बठिंडा. हमारी रोजाना खाने-पीने की
बहुत सी चीजों में मिलावट पाई जा रही है, जोकि
हमारी सेहत को बहुत हानि पहुंचाती है। यह एक तरह से धीरे-धीरे दी जाने वाले जहर के
सामान ही है, जोकि अंत में व्यक्ति की जान ही ले
लेता है। इसके इलावा शरीर के अंदरूनी अंगों पर भी इसका बहुत ही बुरा असर पड़ता है।
ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में दुकानदार अपने सामान में बहुत ज्यादा मिलावट करते
हैं और लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ भी करते हैं। ऐसी मिलावटी चीजें खाने से पेट से
संबंधित गंभीर बीमारियां अल्सर, ट्यूमर
आदि होने का बहुत ज्यादा खतरा रहता है। इतना ही नहीं सेहत विभाग की फूड टीम हर माह
चेकिग कर विभिन्न खाद्य पदार्थो की सैंपलिग करता है और उन्हें जांच करने के लिए
लैब भेजता है। सैंपल फेल होने पर एक्ट के मुताबिक जुर्माना या कार्रवाई की जाती है,
लेकिन इसके बावजूद भी हर खाने-पीने की चीज में मिलावटखोरी का खेल
चल रहा है। हाल यह है कि दूध और दूध से बने उत्पाद के साथ घरों में रोजाना
इस्तेमाल होने वाली दालों से लेकर मसालों में और देसी घी से लेकर रिफाइंड समेत
अन्य खाद्य पदार्थो में भी जमकर मिलावट की जा रही है। विभाग द्वारा पूर्व एक साल में
की गई सैंपलिग रिपोर्ट में 40 फीसद
चीजें तय मानकों पर खरी नहीं उतर रही है। हर दसवीं चीज में मिलावट हो रही है,
जोकि इंसान के शरीर के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। इसके
चलते आम आदमी खाद्य पदार्थो में हो रही मिलावटखोरी से खासा परेशान है। बाजार में
मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है, जोकि
लोगों के लिए एक चिता का विषय है। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की
जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। ऐसे में भारी भरकम जुर्माना व सजा होने के बाद भी
सेहत विभाग सौ फीसद मिलावटखोरी पर अंकुश लगाने में सफल नहीं हो रहा है। ऐसे में
मिलावटखोर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने में पीछे नहीं हैं।सेहत विभाग की फूड टीम की ढीली कारगुजारी
मिलावट रोकने के लिए सेहत विभाग की फूड टीम को हर माह कम से कम 100
खाद्य पदार्थों के सैंपल भरने होते हैं,
लेकिन पूर्व एक साल माह में बठिडा फूड टीम ने महज 124
की सैंपल भरे, जबकि
कम से कम 1200 सैंपल भरने जरूरी थे,
लेकिन कोरोना महामारी के चलते 9 माह
तक सब कुछ बंद रहने के कारण सैंपल नहीं भरे जा सके है। विभाग की तरफ से पूर्व एक
साल में भरे गए 124 सैंपलों में 15
सैंपल फेल पाए है, जबकि
17 की रिपोर्ट आनी बाकी है। फेल हुए
ज्यादा तरह सैंपल हररोज प्रयोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थो की है। विभाग की यह
रिपोर्ट बताती है कि दूध और दूध से बने पदार्थो में सबसे ज्यादा मिलावटखोरी पाई गई
है।
अब तक दस केसों में हो चुका है 15.56 लाख रुपए का जुर्माना
सेहत विभाग की मानने तो एक जनवरी 2018 से लेकर मार्च 2021 तक
फूड सेफ्टी विभाग की तरफ से विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के सैंपल भर गए थे,
जिनमें में सैंपल फेल हुए। विभाग ने अब तक करीब 82
केसों में 15 लाख
56 हजार रुपए का जुर्माना करवाया है,
जिसमें सबसे बड़ा जुर्माना पांच लाख रुपए वाला है। खाद्य उत्पाद
विनियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने खाद्य पदार्थों
में मिलावट करने वालों को उम्रकैद की सजा और दस लाख रुपये तक का दंड देने का
प्रावधान है। एफएसएसएआई ने 2006 के
खाद्य सुरक्षा और मानक कानून में संशोधन के बाद किया है। ऐसे में उस व्यक्ति पर कम
से कम दस लाख रुपये का जुर्माना लगाया सकता है।
चार घंटे की ट्रेनिग करनी होगी लाजमी
जिला फूड सेफ्टी अफसर डा. ऊषा गोयल ने बताया कि सेहत विभाग फूड एंड
सेफ्टी स्टेंडर्ड एक्ट के तहत सरकार के तरफ से कुछ जरूरी दिशा निर्देश जारी कर रखे
हैं। इसके तहत होटल-रेस्टोरेंट, ढाबा,
फास्ट फूड बेचने वाले लोगों को किस प्रकार से अपनी दुकान में
साफ-सफाई रखने के अलावा उनका बनाने की पूरी ट्रेनिग लेना लाजिमी है। ट्रेनिग हासिल
करने वालों को सार्टिफिकेट जारी किया जाएगा।
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रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ रही है
सिविल अस्पताल बठिंडा की एमडी मेडिसन डा. रमनदीप गोयल का कहना है
कि मिलावटी खाद्य सामग्री खाने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसी का
नतीजा है कि पहले की अपेक्षा अब अधिक लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ रही है। खासकर मिलावटी खाद्य सामग्री
इस्तेमाल करने से गंभीर बीमारियों का भी सामना करना पड़ सकता है। मिलावटी मावा
किडनी व लीवर को खराब कर सकता है। इससे संक्रमण पैदा हो सकता है। सिर दर्द,
पेट दर्द व त्वचा रोग हो सकते हैं। पेट खराब होने व आंतों में
संक्रमण होने की भी संभावना है। मावा या खोवा में मिलावट की पहचान रासायनिक व
जैविक परीक्षण से की जा सकती है।
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ऐसे कर सकते है नकली मावा की पहचान
भौतिक रुप से भी नकली मावा को पहचाना जा सकता है। कुछ बातें ध्यान
रखने से नकली मावा की पहचान कर सकते हैं, जैसे
मावा सफेद या हलके पीले रंग का है तो वह मिलावटी हो सकता है। सूंघने पर मिलावटी
मावे की खुशबू अजीब सी लगती है, जबकि
ओरिजिनल मावा की महक अच्छी होती है। मावे को हाथ से रगड़ने पर ओरिजिनल होने पर घी
छोड़ता है। चखकर देखने पर असली मावा का स्वाद अच्छा लगता है,
नकली होने पर यह कड़वा लग सकता है। नकली मावा आसानी से पानी में
नहीं घुलता। मिलावटी मावा बनाने में दूध पाउडर का इस्तेमाल होता है। इसमें रिफाइंड
या वेजीटेबल ऑयल मिलाया जाता है। इसके अलावा रसायन, आलू,
शकरकंदी का प्रयोग भी किया जाता है। इसमें डिटर्जेंट पाउडर,
तरल जैल, चिकनाहट लाने के लिए रिफाइंड
व मोबिल आयल एवं एसेंट पाउडर डाला जाता है। इतना ही नहीं मिलावटखोर कई बार यूरिया
के घोल में पाउडर व मोबिल डालकर भी तैयार करते हैं।
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माह सैंपल
भरे/फेल हुए सैंपल
जनवरी 2020
15 4
फरवरी 26 2
मार्च 35 2
जून 6 1
जुलाई 14 3
अक्टूबर 9 3
नवंबर 9 0
जनवरी 21 10 0
फरवरी 25 0 (आठ पास है,
जबकि 17 की रिपोर्ट पेडिंग है)
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तारीख फेल हुई
आइटम
तीन जनवरी 2020 दूध
तीन जनवरी 2020 पनीर
तीन जनवरी
दूध
आठ जनवरी
सोयाबिन तेल
तीन फरवरी
खोया पेडा
तीन फरवरी
खोया बर्फी
11 मार्च
पनीर
13 मार्च
देसी घी
14 जून पनीर
10 जुलाई दूध
10 जुलाई दूध
10 जुलाई हल्दी पाउडर
27 अक्टूबर
पीसी हुई चीनी
27 अक्टूबर
लाल राजमह
27 अक्टूबर रिफाइंड
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