-पंजाब सरकार, नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूज काउंसिल, स्वास्थ्य विभाग, एड्स कंट्रोल सोसायटी, रेडक्रास, डीजीपी और एसएसपी को जारी हुआ नोटिस
बठिंडा. सिविल अस्पताल में थैलेसीमिया बच्चों को एचआइवी संक्रमित खून चढ़ाने के मामले में सरकार व स्थानीय सिविल अस्पताल प्रशासन की ढिली कारगुजारी के चलते मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। पिछले चार माह से संक्रमित रक्त चढ़ाने का विवाद चल रहा है इसमें सेहत विभाग की तरफ से विभिन्न जांच कमेटियां गठित कर जांच की जा रही है लेकिन पूरे मामले के लिए असल जिम्मेवारों पर आज तक कारर्वाई नहीं हो सकी जिसमें बाल सुरक्षा कमिशन ने भी संज्ञान लेकर सेहत विभाग को कटघरे में खड़ा किया था। वही अब पंजाब कानूनी सेवाएं अथारिटी ने मामले में संज्ञान लेते हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। पंजाब कानूनी सेवाएं अथारिटी मोहाली के एडिशनल मेंबर सेक्रेटरी डा. मनदीप मित्तल ने बताया कि बठिंडा में लगातार लोगों को संक्रमित रक्त चढ़ाने के सभी मामले अथारिटी के चेयरमैन के समक्ष रखे गए थे। जिसके बाद फैसला लेते हुए अथारिटी ने इस मामले में एडवोकेट अक्षय भान और एडवोकेट हरप्रतीक सिंह संधू के माध्यम से पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। ताकि इन पीड़त बच्चों को उचित मुआवजा मिल सके वही जिम्मेवार लोगों पर सख्त कारर्वाई हो ताकि आगे से इस तरह की लापरवाही रुक सके।
जस्टिस दया चौधरी और जस्टिस मीनाक्षी मेहता के बैंच की ओर से बीती 22 जनवरी को इस मामले की सुनवाई की थी। जिसमें उन्होंने पंजाब सरकार, नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूज काउंसिल, स्वास्थ्य विभाग, एड्स कंट्रोल सोसायटी, रेडक्रास सोसायटी, डीजीपी पंजाब और एसएसपी बठिंडा को 25 जनवरी के लिए नोटिस जारी किया है। डा. मित्तल ने बताया कि अथारिटी ने बठिंडा के चार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की पहचान की है। जिनको संक्रमित खून चढ़ाया गया है। जिन्हें आज बठिंडा अथारिटी के कार्यालय में भी बुलाया हुआ है। उनसे बातचीत भी की जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की ओर से 18 साल तक थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को मुफ्त इलाज तो किया ही जाता है। जनहित याचिका के माध्यम से उनकी कोशिश है कि उन्हें उचित मुआवजे के अलावा पेंशन भी मिल सके, ताकि वे अच्छी जिंदगी मिल सके।। उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह के एक लापरवाही के मामले में चेन्नई में वहां की अदालत ने थैलेसीमिया पीड़ित महिला को 15 लाख रुपये का मुआवजा दिलाया है।
गौरतलब है कि बठिंडा सिविल अस्पताल में स्थित ब्लड बैंक में जुलाई 2020 से लेकर नवंबर 2020 तक चार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों व एक महिला को अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से एचआईवी पोजटिव रक्त चढ़ाया जा चुका है। सिविल अस्पताल में उपचार करवा रहे 40 थेलेसीमिया बच्चों में से करीब 21 की दोबारा जांच में चार बच्चों को संक्रमित रक्त चढ़ाने का पता चला है जबकि अभी 19 बच्चों की फिर से जांच नहीं हो सकी है। सेहत विभाग व एड्स कंट्रोल सोसायटी की तरफ से रक्त लेने व चढ़ाने को लेकर स्पष्ट तौर पर गाइडलाइन जारी कर रखी है व बकायदा स्पष्ट नियम व कानून बना रखे हैं। इसके बावजूद रक्तदानी की तरफ से दिए गए खून की सैंपलिंग से लेकर डेढ़ दर्जन अन्य टेस्ट क्यों नहीं किए गए।
अस्पताल में साधन होने के बावजूद ऐसा नहीं करना आपराधिक श्रेणी में आता है। मामला केवल एचआईवी पोजटिव रक्त चढ़ाने तक सीमित नहीं बल्कि 7 विभिन्न तरह की गंभीर बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित रक्त को तत्काल नष्ट करने का प्रावधान है लेकिन बठिंडा ब्लड बैंक में हुई कारगुजारी काफी चिंताजनक रही जिसमें चार लोगों पर रक्त लेने से लेकर जांच का जिम्मा था लेकिन सभी प्वाइंट फेल रहे और एक महिला के साथ चार थेलेसीमिया पीड़ित बच्चों को संक्रमित रक्त चढ़ा दिया गया। जांच में दो महत्वपूर्ण पहलू सामने आए। पहला आपसी रंजिश निकालने का तो दूसरा सरकारी कीट को बाहर भेजने का। दोनों ही केसों में अभी तक जांच हो रही है व असल जिम्मेवारों के खिलाफ कारर्वाई पेडिंग चल रही है। जुलाई से अक्तूबर तक के मामलों में तीन लोगों को निलंबित किया गया तो नवंबर वाले केस में चार लोगों पर कारर्वाई की बात कही लेकिन पहले तीन कर्मियों में दो के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जबकि दूसरे मामलों में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं।
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