बठिंडा, हरिदत्त जोशी. पंजाब सरकार ने सरकारी अस्पतालों में सभी तरह के इलाज और दवाइयां मुफ्त देने की योजनाओं की घोषणा कर रखी है. प्रशासन इस बात के दावे भी करता है कि वो योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू भी कर रहा है लेकिन बठिंडा सिविल अस्पताल में जिस तरह से दलालों के जरिए प्राइवेट अस्पतालों को फायदा पहुंचाना का खेल चल रहा है वो सरकार की योजनाओं पर पानी फेर रहा है। सिविल अस्पताल में एबुलेंस से लेकर हर तरह की सरकारी सुविधा उपलब्ध है लेकिन इसके बावजूद प्राइवेट अस्पतालों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी अस्पताल के स्टाफ विभिन्न अस्पतालों के दलालों के साथ साजगाठ कर मोटा कमिश्न हासिल कर रहे हैं। सिविल अस्पताल से मरीज रैफर करने से लेकर किसी भी तरह के टेस्ट प्राइवेट अस्पताल से करवाने की एवज में सीधे तौर पर 50 फीसदी तक का कमिशन दिया जाता है।
इसमें सरकारी स्टाफ पर शक न जाए इसलिए अस्पताल में दलालों का टोला हर समय घूमता रहता है। इस टोले में सेहत विभाग की विभिन्न स्कीमों के साथ जुड़े कर्मी भी शामिल है। गत दिवस सिविल अस्पताल में सुप्रीम डायग्नोसिस्ट सेंटर अस्पताल की एक एबुलेस व दो कर्मियों को सुरक्षा कर्मियों ने मरीजों को गुमराह कर प्राइवेट अस्पताल में लेकर जाने का मामला सामने आया। इसमें सिविल अस्पताल प्रशासन के पास मामले की जानकारी होने के बावजूद इस गौरखधंधे को रोकने के लिए किसी तरह के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए वही न ही मामले में पकड़े दलाल व अस्पताल प्रबंधकों के खिलाफ किसी तरह की कारर्वाई की गई है।
क्या है पूरा मामला ?
जिला सिविल अस्पताल में सरकारी इलाज लेने आ रहे मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों के दलाल अपने अस्पतालों में ले जा रहे हैं और दलालों के इस खेल में जिला अस्पताल के कर्मचारी खुद शामिल है। दो चंद पैसों के कमीशन के लालच में गरीब मरीजों को निजी अस्पतालों के लूट के जाल में फंसा देते हैं।
यही नहीं दलाल जब मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में लेकर जाते हैं तो उनके इलाज का खर्च भी दो गुणा हो जाता है क्योंकि दलाल व रैफर करने वाले डाक्टरों को सीधे तौर पर 50 से 60 फीसदी कमिशन मीरज से वसूली जाने वाली रकम से दिया जाता है। इस स्थिति में अगर एक मरीज का प्राइवेट अस्पताल में इलाज एक लाख रुपए तक में हो सकता है तो उससे सीधे तौर पर दो लाख रुपए की वसूली की जाती है। इसमें अस्पताल अपना खर्च व कमाई निकालकर बाकि अतिरिक्त वसूली रकम दलाल व रैफर करने वाले कर्मियों व डाक्टरों को भेज देता है। कमिश्न का यह धंधा किसी भी तरह के मेडिकल टेस्ट, स्कैन व उपचार में चलता है। फिलहाल सरकारी अस्पताल में पैसों की कमी से जूझ रहे लोग पहुंचते हैं लेकिन दलाल जबरन इन मरीजों की जेबे खाली करने में जुटे हुए है। मजबूरी में उक्त लोग किसी तरह उधार व कर्ज लेकर इन अस्पतालों का भुगतान करने पर मजबूर होते हैं। वही अगर कोई मरीज हेल्थ बीमा धारक होता है तो उसकी लूट का सिलसिला दूसरी कड़ी में शुरू किया जाता है। इसमें मनमाफिक राशि वसूल करने की छूट मिल जाती है। अभी हाल में आयुष्माण बीमा योजना में कुछ प्राइवेट अस्पतालों की तरफ से सरकारी खजाने की लूट करने के लिए डमी मरीज दिखाने के साथ खर्च से ज्यादा की राशि वसूल करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। इसमें सरकार को कई अस्पतालों को बीमा योजना के पैनल से बाहर निकालना पड़ा।
सर, आप परेशान न हो। आप के पापा को कुछ नहीं होगा। सरकारी अस्पताल का हाल तो आप देख ही रही हैं, यहां मरीजों का इलाज़ ठीक से नहीं करते हैं। मैं आपको एक प्राइवेट अस्पताल ले चलता हूं। वहां आपके पापा का अच्छा इलाज हो जाएगा।” यह शब्द सरकारी अस्पताल ओपीडी सेंटर के बाहर खड़े दलाल के हैं। सरकारी अस्पतालों के बाहर प्राइवेट अस्पतालों ने अपने-अपने दलाल फिट कर रखे हैं। यह दलाल सरकारी अस्पताल के बाहर खड़े होकर मरीजों को अपनी सेटिंग वाले अस्पताल में ले जाते हैं।
संवाददाता को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने हकीकत की तलाश में परेशान तीमारदार बनकर प्राइवेट अस्पताल के लिए एम्बुलेंस तलाश करने की एक्टिंग की। तीमारदार को इधर-उधर दौड़ता भागता देख करीब एक घण्टे के बाद वह दलाल की नजरों में आ गया। फिर क्या था, एक दलाल ने दूसरे दलाल को फोन करके बुला लिया। दलाल ने मरीज को ले जाने से लेकर अपनी मर्जी के अस्पताल तक सेटिंग उसके मालिक से कर ली और अपना नम्बर देते वक्त यह भी कहा कि सर, हमको डायरेक्ट फोन कर लिजिएगा। क्योंकि अन्दर तक के कर्मचारी सब इस दलाली में मिले होते हैं अगर आप सिविल अस्पताल के कर्मचारी से कहेंगी तो वह हमसे कमीशन ले लेगा, वही पैसा हम आपका कम कर देंगे।
तीमारदार ने उससे मरीज को माल रोड स्थित अस्पताल ले जाने की बात की थी, लेकिन उसने बात को यह कहकर मना कर दिया कि सर, सबसे बड़ा स्कैनिग सेंटर यही है, यहां की हकीकत तो आप देख ही रही हैं। यहां टेस्ट की सुविधा है नही वही जो रिपोर्ट मिलेगी वह सही होती नहीं है ? तीमारदार ने कहा, यहां तो उसको कुछ भी नहीं पता। वह यहां पहली बार आया है, कौन सा अस्पताल ले जाएं। तीमारदार का बस इतना कहना था कि दलाल ने अस्पताल की पहले से बाहर खड़ी एबुलेंस के ड्राइवर के साथ सेंटर के मालिक को फोन कर दिया और तीमारदार की बात अस्पताल के मालिक से करा दी और वहीं सारी की सारी डीलिंग हो गई।
सरकारी कर्मचारी वसूलते हैं कमीशन
इस दलाली का काला चिट्ठा यही बंद नहीं होता है। ऐसा सिर्फ सिविल अस्पताल ही नहीं बल्कि जिले के हर सरकारी अस्पताल के बाहर और अन्दर ऐसे दलाल लगे रहते हैं। जिसके तार अन्दर बैठे सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों से जुड़े होते हैं।
सरकारी अस्पताल मरीज को प्राइवेट अस्पताल भेजने के लिए कमीशन के रूप में मोटी रकम वसूल करते हैं। इन दलालों की हिम्मत इतनी बढ़ गयी है कि यह दलाल सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों को अस्पताल के अन्दर से उठा ले जाते हैं और जहां से इनका कमीशन जुड़ा होता वहां ले जाकर पटक देते हैं और बदले में मोटी रकम वसूल करते हैं।
प्रशासन से सवाल
1. जब मरीज रजिस्ट्रेशन काउंटर पर फाइल बनवाते है, तो मरीज के नंबर दलाल तक कैसे पहुंच रहे हैं ?
2. क्या सरकारी योजना के पूर्व कार्मिक ही अब निजी अस्पतालों के दलाल बन गए है ?
3. क्या रजिस्ट्रेशन काउंटर पर बैठे कार्मिक दलालों से मिले हुए है ?
4. जब मरीज ने फाइल सरकारी अस्पताल में बना ली, तो उसे वापिस क्यों जाने दिया जाता है ?
5. फाइल बनाने के बावजूद मरीज वापिस लौट रहा हो, इसकी जांच पड़ताल क्यों नहीं की जाती है ?
6. क्या निजी अस्पतालों के दलाल और सरकारी अस्पताल के स्टाफ की मिलीभगत है ?
7. क्या जिला अस्पताल का प्रबंधन अब दोषी कार्मिकों पर कार्रवाई करेगा ?
8. क्या सरकारी योजना का गलत तरीके से निजी अस्पतालों को फायदा पहुंचाया जा रहा है ?
और सवाल ये भी है कि एक अस्पताल का ये मामला सामने आया है लेकिन असल में राज्य सरकार की योजना के उद्देश्यों पर पानी फेरने का ये खेल कितना बड़ा है. ऐसे में जरुरत है कि शासन और प्रशासन इस मामले में सख्त कार्रवाई करे. ताकि गरीबों को लूटने वाले और गलत तरीके से निजी अस्पतालों फायदा पहुंचाने के इस खेल पर लगाम लग सके।