Monday, February 8, 2021

जनसेवा की अनूठी कहानी:नोबेल पीस प्राइज के लिए पंजाब के प्रेम सिंह नॉमिनेट, 31 साल से कर रहे कुष्ठ रोगियों की सेवा; शुरुआत में सबकुछ बेच दिया था



  •  रोपड़ जिले के गांव बहरामपुर जमींदारां से ताल्लुक रखते हैं प्रेम सिंह, 2011 में बतौर ऑडिट ऑफिसर रिटायर हुए
  • मरीजों के पुनर्वास पर खुद ही करते हैं खर्च, पहले घर बेचा फिर पत्नी के गहने; ले चुके हैं लोन भी
  • 2002 में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम के हाथों तो अक्टूबर 2019 में रामनाथ कोविंद से मिला नेशनल अवार्ड
रोपड़। कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए पंजाब के एक शख्स ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। पिछले 31 साल से कुष्ठ रोगियों को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयासरत प्रेम सिंह ने कभी अपनी जायदाद तक बेच डाली थी। दो बार यह खुद राष्ट्रपति सम्मान हासिल कर चुके हैं, वहीं अब इनकी बेटी भी इन्हीं के पदचिह्नों पर चल रही हैं। हाल ही में प्रेम सिंह नोबेल पीस प्राइज-2021 के लिए भी नामित हुए हैं। अब जबकि 30 जनवरी को विश्व कुष्ठ उन्मूलन दिवस से 13 फरवरी तक स्पर्श कुष्ठ जागरूकता पखवाड़ा मनाया जा रहा है, इसी बीच कुष्ठ रोगियों की सेवा को समर्पित प्रेम सिंह की कहानी से जन सामान्य को अवगत करा रहे हैं।

आइए जानें प्रेम सिंह के अनोखे प्रेम की कहानी कि कैसे इनके मन में प्रेरणा जगी और फिर क्या-क्या संघर्ष करना पड़ा...

सरदार प्रेम सिंह मूल रूप से रोपड़ जिले के गांव बहरामपुर जमींदारां से ताल्लुक रखते हैं और इन दिनों भरे-पूरे परिवार के साथ चंडीगढ़ के सनी एन्क्लेव में 3 मरले के मकान में रह रहे हैं। प्रेम सिंह इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स डिपार्टमेंट से बतौर ऑडिट ऑफिसर 2011 में रिटायर हुए थे।

दादा रेलूराम से मिली प्रेरणा

प्रेम सिंह ने दैनिक भास्कर को बताया, 'मरीजों के लिए काम करने के लिए प्रेरणा मुझे मेरे दादा रेलूराम से मिली है। वह हड्डी टूटने से परेशान किसी भी मरीज का इलाज मुफ्त में कर दिया करते थे। मैंने जब लैप्रॉसी से ग्रसित मरीजों को देखा कि किस तरह लोग आंखें, हाथ, पैर तक खोने के बाद धीर-धीरे मौत की तरफ बढ़ जाते हैं। इसके बाद मैंने ऐसे लोगों का इलाज कराना शुरू किया।'

कुष्ठ से लड़ने की क्यों ठानी, इसके जवाब में प्रेम सिंह कहते हैं कि समाज के उपेक्षाभरे बर्ताव के चलते ही इन्हें इस हाल से निकालने की तमन्ना है। दिल दुखता है, जब 1985 में अंबाला छावनी की घटना याद आती है, जब कुष्ठ आश्रम के 60 लोगों के वोटिंग के दौरान अलग लाइन लगाई गई थी। यह बेहद शर्मनाक पहलू है।

आर्थिक समस्या से खुद ही जूझते हैं

कुष्ठ रोगियों के सर्वपक्षीय विकास के लिए मुहिम चला रहे प्रेम सिंह पिछले करीब 30 साल से इस दिशा में काम कर रहे हैं। अब तक 1 हजार से ज्यादा लोगों को इलाज उपलब्ध करवाया जा चुका है और इनमें से 60 फीसदी मरीज 60 की उम्र के ज्यादा के हैं। पीड़ितों से मिलने जाने, कुष्ठ की वजह से अपंग हो चुके लोगों की सेवा-संभाल जैसे सिर पर पक्की छत या खाने-पीने की व्यवस्था के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। इसी के चलते पहली बार प्रेम सिंह ने गांव का अपना घर बेच दिया। 60 हजार रुपए से कई के सिर पर पक्की छतें आई, वहीं मुक्तसर जिले में कई के खाने की व्यवस्था भी की गई।

इस पर भी आर्थिक जरूरत पूरी नहीं हुई तो फिर पत्नी के गहने भी बेच दिए। कई बार लोन भी लिया है, पर किसी भी सूरत में कुष्ठ रोगियों का हाथ छोड़ना नहीं चाहते। 2017 में 5 लाख रुपए का लोन लिया, वहीं करीब 5 महीने पहले भी ढाई लाख का पेंशन लोन लेना पड़ा। जब-जब प्रेम सिंह ने संपत्ति बेची और लोन लिया, तब-तब पत्नी ने हल्का विरोध जताया, पर हर बार यही समझाकर मना लेते थे कि वेस्ट नहीं, बस इन्वेस्ट कर दिया।

कटने लगे समाज के लोग

प्रेम सिंह ने बताया कि उन्होंने जब कुष्ठ रोगियों का इलाज करवाना शुरू किया तो खुद को समाज की मुख्य धारा में मानते लोग कटना शुरू हो गए, क्योंकि लोगों को एक भ्रम है यह रोग छूने से फैलता है। हालांकि हकीकत में ऐसा नहीं है। वह बताते हैं कि यहां तक कि पीड़ित व्यक्ति भी समाज के बहिष्कार से डरते थे, बड़ी मुश्किल से लोगों को समझाने में कामयाब हुए कि यह उन्हीं के फायदे की बात है। हालांकि कुछ रिश्तेदार और परिचित तो अब भी घर आने-जाने से कतराते हैं।

पूर्वजन्म के शाप और छूत रोग होने जैसी बातें सिर्फ भ्रम
समाजसेवी प्रेम सिंह के मुताबिक कुष्ठ को लेकर लोगों के मन में एक भ्रम है कि यह पिछले जन्म का श्राप होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह कमजोरी और मलिनता से पैदा होता है। ज्यादातर जो इधर-उधर माइग्रेट हुए गरीब होते हैं, उनमें न्यूट्रिशियन की वजह से भी यह बीमारी आ जाती है। यह स्लाइवा और थूक से फैलता है।

बहुत ही सरल है इलाज और मुफ्त भी

बकौल प्रेम सिंह, अगर समय पर बीमारी का पता चल जाए और इलाज मिलना शुरू हो जाए तो यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो सकती है। इसके लिए मल्टी ड्रग थैरेपी दी जाती है, जो एकदम मुफ्त है। यह अलग बात है कि बीमारी के हिसाब से एक साल या उससे अधिक भी चल सकती है। इसी के चलते बहुत से लोग इलाज बीच में भी छोड़ गए, फिर ऐसे लोगों को ट्रेस करने के लिए कार्ड जारी करने का सिलसिला शुरू किया गया।

प्रेम सिंह को अब तक मिले अवार्ड

  • 2001 में स्टेट अवार्ड मिला तो 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों नेशनल अवार्ड फॉर द वेलफेयर ऑफ डिसएबल्ड पर्सन हासिल किया।
  • 2004 में रेड व्हाइट ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित हुए।
  • 2017 BMJ अवार्ड के लिए नोमिनेशन हुआ।
  • 2005 में एक निजी चैनल ने डॉक्युमेंट्री ‘जांबाज’ बनाई।
  • हाल ही में 3 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नेशनल अवार्ड फॉर सीनियर सिटीजन से सम्मानित किया है। यह अवॉर्ड शौर्य और बहादुरी की कैटेगरी में दिया गया है।
  • इसके अलावा भी कई और अवार्ड प्रेम सिंह अपने नाम कर चुके हैं।

बेटी तेजिंदर कौर को मिला स्टेट अवार्ड

इससे भी बड़ी प्रेरणादायक बात यह भी है कि प्रेम सिंह की बेटी तेजिंदर कौर ने पब्लिक हेल्थ में मास्टर डिग्री सिर्फ इसलिए की कि वह कुष्ठ रोग के निवारण की दिशा में पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर पब्लिक को जागरूक कर सकें। उन्हें भी 2017 में स्वतंत्रता दिवस पर तेजिंदर कौर को सेवा में स्टेट अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

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