बठिंडा: इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के पितामह डॉक्टर काउंट सीजर मैटी की 125वी बरसी पर पुष्प माला अर्पित कर श्रद्धांजलि समारोह मनाया गया। बठिंडा के सीसीएम इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रोहोम्योपैथी में मनाए गए उक्त कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के एमडी डॉ. प्रो. हरविंदर सिंह, (पंजाब प्रधान, इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाऊंडेशन) मैडिकल ऑफिसर डॉ वरिंदर कौर, डॉ. स्वामीनाथ भारद्वाज, डॉ बलदेव रत्न, डॉ राजिंदर, डॉ. मंदीप धूड़िया, डॉ. रितेश श्रीवास्तव, डॉ गुरप्रीत सिंह, डॉ कमलकांत, डॉ. संतोष ढिल्लो, डॉ सुनंदा चौहान, डॉ नानक चंद आदी खास तौर पर उपस्थित थे।
सीसीएम इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथी के एमडी डॉ. प्रो. हरविंदर सिंह और सीईओ अल्केमी डॉ परमिंदर सिंह चौहान ने कहा कि उक्त पैथी सस्ती है। आम आदमी की पहुंच में है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं। गंभीर से गंभीर बीमारियों में यह चमत्कारी प्रभाव दिखाती हैं। सरकार को चाहिए कि इस को जल्द से जल्द मान्यता दे। ताकि इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से जुड़े क्वालीफाइडस को सरकारी नौकरी मिल सके।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी के फॉदर डॉ काउंट सीजर मैटी ने 1865 में की थी ख़ोज
इलेक्ट्रो होम्योपैथी के जन्मदाता काउंट सीजर मैटी इटली देश के बलोग्ना सिटी (Bologna city) में निवास करते थे इनका जन्म 11 जनवरी 1809 ई0 को हुआ था। यह एक जमीदार व धनवान पुरुष थे। इन्होंने रोम के तत्कालीन पोप को , ऑस्ट्रिया के आक्रमण को रोकने के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा भेट कर दिया था । इसी भेंट के उपलक्ष में इन्हें काउंट की उपाधि दी गई थी ।
इसी समय इन्हे फौज में लेफ्टिनेंट कर्नल भी बना दिया गया था । कुछ समय के बाद यह मजिस्ट्रेट भी बनाए गए थे । अंत में इन्हें रोम की पार्लियामेंट का सदस्य चुना गया परंतु पार्लियामेंट में रूक्ष वाद-विवाद करने में इनको रुचि नहीं आई उन्होंने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
काउन्ट मैटी को चिकित्सा विज्ञान में बड़ी रूचि थी। इसलिए उन्होंने तत्कालीन चिकित्सा पद्धतियों की पुस्तकों का अध्ययन करना शुरू कर दिया । उस समय आयुर्वेद, यूनानी, एलोपैथी, का बड़ा बोलबाला था। डॉक्टर हनीमैन द्वारा आविष्कृत होम्योपैथी भी लड़खडाते कदमों में चल रही थी । काउंट मैटी ने तत्कालीन प्रचलित वैदक शास्त्रों को अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि यह सभी चिकित्सा पद्धतियां दोष पूर्ण है । कोई ऐसी पद्धति तैयार की जाए जिसने कोई दोष न हो बहुत सोच समझकर उन्होंने एक ऐसी चिकित्सा पद्धति तैयार की जो आयुर्वेद और होम्योपैथी का मिश्रण था । जब इस चिकित्सा पद्धति का मैटी ने रिजल्ट देखा तो होम्योपैथी से बहुत फास्ट था । इसलिए सन 1865 ई0 में उन्होंने इस पैथी का नाम ” इलेक्ट्रो होम्यो पैथी ” रखा।
मैटी की दवाइयां बहुत कारगर थी और मैटी भी प्रभाव शाली व्यक्ति थे । इसलिए रोम के एक सरकारी अस्पताल (SanTheresa Hospital Rome) में इलाज करने का इन्हें एक अवसर सरकार की तरफ से दिया गया ताकि दवाओं का सही ढंग से परीक्षण किया जा सके । बोलोग्ना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पासक्यूसी एम .डी. (Professor Pascucci M.D.) ने उस अस्पताल की उस वर्ष की वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है कि मैटी की औषधियां बहुत कारगर साबित हुई है । इन की लोकप्रियता इतनी थी कि मरीजों को संभालने के लिए आर्मी का सहारा लेना पड़ता था।
मैटी इस पैथी को 25-30 वर्ष तक बखूबी चलाते रहे और बहुत से रोगों को ठीक किया । यूरोप के बहुत देशों में अब तक फैल चुकी थी । इतना ही नहीं बल्कि भारत में भी यह पैथी प्रवेश कर गई थी । दक्षिण भारत (कंकनाड़ी, मंगलूर ) मे फादर मुल्लर (जो काउंट सीजर मैटी के दोस्त थे ) का एक अस्पताल है । जिसमें काउंट सीजर मैटी आए थे । उस अस्पताल के बनवाने के लिए 2500/ भी दान में दिया था जिसका नींव पत्थर अस्पताल में लगा था लेकिन यह सब करते करते काउंट सीजर मैटी की आयु बढ़ चुकी थी । पुत्र का आभाव था इसलिए औषधि बनाने का सारा कार्य अपने दामाद मारियो वेन्ट्रोली ( Mario Venturoli ) मैटी को सौंप दिया था। जब ( लगभग 9 साल तक) तक जीवित रहे फार्मेसी की देखरेख करते रहे लेकिन मौत किसी को छोड़ती नहीं अब तक उनकी आयु लगभग 87 वर्ष की हो चुकी थी । 3 अप्रैल सन् 18 96 ई0 को सुबह 7:00 बजे उनके किले रोचटा ( Rochetta ) में उनकी मृत्यु हो गई थी । मैटी तो चले गए लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से उनका नाम अमर हो गया।
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