बठिंडा : पॉवर हाउॅस रोड़ स्थित गुप्ता अस्पताल से आंखों के रोगों की माहिर डा. पारूल गुप्ता ने एक सेमीनार के दौरान बताया कि आज के दौर में आंखों को होने वाली किसी भी समस्यां को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि मोतियाबिंद बुजुर्गों में नहीं युवाओं को भी अपना शिकार बना रही है। अगर आप किसी बीमारी से ग्रस्त हैं तो उसका असर भी आपके आंखों की रोशनी पर होता है जिससे मोतियाबिंद की समस्यां हो सकती है। इसके साथ ही जिम करने वाले युवाओं में भी मोतियाबिंद की समस्यां उभर रही है। चूूंकि जिम के दौरान युवाओं द्वारा स्टॉयराइड का प्रयोग किया जाता हैं, जिसका प्रभाव सीधा आंखों की झिली पर पड़ता हैं और धीरे-धीरे मोतियाबिंद की शिकायत हो जाती है। वहीं डा. पारूल गुप्ता ने बताया कि यह समस्यां वैल्डिंग करने वाले कर्मियों में बहुत अधिक पाई जाती हैं, वैल्डिंग के दौरान तेज रोशनी भी आंखों को नुक्सान पहुंचाती है।
जिस कारण डा. पारूल उनको खास हिदायत देती हैं कि वे आंखों की सुरक्षा के लिए आंखों कवर कर ही वेल्डिंग का काम करें। डा. पारूल गुप्ता बताती हैं कि हमारी आंख की पुतली के पीछे एक लेंस होता है। पुतली पर पडऩे वाली लाइट को यह लेंस फोकस करता है और रेटिना पर ऑब्जेक्ट की साफ इमेज बनाता है। रेटिना से यह इमेज नर्व्स तक और वहां से दिमाग तक पहुंचती है। आंख की पुतली के पीछे मौजूद यह लेंस पूरी तरह से साफ होता है, ताकि इससे लाइट आसानी से पास हो सके। कभी-कभी इस लेंस पर कुछ धुंधलापन आ जाता है, जिसकी वजह से इससे गुजरने वाला प्रकाश का रास्ता बंद हो जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि पूरी लाइट पास होने पर जो ऑब्जेक्ट इंसान को बिल्कुल साफ दिखाई देता है,अब कम लाइट पास होने की वजह से वही ऑब्जेक्ट धुंधला नजर आने लगता है। लेंस पर होनेवाले इसी धुंधलेपन की स्थिति को मोतियाबिंद कहा जाता है। यह क्लाउडिंग धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और मरीज की नजर पहले से ज्यादा धुंधली होती जाती है।
डा. पारूल ने बताया कि इन कारणों से भी होती हैं मोतियाबिंद की शिकायत
डा. पारूल गुप्ता ने कहा कि डायबटिज़(शूगर) शरीर के दूसरे अंगों जैसे गुर्दे और हृदय की ही अनेक बीमारियों का कारण ही नहीं है बल्कि आंखों पर भी कई प्रकार से इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। मधुमेह के लगभग 80 प्रतिशत रोगियों को जीवन में आंखों की किसी न किसी समस्या का सामना अवश्य करना पड़ता है, आंखों की इन समस्याओं में प्रमुख हैं− डायबेटिक रेटिनोपैथी, मोतियाबिंद तथा काला मोतिया। डायबटिज़ के कारण होने वाली इन बीमारियों से बचने के लिए जरूरी है कि डायबटिज़ के रोगी समय−समय अपनी आंखों की जांच कराते रहें और कोई भी दिक्कत सामने आते ही उसका इलाज छह माह के अंदर करवाना शुरू कर दें। कुछ मरीजों में लैंस में धुंधलापन आ जाता है, उसकी पारदर्शिता खत्म हो जाती है इसे डायबिटिक कैटरैक्ट कहते हैं।
-यूवाइटिस
डा. पारूल कहती हैं कि यूवाइटिस एक प्रकार की सूजन है जो यूवेइआ में होते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें ट्रामा या संक्रमण भी एक हैं। इस बीमारी के कोई भी ज्ञात कारण नहीं है। मोतियाबिंद की समस्या उन लोगों में ज्यादा होती है, जो यूवाइटिस से ग्रस्त होते हैं। यूवाइटिस के मरीजों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। इससे आंखों में धुंधलापन और दर्द रहता है।
-उच्च निकट दृष्टि दोष
डा. पारूल मानती हैं कि जो लोग उच्च निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) से प्रभावित होते हैं उनमें मोतियाबिंद का खतरा कहीं अधिक होता है। डॉक्टर के मुताबिक बचपन में देखन की क्षमता का विकास होता और किशोरावस्था में आंख की लंबाई बढ़ती है लेकिन निकट दृष्टि दोष होने की वजह से यह कुछ ’यादा ही बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में आंख में जानेवाला प्रकाश रेटिना पर केंद्रित नहीं होता। इसी वजह से तस्वीर धुंधली दिखाई देती है लेकिन इस दोष को ऐनक से ठीक कराया जा सकता है।
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