राज्य में पानी के साधन तो है लेकिन इसका समुचित लाभ नहीं मिल रहा
राज्य में पिछले डेढ़ दशक से पानी का मुद्दा अहम रहा है। सतलुज यमुना लिंक नहर के मुद्दों को पंजाब के साथ हरियाणा के सियासतदान पिछले तीन चुनावों से जोर शोर से उठा रहे हैं इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों को लाभ भी मिलता रहे हैं। इसी गनीमत ही कहेंगे कि किसी भी राजनीतिक दल ने सत्ता संभालने के बाद इस गंभीर मसले पर जमीनी स्तर पर काम नहीं किया है। पूर्व कैञ्प्टन सरकार से इस मुद्दे को लेकर थोड़ा प्रयास जरूञ्र किए लेकिन वह भी केंञ्द्र में बनी उनकी कांग्रेस सरकार ने ही सफल नहीं होने दिया बल्कि उन पर दबाब बनाकर इसे ठंडे बस्ते में डलवा दिया। वर्तमान में राज्य में अगर कोई बड़ी समस्या है तो वह पानी है। किसान पानी के बिना परेशान है। मानसून के थोडे़ लेट होते ही खेतों में फसले सूखने लगती है। लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता है। गर्मियों के दिनों में तो शहरों के साथ गांवों में हाहाकार की स्थिति पैदा हो जाती है। राज्य में पानी के साधन है लेकिन उनका लाभ उसे नहीं मिल रहा है। फिलहाल काफी लंबे समय से पिटारे में बंद पानी का मुद्दा एक बार फिर से पिटारे से बाहर है। डेढ़ साल बाद राज्य में संभावित विधानसभा चुनावों के चलते भी इस मुददे् को अकाली एक बार फिर से जोरशोर से उठाना चाहते हैं। इसी के चलते पंजाब सरकार ने अब अन्य राज्यों को दिए जा रहे पानी पर रायल्टी लेने का मन बनाया है। अगर इसके दूरगामी पहलुओं पर गौर किया जाए तो इसे पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता है। अगर राज्य सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता के साथ इमानदारी से काम करती है तो इसका फायदा मिलेगा व राज्य के लाखों किसानों को इसका लाभ मिलेगा। सभी राज्यों में कोई न कोई प्राकृञ्तिक संपदा होती है जिसकी उसे रायल्टी मिलती है तो फिर पंजाब के साथ ही भेदभाव क्यों हो। गत दिवस मुख्यमंत्री ने इस संबंध में शीर्ष स्तर पर एक बैठक की, जिसमें वरिष्ठ वकीलों, कई मंत्रियों के अतिरिक्त नदी जल विशेषज्ञ तथा सिंचाई विभाग के प्रमुखों ने हिस्सा लिया। बैठक में इस संबंध में कानूनी लडाई लडने की रूञ्परेखा पर विचार किया गया। जाहिर है कि इस प्रकार की कोई मांग अथवा लडाई उन प्रदेशों को तो रास नहीं आएगी जो पंजाब का पानी मुफ्त में इस्तेमाल कर रहे हैं, किंतु इस मामले में पंजाब सरकार में शामिल शिरोमणि अकाली दल की सहयोगी भारतीय जनता पार्टी का सरकार का साथ देना यह साबित करता है इस मुद्दे पर पंजाब के सभी दल दलीय भावना से ऊपर उठ कर एक स्वर में बात करेंगे। इस मामले में हालांकि कांग्रेस की तरफ से किसी तरह की प्रतिक्रञ्या नहीं आई है लेकिन शिअद को चाहिए कि वह इस लडाई में कांग्रेस की भी मदद ले क्योंकि केंद्र और पडोस के दोनों राज्य हरियाणा तथा राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार है। यह संकेत जाना आवश्यक है कि यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है बल्कि प्रदेश के हितों से जुडा हुआ है। जब भी किसानों के लिए किसी प्रकार की केंञ्द्रीय राहत की घोषणा की जाती है तो प्राय पंजाब की इस आधार पर अनदेखी कर दी जाती है कि इसके पास पर्याप्त पानी है और यह राज्य प्रथम हरित क्रञंति का अगुआ रहा है, किंतु जब पंजाब के संसाधनों की बात होती है तो उसमें हिस्सा बांट दिया जाता है। पंजाब यदि अपना पानी अन्य राज्यों को दे रहा है तो क्या अन्य राज्यों का यह दायित्व नहीं बनता है कि वह इसके लिए कुछ अदा करें? पंजाब में कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और राज्य में किसान आत्महत्या तक कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में राज्य को अपनी जायज मांग को उठाने का पूरा हक है और केंद्र को भी चाहिए कि वह पंजाब की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करे और अन्य राज्यों पर पानी की रायल्टी देने के लिए दबाव बनाए।
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