आरोप है कि बादल सरकार उन्हें दो बार नौकरी देने का वायदा करके मुकर चुकी है। इसमें अब आरपार की जंग लडऩे केञ् सिवा उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। बेरोजगार बैटनरी फार्मासिस्टों ने आरोप लगाया कि छह माह पहले बठिंडा मिनी सचिवालय के बाहर जब वह अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे तो राज्य सरकार ने यह कहकर उनकी हड़ताल को समाप्त करवाया था कि उन्हें जल्द ही रोजगार प्रदान किया जाएगा। इसके बाद सरकार और मंत्री अपने किए वायदे से मुकर गए और बेरोजगारों को आज तक रोजगार नहीं मिल सका है। फिलहाल बेरोजगारों के टैंकी पर चढ़कर शुरू किए प्रदर्शन के बाद पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी मौके पर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने सुभाष मार्किट की बड़ी टैंकी पर चढ़े बेरोजगार बैटनरी फार्मासिस्टों से बात करने का प्रयास शुरू किया था कि कुछ बेरोजगार लाईन मैन पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में साथ लगती छोटी पानी की टैंकी में चढ़ गए। बड़ी टैंकी में जहां सात बेरोजगार चढ़े वही छोटी टैंकी में भी छह बेरोजगार लाईनमैन ने कब्जा जमा लिया। इस दौरान उन्होंने पंजाब सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए उनकी मांगे पूरी करने को कहा वहीं चेतावनी दी कि अगर सरकार व प्रशासन ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वह पानी की टैंकी से कूञ्दकर आत्महत्या कर लेंगे। इस दौरान उक्त बेरोजगारों के हाथ में कैरोसीन तेल की बोतलें भी रखी हुई है। जो हाथ में लहरा कर वह स्वयं को आग लगाने की चेतावनी भी दे रहे थे।

टैंकी में चढऩे के लिए लाए थे साथ में सीढ़ी
बठिंडा। दो साल पहले जब पानी की टैंकी में चढ़कर विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरूञ् हुआ था तो जिला प्रशासन ने सभी पानी की टैंकियों की सीढि़यों को उंची दीवार बनाकर बंद कर दिया था वही एक प्रवेश दरवाजा बनाकर ताले जड़ दिए गए थे। इसके बावजूद आज सोमवार को बेरोजगार बैटनरी फार्मासिस्ट और बेरोजगार लाईनमैन पानी की टैंकी में चढ़ गए। बेरोजगारों को पता था कि पानी की टैंकी में चढ़ना आसान नहीं होगा, सो उन्होंने पहले से ही योजना बनाकर प्रदर्शन को अंजाम दिया। वह अपने साथ सीढि़यां लेकर आए थे। पहले सीढ़ी लगाकर उन्होंने अंदर प्रवेश किया व बाद में सीढ़ी को अंदर खींचकर अपने साथ ले गए। ऐसे में पुलिस कर्मचारी देखते रह गए और उन्हें अंदर जाने का रास्ता तक नहीं मिला। देर सांय तक दोनों यूनियनों के कार्यकर्ता टैंकी पर चढे़ प्रदर्शन कर रहे थे। 

क्या हैं मांगे
बठिंडा। बेरोजगार लाईन मैन यूनियन केञ् प्रदेश प्रधान त्रिलोचन सिंह का कहना है कि वह पंजाब सरकार से पंजाब राज्य पावर कारपोरेशन में आईटीआई होल्डर समूह बेरोजगार लाईनमैन की बिना टेस्ट भर्ती की मांग कर रहे हैं। वही भर्ती की आयु 45 साल करने की मांग कर रहे हैं। बेरोजगार वैटनरी फार्मासिस्ट यूनियन के प्रदेश प्रधान रविंदर फेरुमान का कहना है कि सरकार ने लोकसभा चुनाव के दौरान नौकरी देने का वायदा किया था लेकिन उसे आज तक पूरा नहीं किया गया है। उक्त मांगों को लेकर बेरोजगारों ने पहले शहर में रैली निकाली। 

सख्ती से निपटा जाएगा ऐसे प्रदर्शनों सेः प्रशासन
बठिंडा। एसएसपी डा. सुखचैन सिंह का कहना है कि प्रशासन की रोक के बावजूद कुछ लोग नियम कायदों को तोड़कर इस तरह के प्रदर्शन कर रहे हैं। आत्महत्या की धमकी देने वाले लोगों पर सख्ती बरती जाएगी व इनके खिलाफ मामला भी दर्ज किया जाएगा।     


खबर एक नजर में देखे

Labels

पुरानी बीमारी से परेशान है तो आज ही शुरू करे सार्थक इलाज

पुरानी बीमारी से परेशान है तो आज ही शुरू करे सार्थक इलाज
हर बीमारी में रामबाण साबित होती है इलैक्ट्रोहोम्योपैथी दवा

Followers

संपर्क करे-

Haridutt Joshi. Punjab Ka Sach NEWSPAPER, News website. Shop NO 1 santpura Road Bathinda/9855285033, 01645012033 Punjab Ka Sach www.punjabkasach.com

देश-विदेश-खेल-सेहत-शिक्षा जगत की खबरे पढ़ने के लिए क्लिक करे।

देश-विदेश-खेल-सेहत-शिक्षा जगत की खबरे पढ़ने के लिए क्लिक करे।
हरिदत्त जोशी, मुख्य संपादक, contect-9855285033

हर गंभीर बीमारी में असरदार-इलैक्ट्रोहोम्योपैथी दवा

हर गंभीर बीमारी में असरदार-इलैक्ट्रोहोम्योपैथी दवा
संपर्क करे-

Amazon पर करे भारी डिस्काउंट के साथ खरीदारी

google.com, pub-3340556720442224, DIRECT, f08c47fec0942fa0
google.com, pub-3340556720442224, DIRECT, f08c47fec0942fa0

Search This Blog

Bathinda Leading NewsPaper

E-Paper Punjab Ka Sach 22 Nov 2024

HOME PAGE