हमारे शरीर में ऐसे ढेर सारे जरूरी अंग हैं, जिनका देखभाल बहुत ही जरूरी है। इन अंगों की अगर सही देखभाल न की जाए तो आपके शरीर के साथ-साथ आपके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इन्हीं जरूरी अंगों में से एक है हमारी किडनी, जिसे हिंदी भाषा में गुर्दे भी कहा जाता है। अगर आपकी गलत आदतों यहां मतलब खान-पान से जुड़ा है, कि वजह से आपकी किडनी खराब हो जाती है तो आपके लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। किडनी के खराब होने पर आपके शरीर में बदलाव होना शुरू हो जाते हैं, जिनमें से कुछ को शुरुआती संकेत भी करार दिया गया है। आइए जानते हैं कौन से हैं ये शुरुआती संकेत।केजीएमयू ने बताया कौन से हैं शुरुआती संकेत
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आपकीः
1- आंखों और पैरों के आसपास सूजन
2- एनीमिया
3-कभी-कभी सिरदर्द
4-उल्टी जैसे लक्षण क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) के शुरूआती चेतावनी भरे संकेत हो सकते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
नेफ्रोलॉजी विभाग के कार्यवाहक प्रमुख प्रो विश्वजीत सिंह का कहना है कि क्रोनिक किडनी रोग का शुरुआत में पता लगाना हमेशा से मुश्किल है क्योंकि इसके पीछे ढेर सारे लक्षण छिपे हुए होते हैं। बता दें कि लगभग 60 प्रतिशत रोगी बीमारी के अंतिम चरण में जान पाते हैं कि उनके गुर्दे लगभग खराब हो चुके हैं। इस वक्त पर उनके पास डायलिसिस या अंग प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प बचता है।
किन लोगों को ज्यादा खतरा
प्रो. सिंह चेतावनी भरे शब्दों में कहते हैं कि अगर किसी को अंगों (विशेषकर आंखों और पैरों) में सूजन, कम हीमोग्लोबिन, कभी-कभी सिरदर्द और उल्टी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं तो नेफ्रोलॉजिस्ट से परामर्श लेना चाहिए, खासकर अगर उन्हें हाई ब्लड प्रेशर या फिर डायबिटीज की परेशानी है।
शुरुआती निदान बचा सकता है जिंदगी
प्रोफेसर सिंह ने ये भी कहा कि अगर किसी रोगी को शुरुआत में ही पता चल जाए तो दवाओं के जरिए उस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है और रोगी की जान बचाई जा सकती है।
हाई ब्लड प्रेशर सबसे बड़ी परेशानी
नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ लक्ष्य कुमार का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्रोनिक किडनी रोग के मामलों की संख्या बढ़ी है क्योंकि भारत में हर तीसरे व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर की परेशानीहै। इनमें से 60 प्रतिशत से अधिक को ये पता ही नहीं होता है कि उन्हें यह बीमारी है। और अन्य जो जानते हैं, केवल 50 प्रतिशत ही अपनी दवाएं लेते हैं। इसलिए, लगातार हाई ब्लड प्रेशर की स्थिति आपके गुर्दे की छोटी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा देती हैं और आपके गुर्दे खराब होने लगते हैं। डॉ कुमार ने कहा कि हालांकि, स्वस्थ आहार, तनाव प्रबंधन और नियमित व्यायाम का पालन करके लोग क्रोनिक किडनी रोग से बच सकते हैं। (सोर्स-आईएएनएस)
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किडनी:- किडनी शरीर को स्वस्थ रखने का महत्वपूर्ण अंग हैं जो रक्त का शोधन करता हैं
हमारी दोनों किडनियां एक मिनट में 125 मिली लीटर रक्त का शोधन करती हैं। और शरीर से दूषित पदार्थ जैसे यूरिक एसिड,यूरिया आदि को छानकर मूत्र के रूप में बाहर निकालती हैं। इस अंग की क्रिया बाधित होने पर शरीर से विषैले पदार्थ बाहर नहीं आ पाते और स्थिति जानलेवा होने लगती है जिसे गुर्दो का फेल होना (किडनी फेल्योर) कहते हैं।
दूषित खान पान के कारण भारत में प्रत्येक 10 में से एक व्यक्ति को किसी ना किसी रूप में किडनी की बीमारी होने की संभावना रहती है। और प्रति वर्ष करीब 1,50,000 लोग किडनी फेल्योर की अंतिम अवस्था के साथ नये मरीज बनकर आते हैं,
1) क्रोनिक किडनी फेल्योर
2) एक्यूट किडनी फेल्योर
क्रॉनिक किडनी फेल्योर के लक्षण
शुरूआत में इस रोग के लक्षण स्पष्ट नहीं होते लेकिन धीरे-धीरे शरीर मे थकान,सुस्ती व सिरदर्द आदि महसूस होने लगता हैं। कई मरीजों के पैर व मांसपेशियों में खिंचाव,हाथ-पैरों में सुन्नता और दर्द होता है। और उल्टी,जी-मिचलाना व मुंह का स्वाद खराब होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
कारण:- ग्लोमेरूनेफ्रायटिस,इस रोग में किडनी की छनन-यूनिट (नेफ्रॉन्स) में सूजन आ जाती है और ये नष्ट हो जाती है। डायबिटीज व उच्च रक्तचाप से भी किडनी प्रभावित होती है। पॉलीसिस्टिक किडनी यानी गांठें होना,चोट,क्रॉनिक डिजीज,किडनी में सूजन व संक्रमण,शरीर से एक किडनी निकाल देना,हार्ट अटैक,शरीर के किसी अंग की प्रक्रिया में बाधा,डिहाइड्रेशन या प्रेग्नेंसी की अन्य गड़बडियां।
एक्यूट किडनी फेल्योर के लक्षण
पेशाब कम आना,शरीर व चेहरे पर सूजन,त्वचा में खुजली,वजन बढ़ना,उल्टी व सांस से दुर्गध आने जैसे लक्षण हो सकते हैं।
कारण:- किडनी में संक्रमण,चोट,गर्भवती स्त्री में टॉक्सीमिया (रक्त में दूषित पदार्थो का बढ़ना) व शरीर में पानी की कमी।
शरीर मे किडनी फिल्टर का कार्य करती हैं और इसके कार्य मे असमानता होने के कारण इससे संबंधित निम्न रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
जैसे:- मूत्र एवं जननेन्द्रियों के रोग,नेफ्राइटिस,गठिया,अर्थराइटिस,गुर्दे की पथरी, डाइबिटीज,त्वचा संबंधी रोग,प्रजनन संबंधी रोग,अण्डकोष की नशो का फूलना,पेशाब का रुकना,अनिद्रा,हिस्टीरिया,मानसिक रोग,रक्तदोष आदि।
किडनी फेल्योर की स्थिति में सामान्य तौर पर डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती हैं लेकिन इलेक्ट्रो होमियोपैथी की औषधियों से इन परिस्थितियों में भी सफलता पूर्वक उपचार सम्भव हैं।
इलेक्ट्रो होमियोपैथी से किडनी का उपचार
इलेक्ट्रो होमियोपैथी वनस्पति जगत पर ऐसी उपचार की विधा हैं जिसमे रोगों की चिकित्सा न करते हुये अंगों की चिकित्सा की जाती हैं। किडनी के रोगों में इलेक्ट्रो होमियोपैथी की S6,C6,C5,S5,S2,C17,GE,BE आदि औषधियां अत्यंत प्रभावकारी हैं। जो कि किडनी के क्षतिग्रस्त सेल या ऊतकों को रिपेयर कर किडनी को स्वास्थ्य कर कार्य को पुनः संचालित करती हैं और मूत्र संस्थान में होने वाले अन्य रोगों को भी ठीक करती है।
संयमित खानपान:- इस रोग में चेरी,अनानास,गाजर,तुरई, टिंडे,ककड़ी, अंगूर,तरबूज,नारियल पानी,इन चीजों से पेशाब खुलकर आता है। मौसमी पपीता,संतरा,आंवला और उबली सब्जी भी खा सकते हैं। रात को तांबे के बर्तन में रखा पानी सुबह पिएं।
परहेज:- किडनी खराब हो तो ऐसे खाद्य-पदार्थ न खाएं,जिनमें नमक व फॉस्फोरस की मात्रा कम हो। पोटेशियम की मात्रा भी नियंत्रित होनी चाहिए। ऐसे में केला फायदेमंद होता है। इसमें कम मात्रा में प्रोटीन होता है।
सीरम क्रेटनीन व यूरिक एसिड बढ़ने पर:-
रोगी प्रोटीन युक्त पदार्थ जैसे मांस,सूखे हुए मटर,हरे मटर,बैंगन,मसूर,उड़द, चना,बेसन,अरबी,कुलथी की दाल,राजमा,कांजी,मिर्च मसाला व शराब आदि से परहेज करें। नमक, सेंधा नमक,टमाटर, कालीमिर्च व नींबू का प्रयोग कम से कम करें।
लोक-कहावत के अनुसार:-
"खाइ के मूतै सोवे बाम। कबहुं ना बैद बुलावै गाम"
यानी भोजन करने के बाद जो व्यक्ति मूत्र-त्याग करता है व बायीं करवट सोता है, वह हमेशा स्वस्थ रहता है और वैद्यों या डॉक्टरों की शरण में जाने से बचता है।
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