नगर निगम- कुल बजट का 60 फीसदी तक खर्च होता है कर्मियों व दफ्तरी साधनों में, विकास कार्यों के लिए देखना पड़ता है सरकार की सहायता की तरफ
बठिडा. नगर निगम चुनाव संपन्न होने के बाद अब निगम अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन के लिए फंड जुटाने की तरफ नगर निगम का पूरा ध्यान लगने जा रहा है। यही नहीं फऱवरी माह में ही नगर निगम में नए सदन का विधिवत गठन हो जाएगा। नए मेयर के सामने निगम की आर्थिक स्थिति को बेहतर करना सबसे बड़ी चुनौती भी रहने वाली है। इन तमाम हालात में फिलहाल नगर निगम पानी व सीवरेज बिलों के लोगों की तरफ बकाया खड़े करीब 6 करोड़ रुपए के बिलों की वसूली की तरफ ध्यान देने लगा है। यह मुहिम नगर निगम चुनाव से पहले शुरू की गई थी लेकिन राजनीतिक कारणों व चुनाव में किसी तरह के विरोध की संभावना के चलते इसे रोक दिया गया था व अब फिर से इस मुहिम को शुरू किया जा रहा है।
नगर निगम पर है करोड़ों का कर्जा जिसे आज तक नहीं उतारा जा सका
केंद्र और राज्य सरकार समेत सैटलमेंट पॉलिसी से आने वाली करीब 200 करोड़ की अतिरिक्त राशि के सहारे बहुमूल्य योजनाओं के पिछले पांच साल से सपने पूरे करते रहे। इसमें सबसे ज्यादा 125 करोड़ रुपए सालाना सैटलमेंट पॉलिसी के आधार पर अवैध इमारतों, सीएलयू आदि से होने की संभावना हर साल दिखाई जाती रही, जबकि 20 करोड़ रुपए सरकार से पार्किंग प्रोजेक्ट और 50 करोड़ रुपए सालाना अमृत योजना के पहले फेज में आने की उम्मीद पर कुछ काम पूरे किए। वही दूसरी तरफ निगम पर पीआईडीबी के 107 करोड़ रुपए के कर्ज की राशि पूर्व की तरह खड़ी है जिसमें केवल ब्याज का भुगतान कर साल हो रहा है। पिछले दो माह में नगर निगम चुनाव के मद्देनजर शहर में सैकड़ों अवैध इमारतों का निर्माण किया गया। इसमें अधिकतर इमारते व्यवयासिक है जिन्हें रिहायशी नक्शे में पारित करवाने व नियमों को ताक पर रखकर रातों रात बना दिया गया। अब जब चुनाव संपन्न हो गए है तो नगर निगम अन तमाम इमारतों को नोटिस निकालकर फीस भरने की योजना बना रहा है हालांकि इसमें अधिकतर इमारते बनकर तैयार हो चुकी है व इन्हें रैनोवेट करने का काम चल रहा है। अगर निगम इन इमारतों से इमानदारी से फीस की वसूली करता है तो उसे अतिरिक्त आय हो सकती है। सैकड़ों अवैध इमारतें हैं, गिराना संभव नहीं, इन्हें रेगुलर किया जा सकता है। इससे 200 करोड़ की आय निगम को हो सकती है। इस तरह के आय के साधन पैदा कर आर्थिक हालत में सुधार किया जा सकता है।
वही इन टैक्सों की भी नहीं हो रही है इमानदारी से वसूली
पंजाब म्युनिसिपल फंड का करीब 91 करोड़, बिल्डिंग रेगुलाइजेशन का 1.50 करोड़, वाटर सप्लाई सीवरेज का 13.43 करोड़ रुपए सालाना वलूसी के साथ प्रापर्टी टैक्स की वसूली जैसी मदों में लोग टैक्स देने में जहां दिलचस्पी नहीं दिखा रहे वही नगर निगम भी इन फंडों की वसूली में इमानदारी से काम नहीं कर सका है। इसका नतीजा यह है कि हर साल नगर निगम के सालाना बजट में प्रस्तावित राशि पूर्व की तरह खड़ी रहती है व कुल बजट वसूली का ट्रागेट पूरा नहीं होता है जिसका सीधा असर शहर की विकास योजनाओं पर भी दिखाई देता है। नगर निगम ने प्रॉपर्टी टैक्स 11.50 करोड़ रुपए सालाना वसूल करना है। वही बिल्डिंग/सीएलयू/डेवल्पमेंट/ वाटर सप्लाई चार्ज बिल्डिंग चार्ज के करीब 8 करोड़ रुपए बकाया खड़े हैं जबकि निगम की बड़ी आय के साध रहे विज्ञापन कर पर जहां हर साल 2.30 करोड़ रुपए मिलते थे वह भी सरकार व निगम की गलत नीतियों के कारण लगातार कम हो रहा है व विज्ञापन साइटों पर राजनीतिक दलों के विज्ञापन लगे हैं जिसमें निगम को एक पैसे की कमाई नहीं होती है।
फंड की कमी से रुके पड़े हैं कई काम
नगर निगम में फंड की कमी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। शहर में लावारिस जानवरों की समस्या हल करने के लिए नगर निगम हर साल काउ सेस के तौर पर तीन से चार करोड़ की वसूली करता है लेकिन उक्त राशि को सही मैनेजमेंट कर वितरित करने की कमी के कारण समस्या पूर्व की तरह बरकरार है। जानवरों के मरने के बाद उन्हें हड्डारोडी में फैंकने की व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी। सड़कों में घूम रहे जानवरों को पकड़कर गौशाला भेजने की योजना अधर में लटकी पड़ी है। कई इलाकों में सीवरेज समस्या आए दिन बिगड़ रही है जहां हर 10 दिनों बाद सीवरेज जाम होने से गंदा पानी इकट्ठा हो जाता है। इन इलाकों में नई सीवरेज पाइप लाइन निगम अपने स्तर पर फंड की कमी से बिछाने में नाकाम रहा है। शहर में जितने सफाई कर्मियों की जरूरत है उसके मुकाबले ताताद कम है वही नगर निगम में अभी भी 40 फीसदी पद विभिन्न विभागों में खाली पड़े हैं। इन पदों को भरने के लिए निगम के पास फंडों की भारी दिक्कत है। इससे प्रबंधन का काम पूरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
वेतन और पेंशन पर जाते हैं साढ़े छह करोड़
बठिडा नगर निगम के करीब 1000 स्थायी और करीब 550 अस्थायी कर्मचारी हैं। जिन्हें प्रत्येक माह वेतन देने के लिए छह करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इसके अलावा करीब 300 पेंशनर्स हैं। जिन्हें 55 लाख लाख पेंशन के रूप में जाते हैं। निगम की आय की 60 फीसद राशि वेतन देने पर खर्च होती है। यह राशि वाटर, सीवरेज, प्रॉपर्टी टैक्स के अलावा जीएसटी और वैट से इकट्ठा होती है। बीते मार्च व जुलाई में निगम को राज्य सरकार से जीएसटी की राशि प्राप्त हुई व कुछ निगम के पास अपना आमदन भी थी। जिससे जहां पिछले दो महीनों का वेतन दिया गया, वहीं इस माह का भी दिया जा रहा है। लेकिन अगर निगम की आय में वृद्धि न हुई तो आने वाले महीने का वेतन देने के लिए दिक्कतें पैदा हो सकती है क्योंकि अगली जीएसटी की किश्त मार्च व अप्रैल तक मिलने संभावना है।
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