बुधवार, 6 जनवरी 2021

बठिंडा शहर की स्वच्छता के नाम पर लाखों की बर्बादी : पांच साल में शहर में तीसरी बार डस्टबिन लगाए जा रहे, करीब 55 लाख रुपए खर्च


 

बठिंडा. नगर निगम शहर में सफाई व्यवस्था को लेकर पूरी तरह गंभीर है तथा स्वच्छता अभियान में तीन बार हैट्रिक कर पंजाब के अलावा देश में भी अहम स्थान हासिल कर चुका है। लोगों के सहयोग व सफाई कर्मियों के दम पर शहर को साफ सुथरा रख रहे नगर निगम के लिए यह बहुत खुशी की बात है, लेकिन दूसरी ही तरफ नगर निगम डस्टबिनों पर ही पैसा पानी की तरह बहा रहा है जिसका आंकलन इस बात से किया जा सकता है कि 2015-16 से लेकर अभी तक पांच साल में तीसरी बार करीब 15 से 20 लाख रुपए के लोहे के डस्टबिन शहर में विभिन्न जगहों पर लगाए जा रहे हैं ताकि शहर को कचरे से बचाया जा सके, लेकिन इस प्रक्रिया में डस्टबिन को रिपेयर करने की बजाए सीधे उखाड़ नए इंस्टाल किए जा रहे हैं जो रखरखाव के अभाव में बेवजह साल दो साल में ही टूट रहे हैं तथा जनता का कीमती पैसा डस्टबिनों पर ही बहता दिख रहा है। स्टील के करीब 25 लाख के डस्टबिन जहां थोड़े समय में ही चोरी हो गए, लेकिन निगम इसकी कोई एफआईआर नहीं करवा पाया। इसी तरह 2018 में इंस्टाल किए डस्टबिन फिर टूट गए जो अब नए लगवाने की पुन नौबत आ गई है। ऐसे में 50 लाख से अधिक रुपये डस्टबिनों पर ही खर्च हो गए हैं।

न डस्टबिन के रखराखव की कोई योजना, न चोरी होने से बचाने का उचित प्रबंध

रखरखाव के अभाव में पब्लिक संपत्ति की हो रही है बर्बादी
बठिंडा नगर निगम जितनी शिद्दत से शहर को साफ रखने का काम करता है, अगर उसका आधा भी शहर को साफ रखने में अहम रोल देते डस्टबिन के रखरखाव पर लगा दे तो शायद यह सालों ही खराब नहीं हों। लगातार कचरे से अटे रहने के अलावा इंस्टालेशन के बाद ना तो इनमें पुन कभी प्राइमर किया जाता है तथा ना ही इन्हें फिर रंग-रोगन किया जाता है। वहीं क्वालिटी को लेकर एफएंडसीसी के सदस्य ही सवाल उठा रहे हैं। पूर्व एफएंडसीसी मैंबर निर्मल संधू कहते हैं कि निगम का कीमती पैसा डस्टबिन पर बार-बार खर्च करना सही नहीं है। अगर शहर में अच्छी क्वालिटी के डस्टबिन लगाकर उनका सही रखरखाव किया जाए तो यह खराब ही नहीं हों।मोहाली की तर्ज पर पूर्व निगम कमिश्नर अनिल गर्ग ने स्टील के 150 से अधिक डस्टबिन लगवाए थे।

इस पर करीब निगम ने करीब 22 से 25 लाख रुपए खर्च किए थे, लेकिन धीरे-धीरे इनके टूटने के अलावा यह चोरी भी होते गए जिसमें जिम्मेदार निगम अधिकारियों द्वारा इनकी पैरवी के अभाव में पुलिस में भी कोई शिकायत नहीं दी गई। इसके बाद निगम ने शहर मंे 2018 में 200 से अधिक लोहे के डस्टबिन लगवाए, लेकिन उनके रखरखाव व रिपेयर के अभाव में वह भी कचरा-कचरा होने शुरू हो गए तथा हालत यह है कि निगम की यह संपत्ति आपको शहर के अलग-अलग कोनों में उखड़ी मिल जाएगी जिसे या तो तोड़ दिया गया या फिर आसपास के लोगों द्वारा रेगुलर सफाई नहीं होने से कचरा इकट्ठा होने के चलते उखाड़कर फेंक दिया गया, लेकिन जो सही हैं या हलके खराब हैं, उन्हें रिपेयर की जाए सीधे उखाड़कर नए लगाए जा रहे हैं। अब तीसरी बार करीब 120 से 150 लोहे के डस्टबिन पर 10 से 15 लाख रुपये खर्च कर रहे हैं।

हमारी बात अनसुनी की
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दूसरी बार जब डस्टबिन लगाए जाने थे तो बतौर एफएंडसीसी मैंने व सीनियर डिप्टी मेयर तरसेम गोयल ने मीटिंग में कहा था कि डस्टबिन अच्छी क्वालिटी का लगाना चाहिए, लेकिन हमारी बात अनसुनी कर दी गई। बार-बार पैसा लगाने की बजाए अच्छी क्वालिटी के डस्टबिन लगें।
गुरिंदरपाल कौर मांगट, पूर्व डिप्टी मेयर, नगर निगम, बठिंडा

 

स्वच्छ सर्वेक्षण के तहत लगाए थे डस्टबिन

नगर निगम की ओर से स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 के तहत शहर में सार्वजनिक स्थानों पर जनवरी 2018 में 237 लगाए गए थे। ताकि इसके प्रतियोगिता में अंक हासिल किए जा सकें। आखिर निगम को इसका लाभ भी मिला। प्रतियोगिता में इसके अच्छे अंक मिले और बठिंडा को राज्य में प्रथम स्थान हासिल हुआ। इन डस्टबिनों पर करीब 24 लाख रुपये खर्च हुए थे। लेकिन सर्वेक्षण संपन्न होने के बाद निगम ने इनके रखरखाव एवं सफाई के प्रति कोई ध्यान नहीं दिया। लोगों ने भी इनका सदुपयोग नहीं किया। आखिरकार यह डस्टबिन कबाड़ में तब्दील होने लगे। धीरे-धीरे कूडे के डंप ही बन गए। कई पूरे के पूरे डस्टबिन चोरों ने चोरी कर लिए। जबकि बड़ी गिनती में डस्टबिनों के अंदर से प्लास्टिक के डिब्बे (डस्टबिन) चोरी कर लिए गए। पहले जब यह डस्टबिन तोड़े या चोरी हुए थे तो नगर निगम की ओर से तुरंत पुलिस के पास शिकायतें भी दर्ज कराई गईं, लेकिन उसके बाद शिकायतें दी जानी भी बंद हो गई।

सफाई को भी नहीं रखे 27 कर्मचारी

बीती 12 मार्च को हुई नगर निगम के जनरल हाउस की बैठक में इन डस्टबिनों की सफाई के लिए 25 कर्मचारी रखने का प्रस्ताव भी रखा गया था। लेकिन कर्मचारी रखने से पहले बैठक में इसकी गिनती की पड़ताल करने के लिए सब कमेटी के गठन की घोषणा कर दी गई। सब कमेटी ने पड़ताल तो क्या करनी थी, अभी तक एक बैठक भी नहीं की। सफाई कर्मी रखना तो दूर की बात रही। स्थिति यह है कि सफाई के अभाव में यह डस्टबिन बदबू का जरिया बन हुए हैं। जिनकी अब स्वच्छता सर्वेक्षण-2019 की प्रतियोगिता के लिए मरम्मत की तैयारियां की जा रही हैं।

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