बठिंडा. बठिंडा सिविल अस्पताल स्थित ब्लड बैक आए दिन अपनी नकारा कारगुजारी के कारण चर्चा में रहा है। कुछ माह पहले थेलिसिमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी पोजटिव खून चढ़ाने तो लेकर भारी विवाद हुआ वही अब ब्लड बैंक में मरीजों को रक्त उपलब्ध नहीं करवाने के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। इसमें ब्लड बैक में जहां स्टाफ एमरजेंसी में उपलब्ध नहीं हो रहा है वही आपातकाल में अगर कोई रक्त लेने के लिए पहुंचता है तो उसे यह कहकर रक्त देने से मना कर दिया जाता है कि उनके पास एलाइजा टेस्ट करने की सुविधा नहीं है। नियमानुसार किसी भी व्यक्ति का रक्त दान में लेने के बाद उस रक्त के संक्रमण संबंधी जांच के लिए एलाइजा टेस्ट करवाना लाजमी होता है। सिविल अस्पताल में साधन के बावजूद टेस्ट नहीं होने के चलते ही ब्लड बैंक से एक महिला के अलावा तीन थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी पॉजिटिव डोनरों का बिना जांच खून चढ़ा दिया गया था। इस मामले में जहां सेहत विभाग चार एलटी को डिसमिस करने की कार्रवाई की है। ब्लड बैंक में अक्टूबर व नवंबर 2020 के मध्य थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एड्स संक्रमित खून चढ़ाने के मामले में जांच के बाद सेहत मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू ने बठिंडा ब्लड बैंक में कार्यरत चार कांट्रेक्ट लैब टेक्नीशियनों को जांच के बाद दोषी पाए जाने पर नौकरी से डिसमिस कर दिया था। सेहत विभाग ने 3 अक्टूबर के केस में जहां एक एमएलटी बलदेव रोमाणा जेल में है तो कांट्रेक्ट पर बीटीओ डा. करिश्मा व एलटी रिचा को सस्पेंड किया जा चुका है।
जानकारी अनुसार ताजा मामले में नौजवान वेलफेयर सोसायटी के प्रधान सोनू महेश्वरी ने सिविल अस्पताल ब्लड बैंक में हो रही लापरवाही व मरीजों को हो रही परेशानी का खुलासा किया है। उन्होंने सोशल मीडिया में एक महिला को ब्लड बैक से रक्त नहीं देने का खुलासा करते कहा कि सरकारी अस्पताल के वूमन एंड चाइल्ड अस्पताल में एक गर्भवती महिला का एमरजेंसी में आपरेशन किया जाना था। उक्त महिला आर्थिक तौर पर काफी कमजोर थी। इस महिला के परिजनों ने संस्था से संपर्क किया व बताया कि महिला के आपरेशन के लिए उन्हें आपातकाल में रक्त की जरूरत है। बठिंडा सिविल अस्पताल ब्लड बैंक में उन्हें यह कहकर रक्त नहीं दिया जा रहा है कि उनके पास एलाइजा टेस्ट करने की सुविधा नहीं है। जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जहां प्रतिदिन एक हजार मरीज पहुंचते हैं वही एमरजेंसी में 60 से 70 लोग आते हैं। एमरजेंसी में अधिकतर मरीज हादसाग्रस्त या फिर आपरेशन वाले होते हैं। इस स्थिति में सिविल अस्पताल में मरीजों के लिए एडवास में एलाइजा टेस्ट कर रक्त रखना जरूरी है। सोनू महेश्वरी ने बताया कि बेशक उन्होंने आपातकाल में उक्त महिला के लिए प्राइवेट ब्लड बैंक से रक्त उपलब्ध करवा दिया लेकिन अधिकतर मामलों में सिविल अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्था के चलते मरीजों को परेशानियों से जूझना पड़ता है व कई बार समय पर रक्त नहीं मिलने से मरीज को जान तक गवानी पड़ सकती है। वही इस मामले में सिविल अस्पताल ब्लड बैंक की इंचार्ज डा. रितिका का कहना है कि ब्लड बैंक में सामान्य ग्रुप जो आसानी से उपलब्ध होते हैं उनका इलाइजा टेस्ट करवाकर रखा जाता है व मांगने पर मरीज के परिजनों को उपलब्ध करवा दिया जाता है। ब्लड जांच के लिए रेपिड टेस्ट की सुविधा भी है लेकिन वह सिर्फ डाक्टर के कहने पर ही किया जाता है क्योंकि सरकार की तरफ से रेपिड टेस्ट करने से मना किया गया है व कहा गया है कि एलाइजा टेस्ट के बिना कोई भी रक्त जारी नहीं किया जा सकता है। एलाइजा टेस्ट करने में पांच घंटे का समय लगता है व एमरजेंसी में विशेष ग्रुप जो आसानी से नहीं मिलता के ब्लड का स्टाक नहीं होता है व जरूरत पड़ने पर ही डूनर को बुलाकर टेस्ट किया जा सकता है। वूमन एं चिल्ड्रन अस्पताल में आपरेशन के लिए पहुंची गर्भवती स्त्री के मामले में तत्काल रक्त की जरूरत थी व डाक्टर ने रेपिड टेस्ट करने की सिफारिश नहीं की थी जिसके चलते उन्होंने मरीज के परिजनों को स्पष्ट तौर पर जानकारी दे दी थी कि उनके पास बिना एलाइजा टेस्ट वाला रक्त है व इसकी जांच में पांच घंटे लग सकते हैं इस स्थिति में वह मरीज की सुरक्षा को देखते बाहर से रक्त की व्यवस्था करवाएं। वही नौजवान वेलफेयर सोसायटी के प्रधान सोनू महेश्वरी ने कहा कि वह इस मामले को आला अधिकारियों तक लेकर जाएंगे ताकि व्यवस्था में व्याप्त खामियों को दूर कर मरीजों को हो रही परेशानी का हल किया जा सके।
फोटो -बठिंडा सिविल अस्पताल में वूमन एंड चिल्ड्रन अस्पताल में एमरजेंसी में दाखिल मरीज को रक्त उपलब्ध करवाते समाज सेवी संस्था।
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