चंडीगढ़। किसान आंदोलन के दौरान पहली बार संयुक्त मोर्चा की बैठक में किसानों में फूट नजर आई। रविवार को मीटिंग में हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी पर आंदोलन को राजनीति का अड्डा बनाने, कांग्रेस समेत राज नेताओं को बुलाने व दिल्ली में सक्रिय हरियाणा के एक कांग्रेस नेता से आंदोलन के नाम पर करीब 10 करोड़ रुपए लेने के गंभीर आरोप लगे।आरोप था कि वह कांग्रेसी टिकट के बदले हरियाणा सरकार को गिराने की डील भी कर रहे हैं। चढू़नी ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। बैठक की अध्यक्षता कर रहे किसान नेता शिव कुमार कक्का ने बताया कि बैठक में मोर्चा के सदस्य उन्हें तुरंत मोर्चे से निकालना चाहते थे। लेकिन आरोपों की जांच को 5 सदस्यों की कमेटी बनाई गई जो 20 जनवरी को रिपोर्ट देगी। उसी आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
Q. क्या आप पर कोई दबाव था?
-नहीं। न तो विदेशी संगठनों या संस्थाओं का और न ही सत्ता पक्ष का दबाव था। न ही मुझे किसी से धमकी मिली है, जैसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं।
Q. कमेटी से इस्तीफा देने का फैसला क्यों किया?
-जब किसान कमेटी से बात नहीं करना चाहते, मैं इनकी आवाज रिपोर्ट में शामिल नहीं कर सकता तो सदस्य बने रहने का हक नहीं।
Q. फैसला लेने में कोई दिक्कत?
-मैंने 48 घंटे तक लगातार विचार किया कि क्या मैं किसानों की आवाज उठा पाऊंगा, तो अंतर्मन से आवाज आई यह संभव नहीं। मैंने चीफ जस्टिस से बात की और 15 मिनट में ही इस्तीफा दे दिया।
Q. किसान आंदोलन को लेकर आपका क्या दृष्टिकोण है?
-निजी हितों के लिए किसान सड़कों पर नहीं उतरता। किसानों की मांगें जायज हैं। केंद्र को संजीदगी से मांगों का हल निकालना चाहिए। मैं कानूनों के पक्ष में नहीं हूं।
Q. किसानों की बड़ी दिक्कतें क्या?
-किसानों की आमदन पर टैक्स की मार है। मौसम की मार भी झेलते हैं। फसलों के दाम जैसी समस्याओं पर केंद्र को काम करने की जरूरत है। मौजूदा नीतियों में एेसा दिखता नहीं।
Q. क्या आप पर कोई दबाव था?
-नहीं। न तो विदेशी संगठनों या संस्थाओं का और न ही सत्ता पक्ष का दबाव था। न ही मुझे किसी से धमकी मिली है, जैसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं।
Q. कमेटी से इस्तीफा देने का फैसला क्यों किया?
-जब किसान कमेटी से बात नहीं करना चाहते, मैं इनकी आवाज रिपोर्ट में शामिल नहीं कर सकता तो सदस्य बने रहने का हक नहीं।
Q. फैसला लेने में कोई दिक्कत?
-मैंने 48 घंटे तक लगातार विचार किया कि क्या मैं किसानों की आवाज उठा पाऊंगा, तो अंतर्मन से आवाज आई यह संभव नहीं। मैंने चीफ जस्टिस से बात की और 15 मिनट में ही इस्तीफा दे दिया।
Q. किसान आंदोलन को लेकर आपका क्या दृष्टिकोण है?
-निजी हितों के लिए किसान सड़कों पर नहीं उतरता। किसानों की मांगें जायज हैं। केंद्र को संजीदगी से मांगों का हल निकालना चाहिए। मैं कानूनों के पक्ष में नहीं हूं।
Q. किसानों की बड़ी दिक्कतें क्या?
-किसानों की आमदन पर टैक्स की मार है। मौसम की मार भी झेलते हैं। फसलों के दाम जैसी समस्याओं पर केंद्र को काम करने की जरूरत है। मौजूदा नीतियों में एेसा दिखता नहीं।
Q. क्या आप पर कोई दबाव था?
-नहीं। न तो विदेशी संगठनों या संस्थाओं का और न ही सत्ता पक्ष का दबाव था। न ही मुझे किसी से धमकी मिली है, जैसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं।
Q. कमेटी से इस्तीफा देने का फैसला क्यों किया?
-जब किसान कमेटी से बात नहीं करना चाहते, मैं इनकी आवाज रिपोर्ट में शामिल नहीं कर सकता तो सदस्य बने रहने का हक नहीं।
Q. फैसला लेने में कोई दिक्कत?
-मैंने 48 घंटे तक लगातार विचार किया कि क्या मैं किसानों की आवाज उठा पाऊंगा, तो अंतर्मन से आवाज आई यह संभव नहीं। मैंने चीफ जस्टिस से बात की और 15 मिनट में ही इस्तीफा दे दिया।
Q. किसान आंदोलन को लेकर आपका क्या दृष्टिकोण है?
-निजी हितों के लिए किसान सड़कों पर नहीं उतरता। किसानों की मांगें जायज हैं। केंद्र को संजीदगी से मांगों का हल निकालना चाहिए। मैं कानूनों के पक्ष में नहीं हूं।
Q. किसानों की बड़ी दिक्कतें क्या?
-किसानों की आमदन पर टैक्स की मार है। मौसम की मार भी झेलते हैं। फसलों के दाम जैसी समस्याओं पर केंद्र को काम करने की जरूरत है। मौजूदा नीतियों में एेसा दिखता नहीं।
जब मैं किसानों की बात ही नहीं रख सकता तो कमेटी में बने रहने का हक नहीं
सुखबीर सिंह बाजवा | चंडीगढ़. कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके भूपिंदर सिंह मान ने जिस तरह कमेटी छोड़ी, उनके इस्तीफे को लेकर धमकियां मिलने समेत कई कयास लगाए जाने लगें। दैनिक भास्कर ने इस्तीफे की वजहों व किसान आंदोलन को लेकर उनके विचारों को जाना
इधर, किसान संगठन बोले- आंदाेलन से जुड़े लाेग एनआईईए के सामने पेश नहीं हाेंगे
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा टेरर फंडिंग की जांच में आंदोलन समर्थकों को जारी समन से खफा किसान संगठनाें ने एलान किया कि उनसे जुड़ा काेई नेता या कार्यकर्ता एनआईए के सामने पेश नहीं हाेगा। मंगलवार काे केंद्र के बीच 11वें दाैर की बातचीत से पहले किसान नेता राकेश टिकैत ने मई-2024 तक आंदाेलन में डटे रहने का एलान किया तो वहीं कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने भी पुराना स्टैंड दोहराते हुए कहा, “कानून वापसी के अलावा क्या विकल्प हो सकते हैं।’ उधर किसानाें ने कहा ट्रैक्टर मार्च दिल्ली के आउटर रिंग राेड पर ही निकाला जाएगा।
उधर, सुप्रीम कोर्ट किसान आंदाेलन पर साेमवार काे फिर सुनवाई करेगी। ट्रैक्टर मार्च रुकवाने के लिए भी केंद्र ने याचिका दायर की है। सीजेआई एसए बाेबडे इस पर सुनवाई करेंगे। कोर्ट ने किसान संगठनाें सहित संबंधित पक्षाें काे नोटिस भी जारी किया है।