कोचिंग का निर्धारित अवधि में बिल भी जमा करवाने के बावजूद शिक्षा विभाग में
कोई सुनवाई नहीं
चंडीगढ़ /बठिंडा. पंजाब सरकार एक तरफ शिक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा कर रही है वही
स्कूलों को अपग्रेडशन करने व इमारतों की मियार में सुधार के लिए भारी भरकम फंड
खर्च करने का दावा किया जा रहा है। वही छात्रों को बेहतर साइंस एजुकेशन देने के
लिए शुरू किए विभिन्न प्रोजेक्टों पर फंड देने में आनाकानी की जा रही है। इस नीति
से राज्य में बेहतर इंजीनियर,
डाक्टर व साइटिस्ट बनाने के लिए बेहतर कोचिंग
व शिक्षा देने की योजना पर विराम लगने का अंदेशा बन रहा है।
पंजाब प्रदेश के मेरिटोरियस स्कूल के बच्चों को कांपीटेटिव एग्जाम की तैयारी
करवाने वाले इंस्टीट्यूशंस को एक साल बाद भी अदायगी नहीं हुई है। एक मेरिटोरियस
स्कूल के बच्चों को पढ़ाने की एवज में 10
से 15
लाख रुपए तिमाही फीस के अलावा टेंडर राशि की
सिक्योरिटी की एवज में भी 10
लाख रुपए की रकम की अदायगी अटक गई है। लगभग 25 लाख रुपए की
अदायगी करवाने के लिए इंस्टीट्यूशंस वेंडर चंडीगढ़ मुख्यालय में 1 साल से चक्कर
लगाकर 20 से 25 हजार रुपए खर्च चुके हैं लेकिन इन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा। टेंडर
के नियमानुसार कोचिंग का निर्धारित अवधि में बिल भी जमा करवाया, इसके बावजूद
शिक्षा विभाग में कोई सुनवाई नहीं हो रही। वहीं दो साल की टेंडरिंग में कोरोना काल
का अवरोध लगने की वजह से अगले सेशन के लिए रिलेक्सेशन का भी असमंजस बना हुआ है।
हर इंस्टीट्यूट
की कोचिंग फीस व सिक्योरिटी का 25
लाख रुपया विभाग के पास अटका
शिक्षा विभाग की ओर से सोसायटी के अधीन प्रदेश के 10 मेरिटोरियस
स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों काे मेडिकल व इंजीनियरिंग एंट्रेस एग्जाम की तैयारी
करवाई जा रही है। प्रदेश में विभिन्न प्राइवेट इंस्टीट्यूट को टेंडर के जरिए
मेरिटोरियस स्कूलों में कांपीटेटिव एग्जाम की कोचिंग का जिम्मा सौंपा गया। टेंडर
की शर्त के मुताबिक 2019-20
व 2020-21
के लिए संबंधित इंस्टीट्यूट वेंडर को कोचिंग
का काम अलॉट हुआ। मार्च में सेशन मुकम्मल होने तक प्राइवेट इंस्टीट्यूट की ओर से
कोचिंग दी गई जबकि 22
मार्च 2020
में लॉकडाउन लगने से काम रुका, तब तक सिलेबस
कवर कर लिया गया था। इंस्टीट्यूशंस की ओर से हर तिमाही पर अपने बिल संबंधित स्कूल
प्रिंसिपल के रेफरेंस से भिजवाए गए,
लेकिन दो तिमाही की लाखों रुपए की रकम
इंस्टीट्यूट को अदा नहीं हुई। इंस्टीट्यूशंस की ओर से शिक्षा विभाग के खिलाफ खुलकर
बोलने पर किरकिरी से बचने को हाल ही में सितंबर से दिसंबर 2020 तक की रकम रिलीज
की और उसमें भी 10 से 20 प्रतिशत की कटौती की गई है जबकि जनवरी से मार्च तक की तीन महीने की रकम जारी
ही नहीं की।
संचालकों का
दूसरे साल के टेंडर के रेगुलर रहने का असमंजस
इंस्टीट्यूट की ओर से 2019-20 सेशन में 11वीं और 12वीं के विद्यार्थियों को कोचिंग दी जबकि इनका कांट्रेक्ट अगले सेशन 2020-21 के लिए इन्हें अलॉट हुआ था। नियमानुसार दो साल कोचिंग दी जानी थी, लेकिन कोरोना
संक्रमण की वजह से अभी तक मेरिटोरियस स्कूल नहीं खुले और यह सेशन कोचिंग दिए बिना
ही निकल गया। इससे इंस्टीट्यूट वेंडर असमंजस में हैं कि उन्हें टेंडर के
नियमानुसार दो साल की अलॉटमेंट में कोरोना काल में 1 साल नुकसान का
हर्जाना की एवज में अगले सेशन 2021-22
की कोचिंग का जिम्मा मिलेगा अथवा नहीं। उनके
अनुसार प्रोजेक्ट डायरेक्टर और डीजीएसई से कई बार व्यक्तिगत तौर पर मिलकर संपर्क
किया, लेकिन कोई भी अधिकारी उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं दे रहे।
इस मामले में राज्य के वित्त मंंत्री मनप्रीत सिंह बादल का कहना है कि मामला
उनके ध्यान में नहीं था। इस बाबत विभाग से बात की जाएगी। सरकार के पास फंड की कोई
कमी नहीं है। एजुकेशन पर सरकार पूरा ध्यान लगा रही है व जरूरत अनुसार फंड उपलब्ध
करवाए जा रहे हैं। वित्त विभाग की तरफ से फंड को लेकर किसी तरह की दिक्कत नहीं है।
वह इस मामले का जल्द हल निकालेंगे।