आज से 160 साल पहले इटली के डॉक्टर ने पौधों से ऐसी दवाइयां तैयार करने की पद्धति प्रचलित की जो दुनियाभर में इलेट्रो होम्योपेथी नाम से मशहूर हो गई। यह अपने वजूद के किए लड़ रही है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाउंडेशन के पंजाब प्रमुख डॉक्टर हरविंदर सिंह, कहते हैं कि 11 जनवरी को केंद्र सरकार ने इस बाबत दिल्ली में मीटिंग बुलाई है, जिस पर देश भर में काम कर रहे तक़रीबन पांच लाख ईएच डॉक्टर्स में उम्मीद की किरण जगी है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को एलोपैथी, आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी के बाद पांचवीं पद्धति के रूप में मान्यता देने बाबत दिल्ली में ज्वाइंट बॉडी इलेक्ट्रो होम्योपैथी प्रपोजलिस्ट कमेटी ऑफ़ इंडिया के साथ मीटिंग पर सब की नज़रे हैं।
चंडीगढ़. दुनियाभर में अल्टरनेटिव मेडिसिन सिस्टम की मांग बढ़ रही है। जानकर आश्चर्य होगा कि आज से 160 साल पहले इटली के डॉक्टर ने पौधों से ऐसी दवाइयां तैयार करने की पद्धति प्रचलित की जो इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा के नाम से दुनियाभर में मशहूर हो गई और आज भी कई देशों में लोगों के लिए वरदान बनी हुई है। चिकित्सा जगत में पांचवीं पद्धति आज अपने वजूद के किए लड़ रही है।
11 जनवरी को केंद्र सरकार ने इस बाबत दिल्ली में मीटिंग बुलाई है, जिस पर देश भर में काम कर रहे तकरीबन पांच लाख ईएच डॉक्टर्स में उम्मीद की किरण जगी है। ज्वाइंट बॉडी इलेक्ट्रो होम्योपैथी प्रपोजलिस्ट कमेटी ऑफ़ इंडिया के वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर दिनेश चंद्र श्रीवास्तव कहते है की भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय स्वास्थ्य और अनुसंधान विभाग के सचिव डीआर मीणा की ओर से इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को एलोपैथी, आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी के बाद पांचवीं पद्धति के रूप में मान्यता देने बाबत दिल्ली में ज्वाइंट बॉडी इलेक्ट्रो होम्योपैथी प्रपोजलिस्ट कमेटी ऑफ़ इंडिया के साथ मीटिंग बुलाई गई है। ज्वाइंट बॉडी ईएच के संयोजक डॉक्टर के.डी तिवारी को लेटर भी जारी किया गया है
बता दें कि इलेक्ट्रोहोमियोपैथी के जनक इटली निवासी डा. काउन्ट सीजर मैटी ने इस पैथी का खोज 1865 ई0 में किया। इनका जन्म 11 जनवरी 1809 को इटली देश के बोलोग्ना शहर के नजदीक रोचेटा (Rochetta) नामकग्राम के एक राजघराने में हुआ था । इनके पिता का नाम ल्यूगी मैटी (LuigiMattei 1780-1827) एवं माता का नाम थ्रेसा मोन्टिगनैनी (Theresa Montignani) था । 1847 ई0 में रोम एवं आस्ट्रीया के बीच हुई लड़ाई में देश के क्षतिपूर्ति एवं शांति के लिए मैटी ने अपने जमीदारी का 1/3 भाग रोम के पोप को दान दिया जिसके फलस्वरूप पोप द्वारा 2 अगस्त 1847 ई0 को इनको "काउन्ट' की उपाधि देकर सेना के सातवीं बटालियन का लेफ्टीनेन्ट कर्नल बनाया गया ।
इस पद पर रहने के पश्चात् जब इनको अपनी सेवासे आत्मसंतुष्टि नहीं मिली तो जनता की अधिक से अधिक सेवा के लिए इन्होने इटली के बद्रियो क्षेत्र से MP (Member of Parliament) पद केलिए चुनाव लड़े एवं 18. मई1848 को भारी मतों से विजयी होकर अपने देश की सेवा में लग गए । कुछ समय राजनीति में बिताने के बाद इनकोराजनीति से घृणा हो गई जिसके कारण इन्होने इस क्षेत्र से हमेशा के लिए सन्यास ले लिया। मैटी उदार प्रकृति एवं प्रतिभा के धनी होने के साथ-साथ अविवाहित जीवन बिताते हुए अपना पूरा समय गरिबों की सेवा में अर्पित कर दिए ।
मैटी का किला इटली में उचें पहाड़ी पर है और इन पहाड़ियों में बसे बस्तियों में जहाँ रोड नहीं था वहाँ रोड भी मैटी ने अपने खर्च से बनवाया था । इन्होने सन 1895 ई0 में दक्षिणी भारत के कनकनाडे मंगलुर में अपने शिष्य फादर मूलर द्वारा बने कुष्ठ हॉस्पीटल में 2395रू. दान दिया था जिसका कुल लागत 7705 रू आया था । इनकी यादगार में आज भी इस हॉस्पीटल में पत्थर की दिवार पर काउन्ट सीजर मैटी का नाम अंकित है। काउन्ट सीजर मैटी बहुत ही प्रसन्नचित स्वभाव एवं कला के प्रेमी थे।
राजनीति से सन्यास लेने के बाद "काउन्ट सीजर मैटी" ने अपना पूरा जीवन वनस्पतियों के अध्ययन एवं औषधियों के खोज में बिताए। चिकित्साजगत में आने के पहले इन्होने पूर्व प्रचलित विज्ञान आर्युवेद यूनानी, एलोपैथी के साथ-साथ होमियोपैथी का भी गहन अध्ययन करने के पश्चात पाया कि इन पैथियों में औषधियाँ वनस्पतियों के अलावे वायरस, बैक्टीरिया, जीव-जन्तु, धातु, रसायन, जहर आदि तत्वों से बनाई गई है। जो मानव के प्रकृति के अनुकूल नहीं है जिसके फलस्वरूप इन औषधियों का भयंकर दुष्प्रभाव देखने को मिलता है। मैटी ने वनस्पतियों के गहन अध्ययन के फलस्वरूप पाया कि प्रकृति ने जिस प्रकार के रसायन या घटक (Ingredients) पेड़ पौधो में बनाया हैवह वैज्ञानिको द्वारा प्रयोगशाला में बनाना असंभव ही नहीं नामुमकिन है। वनस्पतियों के सम्बन्ध में निम्न बाते भी कही गई हैवनस्पतियों के पास प्राकृतिक प्रयोगशाला है।पौधों में प्राकृतिक आरोग्यकारी शक्ति है।पौधो के अन्दर रहस्यमयी यानि छुपी हुई शक्ति है, जिसका किसी भी प्रयोगशाला में पूर्णरूप से रसायनिक विघटन (Chemical Analysis) करना असंभव है।पौधो के पास संपुर्ण आरोग्यकारी शक्ति है।
अध्ययन के फलस्वरूप मैटी ने सोचा कि हर प्रकार के जीव-जनतुओं का भोजन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधों से ही प्राप्त होता है तो औषधि भी वनस्पति ही होनी चाहिए ।वनस्पतियों के अन्दर पाए जाने वाला रसायन (Chemical) विटामिन्स (Vitamins) खनिज लवण (Minerals) एवं तत्व (Element) हमारे शरीरमें किसी भी प्रकार के हानि (Side Effect) नहीं पहुँचाते यानि पौधों में प्रकृति द्वारा बनाए गए रसायनों का कोई दुष्प्रभाव (Bad Effect) नहीं होता है।इसलिए इस पैथी के जनक डा. काउन्ट सीजर मैटी ने अपने औषधिनिमार्ण में केवल वनस्पतियों का प्रयोग किया ।
मेटी ने हमारे शरीर के अंगो (organs) एवं संस्थानों (systems) परआधारित औषधियों का निमार्ण किया ।वनस्पतियों के 100: गुण प्राप्त करने के लिए इन्होने एक नई विधि (cohobation) का प्रयोग कर वनस्पतियों का Spaqyric Essence निकालाजिसका प्रभाव हमारे शरीर पर विधुत की भाँति दिखाई पड़ता है। 1865 ई0 में डा. काउन्ट सीजर मैटी द्वारा आविष्कृत इलेक्ट्रोहोमियोपैथी की औषधियाँ इतनी कारगर साबित हुई की मात्र चार वर्षों के बाद सन1869 ई. में इटली के बहुत बड़े हॉस्पीटल सेन्ट थ्रेसा में वहाँ की सरकार में इलेक्ट्रो होमियोपैथी का एक अलग विभाग खोलकर मैटी को चिकित्सा सेवा का पूर्ण अवसर प्रदान किया।
जिसमें मैटी ने लगभग 20,000 सेअधिक असाध्य रोगियों को आरोग्य किया । इन असाध्य रोगियों में कैंसर जैसे भयानक बिमारी को भी मैटी ने ठीक किया। इस बात की पुष्टिइटली के बोलाग्ना युनिवर्सिटी के प्रोफेसर चार्ल्स हिन्डले (Charles Hindley) द्वारा लिखित पुस्तक In Rocchetta Count Ceaser Mattei मेंहै|इन औषधियों से कैंसर एवं असाध्य कहे जाने वाले रोगों को जो अन चिकित्सा पद्धति के इलाज के उपरान्त निराश होकर अंतिम अवस्था आए, उन्हे भी इस विज्ञान के औषधियों से नया जीवन प्रदान हुआ और बिना, कष्ट-पीड़ा के बहुत दिनों तक जीवित रहे ।
इस प्रकार इलेक्ट्रो होमियोपैथी बहुत कम ही समय मे पूरे विश्व में फैल गई। उस समय बहुत से होमियोपैथिक चिकित्सकों ने भी हलेक्ट्रो होमियोपैथिक औषधियों का प्रयोग कर अपने चिकित्सा जगत में सफलता हासिल की। जैसे लैप्सिक शहर के डा. जिम्पल (Dr. Zimple of Leipsic) कोथेन शहर के डा. लूट्जे (Dr. Lutze of Coethen) जेनेवा के डा. रिगार्ड (Dr. Regard of Genewa) ग्लास्गो के डा. आर. एम. थियोबाल्ड (Dr.R.M. Theobald of Glasgow) डा. एकवर्थ, आस्ट्रीया के डा. मेरिया, दक्षिण भारत के डा. फादर मूलर आदि ।सन 1881 तक इलेक्ट्रो होमियोपैथिक की औषधियाँ इटली, फ्रान्स, जर्मनी,"स्वीटजरलैन्ड, इंगलैण्ड, पोलैन्ड, रसिया, स्पेन, नेदर लैन्ड, इस्ट इन्डिया, जापान, अर्जेन्टीना आदि देशों तक पूर्ण रूप से फैल चूकी थी।
आज पूरे भारत में हर राज्य के सभी क्षेत्रों में इलेक्ट्रोहोमियोपैथिक चिकित्सक इस हानिरहीत चिकित्सा विज्ञान से असाध्य से असाध्य रोगोंकी चिकित्सा देकर नवजीवन प्रदान कर रहे हैं। इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाउंडेशन के पंजाब प्रमुख डॉ प्रो हरविंदर सिंह कहते हैं कि उनके स्वयं के अनुभव में इस भारत के बड़े-बड़े हॉस्पीटलों से रोगी इलाज कराने के बाद निराश होकर आते हैं जो इस पद्धति के सिद्धांतों पर आधारित विज्ञान इलेक्ट्रोहोमियोपैथी से लाभान्वित होते हैं।
इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान वैकल्पिक प्रणाली की एक व्यापक शाखा है। इस चिकित्सा पद्धति में मूल रूप से औषधीय पौधों के रस को आसवन प्रक्रिया की सहायता से तैयार किया जाता हैं ।वर्तमान में 114 प्रकार के औषधीय पौधों के रस से 38 प्रकार की मूल ओषधियाँ तैयार की जा रही हैं जिनका उपयोग एकल व सम्मलित रूप से करते हुए 60 से अधिक औषधियों के रूप में उपयोग किया जाता है इस पद्धति में भविष्य में ओर अधिक शोध एवम अध्ययन की आवश्यकता है इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोगों का वर्गीकरण भी रक्त के मूल रूप में परिवर्तन तथा शरीर मे बनने वाले रसो में आई अशुद्धता/परिवर्तन के आधार पर किया जाता है यह इसी प्रकार है जैसे कि आयुर्वेद में समस्त रोगों का कारण वात, पित्त ,कफ का असन्तुलन माना जाता हैं । इस चिकित्सा पद्धति में रोगों का निदान व उनके उपचार लक्षणों पर आधारित नही है वल्कि अंगों की कार्य क्षमता में उस रोग के कारण होने वाले प्रभाव के आधार पर किये जाते है ।
यह पद्धति इस मूल सिद्धान्त पर कार्य करती हैं कि एक सामान्य ब्यक्ति के शरीर मे सामान्य स्थिति में सामान्यतः परिवर्तन होता रहता है जिससे सभी अंग दूर करने का प्रयास करते है अंगों की इस क्षमता में शरीर मे शरीर के सामान्य स्थिति से इतर होने वाले परिवर्तनों को कारण अंगों की कार्य क्षमता भी घट जाती हैंइस चिकित्सा पद्धति द्वारा प्रभावित अंग की कार्य क्षमता को बढ़ाकर पुनः सामान्य कर दिया जाता हैं जिससे वह अंग अन्य अंगों के सहयोग से सामंजस्य विठा कर सह धर्मिता के आधार पर शरीर को सामान्य स्थिति में ला देता है इसी प्रकार यह चिकित्सा विज्ञान केवल रोग का उपचार न करके रोग होने के कारण का उपचार हुए ब्यक्ति को स्वस्थ्य बनाती हैं । इन ओषधियो को सरल बनाने के लिए इस चिकित्सा विज्ञान में मूल औषधियों का टेबलेट, सिरप , क्रीम, तेल , कैप्सूल , स्प्रे ,तथा क्रीम के रूप में उपयोग किया जाता हैं ।
इस पद्धति में औषधि का उपयोग अल्प मात्रा में किया जाता हैं तथा ओषधि कृतिम रूप से तैयार किये गए रासायनिक योगिक नही है वस्तुतः पौधों के योगिक एंजाइम स है जो इलेक्ट्रो होम्योपैथी दवाओं में उन्हें विशेष गुण देते है ।कहने का तात्पर्य यह है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी अन्य प्रणालियों जैसे एलोपैथी, होम्योपैथी आयुर्वेद, यूनानी, योग, और प्राकृतिक चिकित्सा की तरह की एक संपूर्ण प्रणाली है, यह चिकित्सा पद्धति के वैज्ञानिक प्रणाली के लिए आवश्यक सभी मापदंड रखती है।यह किसी भी बीमारी में लागू सभी प्रकार के उपचार को कवर कर सकता है और लगभग ठीक कर सकता है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी साइंसिफक रिसर्च टीम के मेंबर डॉक्टर सुरिंदर पाण्डेय कहते हैं कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान सरकार द्वारा चिकित्सा की अन्य मान्यता प्राप्त प्रणाली की तरह अपने स्वयं के व्यक्तिगत दर्शन, फार्मेसी, फार्माकोपिया और मटेरिया मेडिका आदि के साथ उपचार की एक वैज्ञानिक प्रणाली है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी सरकार और समाज को नशीली दवाओं की दवा पर कार्रवाई करने में मदद कर सकता है और। अन्य भयानक बीमारी।यह बहुउद्देशीय स्वास्थ्य योजना और राष्ट्र के परिवार कल्याण कार्यक्रम में प्रमुख भाग ले सकता है।यह पद्धति कम खर्च का है और आसानी से सस्ती और उपचार की जटिलता से मुक्त है और सस्ता है और कार्रवाई में तेज है।यह चिकित्सा विज्ञान समग्र उपचार में भाग ले सकता है और किसी व्यक्ति को उसे शारीरिक रूप से मजबूत और आध्यात्मिकता विकसित करने में मदद कर सकता है।
मिली जानकारी के मुताबिक एक समय इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा के जनक काउंट सीजर मैटी की दवाएं लेने के लिए इतने मरीज आते थे कि उन्हें कंट्रोल करने के लिए आर्मी का सहारा लेना पड़ता था। बता दें जब1869 में पोप पाइस IX ने उन्हें सेंट टेरेसा अस्पताल, रोम में इलाज करने की अनुमति दी। वहां मरीजों की इतनी संख्या आती थी कि उन्हें नियंत्रित करने कि लिए सेना का सहारा लेना पड़ता था। मैटी का उद्देश्य था कि सभी को खुद का डॉक्टर बनाया जाए जिससे लोग कम से कम बीमार पड़ें और बीमारियों का इलाज भी खुद से प्राकृतिक तरीकों से कर सकें।थ्योडर क्रॉस मैटी के सबसे करीबी शिष्य थे। मैटी के बाद उन्होंने इस पद्धति को आगे बढ़ाया और नई ऊंचाई दी। वर्तमान में इन दवाइयों को क्रॉस स्पैजिरिक मेडिसिन के नाम से जाना जाता है।
इलेक्ट्रो होमियोपैथी एक ऐसी चिकित्सा पद्धति हैं,जिसने चिकित्सा जगत में एक अविश्वसनीय क्रांति पैदा कर दी हैं। कारण की वर्तमान में ज्यादातर रोगी भिन्न भिन्न प्रकार की दवाइयां खा कर परेशान हो रहें है,और उन्हें एक बीमारी के बदले दूसरी बीमारी उपहार में मिल रही हैं तथा प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में इलेक्ट्रो होमियोपैथी हानिरहित होने के साथ-साथ तत्काल प्रभाव शाली हैं।
इस विधा के शिक्षा,प्रचार-प्रसार में जुटे सीसीएम इलेक्ट्रो होमियोपैथिक मेडिकल इंस्टीट्यूट , चंदसर नगर, बठिंडा के एमडी डॉ. प्रो हरविंदर सिंह स्टेट प्रेसिडेंट, इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने औपचारिक मुलाकात में बताया कि इलेक्ट्रो होमियोपैथी एक स्वतंत्र व सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति हैं जो विश्व के अनेक देशों में विकल्प के रूप में अपनाई जा रही हैं,यह मूलतः इटली की पद्धति हैं जिसका आविष्कार सन 1865 में डॉ काउंट सीजर मैटी ने किया, डॉ मैटी ने इस पद्धति के नाम में तीन शब्दों का प्रयोग किया जिसमें “इलेक्ट्रो” शब्द का अर्थ त्वरित या बिजली से लिया गया जो वनस्पति विद्युतीय शक्ति को तथा दवा की कार्य प्रणाली को इंगित करता हैं। “होमियो” शब्द शरीर की संतुलनावस्था अर्थात ‘होमियोस्टेटिस’ पर केंद्रित है और “पैथी” शब्द चिकित्सा विज्ञान की ओर इंगित करता हैं। अतः इलेक्ट्रो होमियोपैथी वह पद्धति है जिसमे वनस्पतीय औषधियों की तीब्र कार्य प्रणाली से शरीर के रोगों ठीक करने की अद्दभुत क्षमता हैं।
ईएचफ के डॉक्टर ऋतेश श्रीवास्तव, बठिंडा कहते हैं, चूंकि मानव शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है अतः पंचतत्व के समान गुण धर्म वाली 114 वनस्पतियो को ही इलेक्ट्रो होमियोपैथी की दवा निर्माण में शामिल किया गया हैं। जिन्हें शरीर के ऑर्गनवाइज नौ वर्गों में व्यवस्थित किया गया हैं। कारण कि मानव शरीर में फंग्सनल सिस्टम नौ ही हैं। इस विधा में रोग की चिकित्सा नही अपितु अंगों की चिकित्सा की जाती हैं। क्योंकि शरीर के अंगों की क्रिया बढ़ने या घटने से ही कोई न कोई रोग उत्पन्न होते हैं।इस प्रकार इलेक्ट्रो होमियोपैथी की औषधिया आधार,संरचना और सिद्धांत के अनुसार मानव शरीर का दूषित रक्त व लसिका को शुद्ध कर रोग प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत करते हुये अंगों की क्रिया को ठीक करते हुये रोग को जड़ से समाप्त करती हैं यह सरल,सस्ती,हानिरहित व रोगों पर तत्काल प्रभाव दिखाने वाली विधा है जिसमे गंभीर से गंभीर रोगों का उपचार आसानी से संभव हो रहा है।
ज्ञात हो कि सांसद सदस्य लोकसभा कमलकुंज माधवनगर महाराष्ट्र सुनील वा मेढ़े को सम्बोधित पत्र में स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विज्ञान और प्रद्योगिकी व पृथ्वी विज्ञान मंत्री भारत सरकार डॉ. हर्ष वर्धन ने अपने पत्र क्रमांक एफ डी एस 2005183/एच एफ एम /2020 दिनांक 22 दिसबर 2020 को कहा कि इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली की मान्यता देने तथा अंतर विभागीय समिति (आई डी सी) द्वारा फरवरी 2017 से की गई कार्यवाही का ब्यौरा देने पर कहा था कि वह इस मामले को दिखवा रहें हैं। और शीघ्र इस सम्बंध में सूचित करेंगे । यह कि आई.डी.सी द्वारा इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान के जनक डॉ. काउंट सीजर मैटी के जन्मदिवस जो विश्व इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सक दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, पर मान्यता सम्बन्धी महत्वपूर्ण मीटिंग का आयोजन करना व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा त्वरित कार्यवाही किया जाना जिसकी वजह से मोदी सरकार जानी जाती हैं, पर भारत के समस्त इलेक्ट्रोहोम्योपैथी डाक्टरों में हर्ष का माहौल है ।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाउंडेशन (ईएचएफ) के अध्यक्ष डॉ. पी.एस पांडे ने कहा कि भारत जैसे विशाल देश में चिकित्सा पद्धति की सुविधा और मनुष्य जीवन के लिए चिकित्सा पद्धति की आवश्यकता धीरे धीरे बढ़ती जा रही हैं हमारे देश में वर्तमान में एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, और यूनानी ये चार चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित है इतने बड़े देश हमारी जनसंख्या का बहुत बड़ा चिकित्सा से वंचित हैं जरूरत इस बात की इलेक्ट्रोहोम्योपैथी जो पेड़ पौधों पर आधारित सस्ती से सस्ती चिकित्सा पद्धति अपने देश मे लागू करे जिससे जन साधारण भी बिना बाधा के लाभ उठा सके ।इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाउंडेशन (ईएचएफ) पंजाब की महासचिव डॉक्टर वरिंदर कौर ने कहा कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान के जनक डॉ काउंट सीजर मैटी ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान विश्व को समर्पित करते हुये कहा कि मेरा विश्वास है की विश्व मे यही पहली और अंतिम चिकित्सा पद्धति होगी जो पूर्ण रूप से औषधीय पेड़ पौधों पर पर ही आश्रित है और होनी भी चाहिए।क्योंकि हमारा भोजन पेड़ पौधे ही तो है इसलिए रोग की चिकित्सा भी हमे औषधीय पेड़ पौधों में ही खोजनी हैं तभी हम हमेशा अपने को निरोग और स्वस्थ्य रख सकते हैं।
प्रस्तुती- डॉ. प्रो. हरविंदर सिंह 9041222271, 8837878890
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