चंडीगढ़। पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रही। इसके साथ ही पार्टी ने राज्य की सियासत के लिए अपने संकेत भी दे दिए। शिरोमणि अकाली दल (SAD) से गठबंधन टूटने और किसान विरोध के बीच भाजपा ने आठ नगर निगम के चुनाव में 20 और 109 नगर काउंसिल में 29 सीटों पर हासिल पर जीत हासिल की। शिअद से गठबंधन टूटने के बाद उसने यह पहला चुनाव लड़ा। भारी विरोध और हमलों के बावजूद वह इस चुनाव में 60 फीसद सीटोें पर उम्मीदवार खड़े करने में सफल रही।
नगर निगम में 20 और 109 नगर काउंसिल में 29 सीटों पर हासिल की जीत
भाजपा इस बात को लेकर राहत महसूस कर रही है कि राज्य में कृषि कानून बिलों को लेकर जिस प्रकार से उसका विरोध हो रहा था, उस स्थिति में भी भाजपा का खाता खुलना ही बड़ी बात है। वहीं, पार्टी की चिंता यह है कि मुकेरियां, होशियारपुर, दसुआ, पठानकोट जैसे क्षेत्र जोकि भाजपा के मजबूत स्तंभ माने जाते हैं। वहां पर भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।
अश्वनी शर्मा बोले- भाजपा के लिए बड़ी चुनौती थे ये चुनाव, हमें रोकने को कांग्रेस ने पूरा दम लगाया
भाजपा के प्रदेश प्रधान अश्वनी शर्मा कहते है, निश्चित रूप से निकाय चुनाव में भाजपा के लिए खासी चुनौती भरा था। सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए पूरा जोर लगा रखा था। भाजपा पहली बार अकेले दम पर चुनाव मैदान में थी। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भाजपा अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रही।
अहम पहलू यह है कि कृषि कानूनों को लेकर पूरे पंजाब में भाजपा नेताओं पर हमले हुए। यहां तक की भाजपा के प्रदेश प्रधान अश्वनी शर्मा, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री विजय सांपला समेत वरिष्ठ नेताओं पर हमले हुए। किसान व किसान समर्थकों ने भाजपा के प्रचार अभियान को रोका, वहीं कई जगह पर तो भाजपा के दफ्तर को भी नहीं खुलने दिया। भाजपा के लिए परेशानी वाली बात यह भी थी कि कृषि कानूनों को लेकर लोगों में इतना गुस्सा देखने को मिला कि भाजपा के उम्मीदवारों को लोगों ने अपने घरों से भी भगा दिया। तमाम विरोध के कारण भाजपा को सभी काउंसिलों में उम्मीदवारों को खड़ा करना भी मुश्किल हो गया था।
भाजपा के महासचिव सुभाष शर्मा कहते हैं कि चुनाव परिणाम आज भले ही हमारे लिए प्रतिकूल हो लेकिन एक बात तय है कि पंजाब में विपक्ष के लिए स्पेस अब भी खाली है। शिरोमणि अकाली दल का प्रदर्शन भी उतना प्रभावशाली नहीं रहा। इसके साथ ही पंजाब में खुद को राजनीतिक विकल्प बताने वाली आम आदमी पार्टी महज 57 सीटें ही हासिल कर सकी। आप का इस चुनाव में कहीं कोई विरोध नहीं था और वह पंजाब विधान सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी भी है।
सुभाष शर्मा कहते है, इस चुनाव में सबसे ज्यादा विरोध भाजपा को झेलना पड़ा। भाजपा के मुकाबले अकाली दल का इतना विरोध नहीं था। वहीं, कांग्रेस पार्टी का पूरा फोकस भाजपा को ही रोकने पर लगा हुआ था। इसके बावजूद भाजपा अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रही है।
वहीं, भाजपा यह मान रही है कि किसान आंदोलन के खत्म होने के बाद जब स्थितियां सामान्य होनी शुरू होंगी तो भाजपा को अपना विस्तार करने का पूरा मौका मिलेगा। करीब ढ़ाई दशक के बाद यह पहला मौका था जब भाजपा अकेले दम पर चुनाव लड़ी थी। गठबंधन में रहते हुए भाजपा महज नगर निगम व नगर काउंसिल की 33 फीसदी सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी। इसी प्रकार विधान सभा की 117 सीटों में से मात्र 23 सीटें भाजपा के खाते में थी। बाकी की सीटों पर शिरोमणि अकाली दल चुनाव लड़ती थी।
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