बठिंडा. बठिंडा ज़िलो के गांव विर्क कला के सरपंच के एक अनोखे फरमान रूपी नोटिस की वजह से एक गरीब परिवार अपना घर छोड़ सीमेंट की चादरों की छत के नीचे पिछले एक साल से रातें काटने को मजबूर हो रहा था। मामले में इंसाफ के लिए भटक रहे इस परिवार को आखिरकार पंजाब राज्य अनुसूचित जाति कमिश्न चंडीगढ़ के हस्तक्षेप के बाद किरण दिखाई देने लगी है।
आयोग ने अपनी तल्ख टिप्पणी के बाद बठिंडा पुलिस को मामले में आरोपी ग्राम पंचायत के खिलाफ केस दर्ज करने का फरमान सुनवाया। इसके बाद बठिंडा सदर पुलिस ने विर्ककलां गांव की पंचायत पर अमानवीय फरमान सुनवाने पर एससी-एसटी एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज किया है।
मामला एक साल पहले सामने आया था जब बठिंडा की विर्ककला गांव की पंचायत ने चोरी के एक केस में गांव के एक व्यक्ति राम सिंह को गैरकानूनी तौर पर गांव से बाहर निकाल दिया था इसके बाद वह गांव से बाहर एक टीन की छत्त के नीचे बसर करने पर मजबूर हो रहे थे। यू.पी, बिहार और हरियाणा की खाप पंचायतों की तरफ से बीते समय दौरान मानवीय अधिकारों विरुद्ध लिए फ़ैसले अक्सर चर्चा में रहे हैं और मानवीय अधिकार संगठनों ने उन फ़ैसलों का विरोध भी किया। इसी तरह की घटना बठिंडा के गाँव विर्क कलों में घटित हुई थी। राम सिंह नाम का व्यक्ति करीब 10 साल पहले श्री मुक्तसर साहब के गाँव जवाहरेवाला से विर्क कलां आया था। वहां जमीन जोतने का काम लेकर करता था और अपना मकान भी बना लिया। राम सिंह की बेटी बी.सी.ए. कर रही है और बेटा 12वीं श्रेणी में है। राम सिंह के अनुसार वह गांव में बने एक डेरे में सेवा भी करता रहा और बीते साल 10 -11 फरवरी की बीच की रात को गांव के डेरे में गांव की तरफ से रखा सांढ (भैंसा) चोरी हो गया। गांव वासियों ने सी.सी.टी.वी. फुटेज निकलवाई तो डेरे में दो व्यक्ति आते नज़र आए, जिन में से एक व्यक्ति लंगड़ा कर चल रहा था, गांव वासियों के अनुसार यह व्यक्ति राम सिंह था। राम सिंह इस बात से लगातार इंकार करता रहा कि वह इस चोरी में शामिल नहीं है। गांव वासियों ने राम सिंह और दो अनजाने लोगों पर मामला दर्ज करवा दिया और राम सिंह को कुछ दिन जेल भी जाना पड़ा। चाहे राम सिंह की कुछ दिन बाद ज़मानत हो गई परन्तु पुलिस को न तो सांढ मिला और न ही दोनों अनजाने लोगों के बारे में किसी तरह की जानकारी। परन्तु इस सब के बीच जो कुछ राम सिंह के परिवार के साथ बीता वह मानवीय अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। 29 फरवरी को गाँव का चौकीदार राम सिंह के घर एक नोटिस ले कर पहुंचा, जब राम सिंह जेल में था और घर में राम सिंह की पत्नी, बेटी और बेटा थे। नोटिस में लिखा कि राम सिंह का चाल चलन सही नहीं, इसलिए 6 मार्च 2020 से पहले पूरा परिवार गांव छोड़ दे और यदि परिवार गांव नहीं छोड़ेगा तो उनका समान गांव से बाहर रख दिया जायेगा। सारा परिवार 5 मार्च को ही घर छोड़ कर गांव जवाहरेवाला में आकर रहने लगा। राम सिंह जमानत पर बाहर आया और पंचायत से पूछा कि पहली बात तो उसने चोरी नहीं की और फिर भी जब उस पर मामला दर्ज करवा दिया गया वह जेल भी जा आया इसके बाद परिवार को ऐसा नोटिस जिसमें गांव से बाहर निकालने का अधिकार सरपंच को किसने दिया है। राम सिंह अब तक गांव जवाहरेवाला में बनाए एक अस्थायी कमरे में रह रहा है जिस की सीमेंट चादर की छत में से बरसाती मौसम में अक्सर पानी टपकता रहता है।राम सिंह की बी.सी.ए. कर रही बेटी नवजोत कौर अनुसार वह दिन उनको आज भी याद है जब गांव का चौकीदार घर आया और सरपंच की तरफ से दिए एक नोटिस जिसपर उनको गांव छोडने के लिए लिखा गया था पर दस्तखत करने को कहा था। उन्होंने दस्तखत नहीं किए परन्तु नोटिस देख हके -बके रह गए। नवजोत अनुसार उन्होंने डरते निश्चित समय से पहले ही अपना घर छोड़ दिया। नवजोत कहती है कि उसकी बी.सी.ए. की पढ़ाई बीच में रह गई और आज वह अपना बढ़िया घर छोड़ कर इस जवाहरेवाला गाँव में कमरा डाल कर रहने को मजबूर हैं। उधर राम सिंह के अनुसार उसको जेल में जानकारी मिली थी कि उसके परिवार के साथ ऐसा हुआ हैं। वह गाँव जवाहरेवाला आए पहले तंबू लगा कर रहने लगे और फिर यह कमरा डाला। राम सिंह कहता कि सरपंच सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के साथ सबंधित है और तो ही उसके शिकायतें देने के बावजूद भी सरपंच पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी। लेकिन अब एससी-एसटी कमिश्न की तरफ से मामले में कारर्वाई करने के निर्देश पुलिस को देने के बाद उन्हें इंसाफ की उम्मीद होने लगी है।
दूसरी तरफ इस मामले में सरपंच गुरचरन सिंह का कहा है कि उन्होंने यह नोटिस निकाला था परन्तु सरपंच अनुसार पहले ग्राम सभा में प्रस्ताव डाला गया, जिस पर गांव वासियों के भी दस्तखत थे और फिर वह नोटिस उन्होंने निकाला परन्तु सरपंच के पास इस बात का जवाब नहीं कि ऐसा नोटिस निकालने का उसके पास अधिकार है या नहीं।
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