- 6 नगर निगमों व 78 नगर काउंसिल पर कांग्रेस को मिला बहुमत, मोगा में भी सबसे बड़ी पार्टी
- 5 नगर काउंसिल पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा अकाली दल
- किसानों के विरोध की वजह से होशियारपुर, पठानकोट व बटाला में BJP चंद सीटों पर सिमटी
चंडीगढ़। पंजाब में होने वाले अगले साल विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल माने जा रहे निकाय चुनाव परिणाम बुधवार को आ गए। इसमें कांग्रेस को सत्ता का फायदा मिला। कांग्रेस ने 8 नगर निगमों में से 6 में बहुमत हासिल कर दिया। जबकि 50 वार्ड वाले मोगा 20 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वहीं, मोहाली का परिणाम कल आएगा।
नगर काउंसिल और पंचायतों में भी 78 पर जीत हासिल कर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा। इस चुनाव की सबसे बड़ी बात यह रही कि भाजपा से गठजोड़ तोड़ने के बाद भी अकाली दल (SAD) 5 नगर परिषद में जीत हासिल करने वाली दूसरी पार्टी बन गई। हालांकि, अकाली दल ने अपना गढ़ बठिंडा खो दिया, जहां पिछले दो साल से लगातार निगम में उनका ही मेयर था। अब 53 साल बाद यहां कांग्रेस मेयर बनेगा। किसान आंदोलन की वजह से पंजाब में विरोध झेल रही भाजपा पठानकोट, होशियारपुर और बटाला जैसे अपने गढ़ खो दिए।
सबसे बड़ा झटका अगले साल पंजाब में सरकार बनाने का दावा ठोकने वाली AAP को लगा है, जिनके दिल्ली मॉडल को पंजाब के लोगों ने इन चुनावों में पूरी तरह से नकारते हुए कहीं भी बहुमत के काबिल नहीं बनाया।
किसान आंदोलन: भाजपा का विरोध लेकिन किसी एक दल को समर्थन नहीं
पंजाब निकाय चुनावों में किसान आंदोलन राजनीतिक असर को लेकर अब चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं। कृषि सुधार कानूनों के विरोध में किसानों ने पूरे पंजाब में BJP का बहिष्कार किया था। इसका बड़ा असर भी दिखा लेकिन भाजपा अपने गढ़ पठानकोट, होशियारपुर व बटाला में कुछ सीटें पाने में जरूर कामयाब रही। कांग्रेस व अकाली दल के साथ AAP ने खुलकर किसानों के संघर्ष का समर्थन किया लेकिन फायदा किसी एक को नहीं मिला। कांग्रेस जरूर ज्यादा सीटें जीती हैं लेकिन इसके लिए उनका पंजाब में सरकार होना अहम कारण माना जा रहा है। अकाली दल ने किसान हित की बात कह केंद्र में मंत्री पद छोड़ने के बाद गठजोड़ तोड़ा व 5 बार CM रहे प्रकाश सिंह बादल ने पद्म विभूषण भी लौटा दिया लेकिन इन चुनावों में उन्हें ज्यादा फायदा नहीं मिला। आप किसानों के साथ दिल्ली के विकास मॉडल को लेकर चुनाव में आई थी लेकिन फिसड्डी साबित हुई।
अकाली दल को मिला वापसी का रास्ता
पंजाब निकाय चुनाव में शिराेमणि अकाली दल को बहुत कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन पिछले विस चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने व फिर भाजपा से गठजोड़ टूटने के बाद वो राजनीतिक हाशिए पर जाते नजर आ रहे थे। अब निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी की हार से जहां अकाली दल दूसरे नंबर पर आई है। वहीं, कांग्रेस विधायक हरजोत कमल की पत्नी व कैबिनेट मंत्री चरणजीत चन्नी के भाई के हारने से अकाली दल को राजनीतिक तौर पर इसे भुनाने का मौका मिल गया है।
...लेकिन विस चुनाव से अलग निकाय चुनाव
पंजाब निकाय चुनावों को भले ही अगले विस चुनावों का ट्रेलर या सेमीफाइनल कहा जा रहा हो लेकिन इनका मूल अंतर भी समझना होगा। विस चुनाव जहां पार्टी की छवि व नीति पर लड़े जाते हैं वहीं निकाय चुनाव ज्यादातर उम्मीदवार व मतदाता के आपसी संबंध पर निर्भर हो जाते हैं। इन चुनावों में लोग पार्टीबाजी से ऊपर उठकर मतदान करते हैं। जीत के लिहाज से कांग्रेस जरूर इन्हें भुना रही है लेकिन सच्चाई यह भी है कि इन चुनावों में कई उम्मीदवारों ने पार्टी का चुनाव चिन्ह छोड़ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा।
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