Punjab Ka Sach Newsporten/ NewsPaper: पिछले दो दशक से बठिंडा में अवैध इमारतों का मुद्दा गर्म लेकिन राजनीतिक, अधिकारिक व एजेंटों के गठजोड़ ने नहीं होने दी कारर्वाई

Monday, March 7, 2022

पिछले दो दशक से बठिंडा में अवैध इमारतों का मुद्दा गर्म लेकिन राजनीतिक, अधिकारिक व एजेंटों के गठजोड़ ने नहीं होने दी कारर्वाई


बठिंडा।
बठिंडा शहर में अवैध इनारतें बनने का मुद्दा नगर निगम की हाउस बैठकों में भी पिछले दो दशक से उठाया जा रहा है लेकिन जमीनी स्तर पर आज तक पुख्ता कारर्वाई नहीं हो सकी है। अवैध इमारते बनाने वाले लोगों का शहर के कुछ आर्टिटेक्टो के साथ निगम के अधिकारियों से इस तरह का गठजोड़ है कि शहर में कोई भी इमारत जब बनने लगती है तो उसकी दीवारों को पहले पूरी तरह से बनाने का मौका दिया जाता है। वही जिस दिन इमारत का लैंटर डाला जाता है उसी दिन निगम के अधिकारी व फिल्ड अफसर मौके पर पहुंच जाते हैं। इस दौरान पहले उन्हें बिल्डिंग का काम रोकने की धमकी दी जाती है वही अगले दिन आकर इमारत पर बुल्डोजर चलाने की चेतावनी देते है। इमारत पर लाखों रुपए खर्च कर चुका बिल्डर हाथ पैर मारना शुरू करता है व शहर में निगम के अधिकारियों की जानपहचान वाले नेताओं से लेकर हर वर्ग के व्यक्ति से सिफारिश डलवाने का काम शुरू हो जाता है। इस दौरान सिफारिश लेकर आए व्यक्ति को संदेश दिया जाता है कि आलाअधिकारी के पास मामला पहुंच चुका है व अफसर काफी सख्त है। इकी दौरान फिर बिल्डर की जेब खाली करवाने व अफसर व बिचोलियों की जेब भरने का सिलसिला शुरू हो जाता है। जेब में पैसे पहुंचते ही इमारत कैसे बननी है व किस तरह का जुगत लगाना है इसकी पूरी जानकारी बिल्डर तक पहुंचा दी जाती है व कुछ समय बाद ही बिल्डिंग तैयार होकर रंग रोगन पोतकर तैयार हो जाती है। यही नहीं इमारत की कीमत व इलाके के हिसाब से पैसे का लेनदेन तय होता है। फिलहाल इस पूरे माफियां को सीधे तौर पर अफसरों से लेकर नेताओं का सीधे तौर पर संरक्षण हासिल होता है।

पांच साल पहले 10 सदस्यों की कमेटी कर चुकी है जांच

पिछले दो दशक में शहर में बनी अवैध इमारतों का मसला नगर निगम सदन में बार-बार उठने के बाद 31 मार्च 2017 की बजट बैठक में जांच के लिए 10 सदस्यों की कमेटी का गठन किया गया था। रिकॉर्ड देखा जाए तो 2003 से 2012 तक की 850 तो 2012 से 2017 तक 400 के करीब अवैध इमारतों का निर्माण शहर में किया जा चुका है। वही साल 2017 से अब तक 1200 के करीब इमारते नियमों को ताक पर रखकर शहर में बन चुकी है। इसमें खास बात यह रही कि शहर में एक दर्जन से अधिक बड़े अस्पताल व शो रुम पिछले पांच साल में नियमों को ताक पर रखकर तैयार हो गए। जबकि यह सभी वही इमारते थे जिसमें लंबे समय से निगम आपत्ति जताता रहा है। इन तमाम इमारतों में नगर निगम ने बाकायदा नोटिस निकाल रखा है लेकिन इनके खिलाफ तो कार्रवाई हो सकी और ही इनका सीएलयू भरवाया जा सका है जिससे नगर निगम को करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ा है।

शहरमें नवंबर 2016 से 15 मार्च 2017 तक 28 अवैध इमारतें नियम कायदों को ताक पर रखकर खड़ी कर दी गई। इसकी जानकारी नगर निगम के रिकार्ड में दर्ज है लेकिन इसमें हैरानी वाला पहलू यह है कि नगर निगम ने इन इमारतों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर नोटिस निकालकर खानापूर्ति कर दी। वर्तमान में यही अवैध इमारतें नगर निगम अधिकारियों के लिए गले का फांस साबित हो रही है। नगर निगम ने सूचना अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी में शहर में पांच माह के दौरान बनी इमारतों की लिस्ट तो जारी कर दी लेकिन इसमें जब इन इमारतों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है संबंध में पूछा गया तो अधिकारियों ने इसे आंतरिक मामला कहकर जवाब देने से इनकार कर दिया।

दूसरी तरफ नगर निगम अधिकारियों की मिलीभगत से शहर में बनी इमारतों को लेकर पार्षदों ने अपने स्तर पर जांच पड़ताल करने में जहां आनाकानी की वहीं इसमें अब पूरे मामले की जांच विजिलेंस से करवाने की मांग भी की गई लेकिन राजनीतिक व अधिकारियों के दबाव में मामले ठंडे बस्ते में डाल दिया गया । लोकसभाचुनाव 2014 में 150 अवैध इमारतें बनी तो 2015 निगम चुनाव में 125 इमारतें रातों रात बना दी गई। 2017 विधानसभा चुनाव में नगर निगम रिकार्ड में 28 इमारतें बनी है जबकि शहर के आउटर एरिया के साथ गली मोहल्लों में बनी इमारतों को जोड़ दिया जाए तो यह तादाद 80 से ऊपर पहुंच जाएगी। साल 2003-04 में 60, 2004-05 में 58, 2005-06 में 82, 2006-07 में 91 इमारतें बनी। साल 2007 विधानसभा चुनाव के दौरान 121, लोकसभा चुनाव 2009 में 114 इमारतें अवैध तौर पर खड़ी की गई। 2010-11 में 25 तो 2012 विस चुनाव में 175 इमारतें खड़ी हो गई। वही हाल में नगर निगम व बाद में विधानसभा चुनावों में शहर के हर कोने व गली मुहल्ले में इमारते बनाने की होड़ लग गई। इन इमारतों की अगर सही ढंग से फीस भरी जाती तो निगम की आय करोड़ों में जाती व शहर का विकास हो सकता था लेकिन अधिकारियों ने निगम के कागजों में हेरफेर कर, कमर्सिंयल को रेजीडेंस इलाका दिखाककर करोड़ों का हेरफेर कर मोटी चपत लगाने का काम किया। पार्किंग के नाम पर छोड़ी जाने वाली जगह से लेकर दो से पांच मंजिला इमारत बनाने के लिए भर जाने वाली फीसों में भी बड़ा हेरफेर हुआ। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाए तो एक बड़ा घपला सामने आ सकता है।


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