-बेड टी में डाले जाने वाले दूध में है कई खतरनाक केञ्मिकल
-बठिंडा केञ् रोजगार्डन क्षेत्र में बनी है दर्जनों नकली दूध की ड्डैञ्タट्री
-सुबह तीन से पांच बजे केञ् बीच खरीदते हैं बडे़ दूध उत्पादकों केञ् टैंकर
बठिंडा। शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए प्रतिदिन सैर करने के बाद चाय का कप पीना दिनचार्य का हिस्सा बन गया है। वही बच्चा जब रोने लगता है तो उसे भी मां बोतल में दूध देकर चुप करवा देती है। इस दौरान हम जाने-अनजाने स्वयं के साथ अपने लाल को तंदरुस्ती के लिए दिए जाने वाले दूध की जगह केमिकल वाला जहर दे रहे हैं। इस बाबत समय-समय पर नकली दूध की शिकायते मिलती रहती है लेकिन वर्तमान में हैरानी वाली बात यह है कि पैकेट में बंद दूध में कुछ कर्मचारी व वेरका जैसी कंपनियों को दूध बिक्री करने वाले लोग पैसे के लालच में नकली दुध केमिकल युक्त सप्लाई कर रहे हैं। उक्त लोग अगर सौ लीटर दूध कंपनी की प्लांट में देते हैं तो उसमें ४० फीसदी दूध केमिकल से बना होता है। यह दूध असली दूध के साथ मिलाकर इसकी मात्रा बढ़ा दी जाती है। वर्तमान में रोजगार्डन के नजदीक बनी कालोनियों में इस तरह का नकली दूध धडल्ले से सारी रात जागकर तैयार किया जाता है जिसमें सोड़ा, सोयाबीन, रिफाइड के साथ जहरीली केमिकल मिक्स कर कई टन दूध प्रतिदिन तैयार कर दिया जाता है। इस दूध को सुबह तीन से पांच बजे के बीच कई बड़ी दूध कंपनियों के टैंकर इकट्ठा कर मिल्क प्लांट में सप्लाई कर देते हैं। केमिकल से तैयार दूध जहां गाढ़ा लगता है वही इसमें डाले गए आरारोट जैसे तत्वों से मिलाई भी जम जाती है जिससे लोगों को इसका अभास ही नहीं होता है कि दूध नकली है या फिर असली। रोजगार्डन के साथ लगते रिहायशी इलाकों में चला रहे इस गौरखधंधे की जानकारी सेहत विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को भलीभांती से हैं इसके बावजूद इन लोगों पर किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं की जाती है। इस तरह का दूध तैयार करने वाले लोग बाहरी बस्तियों में अपना अड्डा बनाकर काम करते हैं इसमें लाल सिंह बस्ती, अमरपुरा बस्ती जैसे क्षेत्र में भी इस तरह का दूध तैयार करने वाले दलालों की भरमार है। लोगों के जीवन से सौदा करने वाले इन दलाल के पास जब पंजाब की सच टीम अपनी पहचान बदलकर पहुंची तो उक्त लोगों ने दो टूक शब्दों में कहा कि वह जो दूध तैयार करते हैं वह सीधा बड़ी दूध कंपनियों में प्रतिदिन पहुंचता है। इसमें सेहत विभाग के कुछ कर्मचारी उनसे अपना हिस्सा लेकर जाते हैं जिससे उन पर कोई भी हाथ नहीं डालता है। पुलिस के कुछ कर्मचारी भी उनके पास आते हैं जिसमें उन्होंने सभी का हिस्सा बांध रखा है। ऐसे में उनका धंधा बेरोकटोक चलता है। बड़ी कंञ्पनियों के ढोल जब नकली दूध लेकर जाते हैं तो उन्हें कोई भी नहीं रोकता है और न ही इस दूध का सैंपल भरा जाता है जिससे फंसने की संभावना न के बराबर रहती है। केमिकल से तैयार दूध वह मात्र पांच से सात रुपये लीटर तैयार करके देते हैं। इसमें भी उन्हें काफी कमाई हो जाती है। दूसरी तरफ जब उक्त दूध असली दूध के साथ मिक्स हो जाता है तो इसका दाम २८ रुपये प्रति किलो हो जाता है। इस तरह मिल्क प्लांटो में दूध सप्लाई करने वाले लोगों को भी मोटा मुनाफा हो जाता है। फिलहाल इस गौरखधंधे की तह पर जाए तो कई मामले ऐसे हैं जो मिल्क प्लांट के प्रबंधकों की कारगुजारी पर भी संदेह खड़ा करते हैं। इस तरह का धंधा आज से नहीं बल्कि लंबे समय से चल रहा है, अब सेहत विभाग के अधिकारियों के ध्यान में उक्त जालसाजी कभी क्यों नहीं आई, अगर कभी सैंपल भरे भी होगे तो फेल होने पर इसमें क्या कार्रवाई की गई। दूसरी तरफ दूध प्लांटों में दूध की गुणवत्ता जांच के लिए मशीने लगी है और इसमें कई तकनीकि माहिर जांच भी करते हैं, क्या इन माहिरों के ध्यान में उक्त धंधा सामने नहीं आया। इन तमाम तथ्यों व प्रश्न इस बात का खुलासा करते हैं कि दाल में काला है इसकी जानकारी सभी को है लेकिन पैसे के लेनदेन के चक्कर में कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है। ऐसे में उपभोक्ताओं की जेब से असली दूध के पैसे झांडकर उन्हें धडल्ले से जहर पिलाया जा रहा है। इस गंभीर मसले पर सेहत मंत्री लक्ष्मीकांता चावला का कहना है कि वह मामले की जांच के लिए सिविल अस्पताल प्रबंधकों को लिखेगी। यहां बताना जरूरी है कि इस केमिकल युक्त दूध से बच्चों में मानसिक विकार के साथ भूख न लगना, बीमार रहना, आंखों व मुंह के विकार के साथ कैंसर होने तक की संभावना रहती है। अगर इस तरह का दूध रुटीन में पिलाया जा रहा है तो बच्चे की मौत भी संभव है।
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